मृदुला शर्मा

सूरज तो हमेशा सुबह उगता और शाम को डूबता है। उगते सूरज को निहार कर स्वास्थ लाभ करने का नियम हमारे शास्त्रों में भी बताया गया है। योग की विधा में सूर्य नमस्कार के बारह आसन प्रचलित हैं। हम सब जानते हैं कि सूरज है तो पृथ्वी पर जीवन है। लेकिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि का डूबता सूरज लोकमन में विशेष हो जाता है तो सप्तमी तिथि का उगता हुआ सूरज भी। सूरज अकेला दिखने वाला देवता तो माना ही जाता है, जीवन जीने के लिए सब कुछ देने वाला भी। पुराण में कार्तिक मास में दोनों तिथियों में डूबते-उगते सूरज का महत्त्व बताया गया है। जलाशय में खड़े होकर ही सूरज को अर्घ्य देने का विधान बताया गया। अर्घ्य के सूप में वे सब सब्जियां और फल होते हैं जो सूरज के कारण उपजते हैं।
आमतौर पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में ही यह कठिन व्रत किया जाता रहा है। इस क्षेत्र के लोग विदेशों में भी रोजगार के लिए जाते रहे हैं और वहां भी सूर्य की आराधना होती रही। इसे सूर्य पूजा नहीं कह कर छठ व्रत कहा जाता रहा है। ‘षष्ठी’ तिथि का अपभ्रंश ही ‘छठ’ हो गया। सूर्य और दूसरे ग्रह-नक्षत्रों की भी पूजा भारत में होती रही है।

हाल ही में अंतरिक्ष पर केंद्रित एक बातचीत के दौरान वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष का विभिन्न दृष्टि से अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों के बीच मैंने कहा कि हमने अनादिकाल से शास्त्र के साथ लोक को भी महत्त्व दिया है। लोक जीवन में सूरज, चांद और तारे भी मानवीय संबंधों के रूप में हमारे साथ हैं। जैसे चंदा ‘मामा’ है तो छठ व्रत में सूरज से भी अटूट रिश्ता प्रकट होता है। लोकमन ने छठ पूजा पर गाए जाने वाले गीतों में सूरज को भी किसी का ‘पुत्र’ और किसी का ‘भाई’ बना दिया है। भक्त और भगवान का रिश्ता तो देखा ही गया है, लेकिन घरेलू रिश्ता जोड़ लेना मानव मन की विशेषता है। इस रिश्ते के कारण ही सूरज और व्रती के बीच की दूरी कम हो जाती है। मैंने लोकमन में बैठी हुई अंतरिक्ष और उसके सदस्यों के बारे में धारणा से जुड़े विषय का भी अध्ययन कराने का सुझाव दिया।

सबसे बड़ी बात है कि छठ व्रत के अवसर पर गीतों के माध्यम से व्रत करने वाली महिलाएं सूर्य से बातचीत भी करती हैं। मान्यता के मुताबिक कठिनतम व्रत से प्रसन्न होकर सूर्यदेव कहते हैं- ‘ मांगू मांगू तिरिया जेहो किछू मांगव, जे किछू हृदय में समाय’। इसके बाद एक सुखी परिवार के लिए जो कुछ चाहिए, व्रत करने वाली महिला वह सब कुछ मांगती है। वह बेटा मांगती है तो चूंकि परिवार में संतुलन आवश्यक है, इसलिए बेटी भी मांगती है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का अभियान तो अब जाकर चला है, लेकिन व्रती महिलाओं की ओर से छठ व्रत के मौके पर सूरज से बेटी की भी मांग करना बहुत पुराना ‘अभियान’ है!

वैज्ञानिक अध्ययनों के साथ लोकरंग में डूबना भी आवश्यक है, खासतौर पर जिनमें प्रकृति और उसकी भूमिका को स्वीकार करके लोक में सम्मान का भाव पाया जाता रहा है। यह हम सब जानते हैं कि सौरमंडल में सूर्य, चांद और तारों की विभिन्न स्थितियां हैं। इसी लिहाज से लोक में छठ व्रत को महत्त्वपूर्ण जगह हासिल है। सामूहिकता इस पर्व का एक खास आकर्षण है। घाटों पर बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष और बच्चे एकत्रित होते हैं। एक मेले जैसा माहौल होता है। इसके अलावा, षष्ठी तिथि का सूरज डूबते समय भी सुंदर दिखता है और वह इसलिए खास बन जाता है कि छठ के दौरान वह सामूहिक नजरों से देखा जाता है। सप्तमी तिथि को सूरज के उगने से पहले घाट पर हजारों लोग उपस्थित रहते हैं । व्रती महिला-पुरुष अंधेरे में ही जलाशय में प्रवेश कर सूर्य के आकाश में आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।

धीरे-धीरे पौ फटती है। फुलझड़ियों और पटाखों से सूरज के आगमन का स्वागत किया जाता है। पूरब दिशा में सूरज का लाल गोला आकार लेने लगता है, तब लोगों के मन में फुलझड़ियां फूटने लगती हैं, मानो वर्षों बाद कोई अपना सगा घर लौटा हो। साल के बाकी दिनों के सूरज से भिन्न महसूस होता है इस दिन का सूरज। यह बहुत खास होता है। जीवन के साथ जीने के लिए सब कुछ अन्न, धन, लक्ष्मी, भोजन और विशेषकर स्वास्थ्य देने वाला सूरज। शास्त्रों में वर्णित सूरज से भिन्न होता है लोकमन में स्थित सूरज, जो छठ के दौरान लोगों के घर-आंगन में उतर आता है। इस पर्व की आस्थागत व्याख्या चाहे जो हो, लेकिन इस धरा पर मौजूद जीवन के लिए प्रकृति के योगदान के प्रति धन्यवाद कहना है, उसके प्रति कृतज्ञ होना मनुष्य की संवेदनशीलता का भी परिचायक है।