विलास जोशी
हर साल मई महीने के पहले रविवार को ‘विश्व हास्य दिवस’ मनाया जाता है। मगर मात्र एक दिन हंसने से काम नहीं चलता। यह दिन साल में एक बार इसलिए आता है कि हम सबको याद रहे कि सदैव हंसते रहना है। जीवन का यह एक सत्य है कि हर इंसान के जीवन में कोई तनाव अवश्य होता है। इन तनावों के रहते हम हंसना भूल जाते हैं। खुशी हंसने का दूसरा पहलू है, इसलिए खुश रहने के लिए हंसते-हंसाते रहना भी बहुत जरूरी है। हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि- ‘जब भी संभव हो या मौका मिले, खुल कर हंस लेना चाहिए। यह सबसे सस्ती दवा है। इसे हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।’
कुछ कलाकारों का कहना है कि हंसना-हंसाना एक कला भी है और तजुर्बा भी। जो कलाकार अपने अनुभवों को सही ढंग से निभा सके, वही असली कलाकार होता है। हमारे देश के प्रसिद्ध ‘शोमेन’ राजकपूर कहते थे कि ‘मजहब है अपना हंसना-हंसाना’। विश्व प्रसिद्ध कामेडियन चार्ली चेपलिन ने अपना हंसने-हंसाने का मजहब बखूबी निभाया। इसी तरह जानी वाकर, महमूद और ओमप्रकाश जैसे महान कलाकार अगर आज भी हमें याद हैं, तो उनकी हंसने-हंसाने की कला की वजह से ही।
हंसना-हंसाना भी सकारात्मक होना चाहिए। जो व्यंग्य कर रहे हैं उससे किसी को हंसी आती है, तो यह उस व्यंग्यकार की सफलता है। जो व्यंग्य या नकल की जा रही है, वह केवल निर्मल आनंद के लिए होनी चाहिए, अन्यथा हमें मालूम ही है कि द्रौपदी की एक हंसी से कितनी बड़ी महाभारत हो गई थी। कब हंसना है और किस जगह हंसना है, यह बात भी ध्यान में रखना चाहिए। अगर कोई शख्स किसी की हंसी उड़ाने भर के लिए हंसता है, तो उससे रिश्तों में दरार पैदा हो सकती है।
योन नागोची ने कहा है- ‘जब जिंदगी के कगारों की हरियाली सूख रही हो, पक्षियों का कलरव मौन हो गया हो, सूरज के चेहरे पर ग्रहण की छाया गहरी हो रही हो, परखे हुए मित्र और आत्मीयजन कांटों के रास्ते पर मुझे अकेला छोड़ कर चल दिए हों और आसमान की सारी नाराजगी मेरी तकदीर पर बरसने वाली हो, तब हे मेरे दाता, तुम मेरे साथ इतना अनुग्रह करना कि तब भी मेरे होठों पर ‘हंसी’ की एक उजली रेखा खींच देना।’
कहावत है कि ‘हंसी छूत की बीमारी की तरह है, अगर किसी एक को हंसी आ गई तो दूसरे भी अपने दांत निकाले बगैर नहीं रह सकते।’ हंसी मानव जाति को मिले समस्त उपहारों में एक सर्वोत्तम उपहार है। यह भी एक सच है कि केवल मानव हंस सकता है। जब हम किसी से कुछ नहीं कहना चाहते और मात्र हंस देते हैं, तो सामने वाला हमारे दिल की बात बहुत अच्छे से समझ जाता है। हंसी ‘अभिव्यक्ति’ का सबसे सशक्त माध्यम है। हंसी में इतनी ताकत है कि वह किसी के गम और तकलीफें कुछ क्षण के लिए भुला देती है।
जब तनाव हमारे जीवन में बिना सूचना दिए प्रवेश कर सकता है, तो हंसी क्यों नहीं? हमें हंसी को भी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए। जो सच्चे दिल से हंसते हैं, उनके शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और परिणामत: इससे वे तनाव और अवसाद से लड़ने में सक्षम बनते हैं। इसीलिए हंसिए और हंसाते रहिए और अपने जीवन में आए तनाव को अपने शरीर और घर से भगाते रहिए।
अगर हंसना भूल गए हों तो यह कला बच्चों से सीखिए। उनकी हंसी कितनी उन्मुक्त, निष्पाप और सहज होती है। कई बार तो वे बिना कारण भी हंसते हैं। फिर हम ऐसी हंसी को और कौन-सा दूसरा नाम दे सकते हैं, बजाय ‘निष्पाप हंसी’ कहने के! इस गलाकाटू प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्यावादी जगत में हम हंसना भूलते जा रहे हैं, जबकि हंसी बहुत बड़ा ‘टानिक’ है- यह जानते हुए भी हम उसे अनदेखा कर रहे हैं। एक शोध के मुताबिक हंसने वाले, हंसी से परहेज करने वालों की तुलना में अधिक उम्र पाते हैं। क्योंकि, हंसने से प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है। हमारी मांसपेशियों को तनावमुक्त करने में हंसी रामबाण औषधि सिद्ध हुई है।
हंसी का सामाजिक महत्त्व भी बहुत है। जो रिश्ते कई दिनों से टूटे पड़े हों, वे मात्र एक ‘मुस्कराहट’ से ऐसे पुन: जुड़ जाते हैं, मानो कभी टूटे ही नहीं थे। कवि शेलेंद्र ने कहा है कि ‘जो तुम हंसोगे तो हंस देगी दुनिया, यदि रोओगे तुम, तो रोना पड़ेगा अकेले’। तो फिर हम क्यों न हंसें! हंसने से हमारे शरीर की कोशिकाओं को भी उचित मात्रा में आक्सीजन मिलती है। हंसते रहने वलों को दिल के दौरे की संभावना कम होती है। सकारात्मक अच्छी हंसी हर एक घर की प्रकाश किरण है और यह हमें प्रकृति ने एक नियामत के तौर पर बख्शी है, इसलिए हंसिए और हंसाते रहिए, क्योंकि ‘मजहब है अपना हंसना-हंसाना’।
