एकता कानूनगो बक्षी
कुछ चीजें हर किसी को स्वाभाविक रूप से मिली हुई हैं। प्राणवायु, जल, धरती, आकाश, सूरज की रोशनी आदि के साथ साथ नैसर्गिक सौगातों में ‘रंगों’ को भी शामिल किया जा सकता है। हम देख सकते हैं कि दुनिया में आने के पहले दिन से लेकर अंतिम विदाई तक हमारे जीवन पर कितने ही रंगों की बरसात होती रहती है। दरअसल, रंगों से हमारा पहला परिचय प्रकृति ही कराती है। रंग-बिरंगे फूलों, तितलियों, परिंदों में विभिन्न रंग दिख जाते हैं, तो कभी अनंत आकाश अपनी विशाल बाहें फैलाए और समुद्र अपनी गहराइयों से रंगों की अनोखी छटाएं बिखेरता दिखाई देता है।

धरती पर मौजूद चीजों पर जब सूरज की रोशनी पड़ती है तो उनका रंग कुछ होता है और जब चांदनी बिखरती है तो कुछ और। पानी की बूंद पर बरसात के मौसम में जब धूप खिलती है तो सात रंगों का इंद्रधनुष आसमान में इस कोने से उस कोने तक सौंदर्य बिखेर देता है। धरती के रंग भौगोलिक स्थान और मिट्टी परिवर्तन के साथ बदलते दिखते हैं। कहीं वह घूसर, काली हो जाती है, कहीं पीली या लाल।
प्रकृति किसी ‘रंग’ के साथ किसी तरह का पक्षपात नहीं करती। मयूर को जो रंग मिला है, वह नीलकंठ से अलग है। तरह-तरह की चिड़िया के अलग-अलग रंग हैं। आकाश को क्रमश: नीला, गुलाबी, सिंदूरी और काला होते हुए हम सबने खूब देखा है। चंद्रकलाओं की घट-बढ़ के साथ कृष्णपक्ष में काले अंधेरे और शुक्लपक्ष में खूबसूरत चांदनी के नजारे कैसे भुलाए जा सकते हैं!

प्रकृति सचमुच एक कुशल चित्रकार होती है। किस रंग का उपयोग कहां और किस तरह, किस मात्रा में करना है, उसे खूब अच्छी तरह समझता है। कई जगह बड़े बेपरवाह ढंग से हर रंग को दूसरे रंग में मिला कर तीसरा रंग बना दिया है और किसी भी रंग को किसी भी रंग के इतने करीब बैठा दिया मानो वे दो अलग रंग हैं ही नहीं। शायद यही इस चितेरे की सहजता है जो उसे एक अद्भुत प्रेरणादायी कलाकार के रूप में हम सब के सामने ला खड़ा करती है।

काले और सफेद आधार रंग के अलावा लाल, नीला और पीला जैसे तीन मूल रंगों से मिल कर ही अन्य रंगों का निर्माण होता है। लाल रंग में अगर पीला मिला दिया जाए, तो केसरिया रंग बनता है। अगर नीले में पीला मिल जाए, तब हरा बन जाता है। इसी तरह से नीला और लाल मिला दिया जाए, तब जामुनी बन जाता है। रंगों का यह मेल-मिलाप और समुच्चय कितना प्रेरक और अनुकरणीय है! नई खूबसूरती और सृजन में नए रंग भरने के लिए ये रंग एक दूसरे की अनोखी सहायता करते रहते हैं। कोई दुराभाव यहां नहीं है कि यह रंग उस रंग में नहीं मिलेगा। इसीलिए शायद इतने विविध रंगों से सजी ये खूबसूरत दुनिया हमें मिल पाई है।

प्रकृति से बच्चों की तरह निस्वार्थ मिले इन रंगों में दुनियादारी की कुटिलता का प्रवेश होना शायद हमारी ही कोई कारस्तानी है। हमने रंगों तक का वर्ग विभाजन कर डाला है। कुछ खास अवसर पर कुछ खास रंगों का उपयोग और कुछ रंगों से दूरी। कुछ रंगों को श्रेष्ठता का दर्जा तो कुछ को आजीवन निम्न श्रेणी के रूप में देखना। रंगों से लिंग भेद करना। कुछ रंग उनके, कुछ रंग केवल हमारे। कुछ रंग डर के, कुछ क्रोध के, कुछ विद्रोह के और एक दो रंग प्यार के। बहुत चटकीले रंग मलतब ग्रामीण परिवेश तो हल्के रंग सभ्रांत समाज के। इतने विभाजन से अगर कभी हमारे चेहरे और मन के रंग उड़ भी जाएं तो कोई अचरज की बात नहीं।

रंगों की सुंदरता तो उसके नैसर्गिक रूप में ही है। इनके बीच वैमनस्य पैदा कर प्रतिस्पर्धा कराने का हक हमें नहीं हो सकता, क्योंकि रंग हम सब के हैं, यह प्रकृति सबकी है, यह धरती आकाश सबका है। हम उन रंगों के साथ मनुष्यता, मेहनत, हौसले और प्रेम के रंग भर कर और खूबसूरत बना सकते हैं। दुनियाभर में कई ऐसे त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें रंगों को सम्मान दिया गया है। रंगों के माध्यम से नई उमंग और मेल-मिलाप के संदेश के साथ जीवन की बुराइयों और दुखों से मुक्ति की आकांक्षा में उत्साह के फव्वारे फूटते हैं। भारत में हम सब होली नाम से एक दूसरे पर रंग छिड़क कर, गुलाल मल कर पारंपरिक रूप से त्योहार मनाते हैं।

यही पर्व मौका भी देता है हमारे असली रंगों से हमारी पहचान कराने का। होली करीब है और इस मौके पर हर रंग और मन खिल उठते हैं। प्रकृति से ही लिए गए प्राकृतिक रंगों से होली एक जरिया बनता है शुरुआत करने का, नई समझ और रिश्तों की। मुट्ठी में कई अलग-अलग रंगों को समेट कर खुद को और अपनों को कई रंगों में रंग देने का और यह साबित करने का कि प्यार का रंग केवल लाल या गुलाबी नहीं होता, वह तो काले, पीले, नीले, हरे और भी कई रंगों का मिला-जुला रूप होता है, जिसकी सुंदरता अतुल्य होती है। हर रंग को उसके अपने विशिष्ट और अद्भुत रूप में अपनाने ही नहीं, गले लगाने का मौका देता है रंगों का यह उत्सव।