विलास जोशी
इतिहास साक्षी है कि मनुष्य के संकल्प के सामने नकारात्मक शक्तियां भी नाकाम हो जाती हैं। जब कोई अप्रिय प्रसंग हमारे जीवन में आता है, तब उसके सामने जाने के लिए एक सकारात्मक संकल्प की आवश्यकता होती है और यही वह अवसर है जब हमारी परीक्षा होती है। हमने अनुभव किया होगा कि कठिन समय आता है तब छोटे-छोटे टीले, जिनकी ऊंचाई खुले मौसम में साफ मालूम पड़ती है, बाढ़ में डूब जाते हैं, लेकिन सबसे ऊंचे पहाड़ की चोटियां पानी की सतह के ऊपर दिखाई पड़ती हैं। जब आदमी में ऊंचे पहाड़ की तरह पक्की संकल्प-शक्ति होती है, तब वह अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब हो ही जाता है, भले ही उसके सामने कितने ही तूफानरूपी बाधाएं क्यों न आ जाएं। यही शक्ति है संकल्प की।
कहते हैं कि नेक काम करने के लिए धन की कमी आड़े नहीं आती, बशर्ते व्यक्ति का संकल्प पक्का हो। प्रकृति ने मनुष्य को बहुत-सी शक्तियों की नियामत से नवाजा है। जरूरत है अपने अदंर छिपी हुई शक्ति के अपरिमित कोष को जागृत करने की। अपनी प्रबल संकल्प शक्ति के द्वारा व्यक्ति असंभव को भी संभव बना सकता है। एक प्रसंग है कि एक बार चार ‘दैवी शक्तियां’ पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं।
रास्ते से गुजरते समय एक महात्मा ने उन्हें पहचान कर प्रणाम किया। वे शक्तियां यह समझ नहीं पार्इं कि प्रणाम किसे किया गया है। इसलिए आपस में विवाद करते हुए वे शंका समाधान के लिए उस महात्मा के पास पहुंचीं। महात्मा ने पहले उनसे उनका परिचय पूछा। एक शक्ति बोली- ‘मैं विधाता हूं, सबका भाग्य लिखती हूं, मेरी खींची हुई रेखाएं अमिट होती हैं’।
महात्मा ने उससे प्रश्न किया कि क्या आप खींची हुई भाग्य रेखाओं को स्वयं मिटा सकती हैं या बदल सकती हैं? उसका जवाब उसने ‘नहीं’ में दिया। महात्मा बोले- ‘तब तो जाहिर है कि मैंने आपको प्रणाम नहीं किया है’। दूसरी शक्ति बोली- ‘मैं बुद्धि हूं और विवेक की स्वामी हूं’। महात्मा बोले- ‘मैंने आपको भी प्रणाम नहीं किया, क्योंकि मैं इस सत्य को जानता हूं कि मार खाने पर बुद्धि आती है और फिर चली जाती है। मनुष्य ठोकर खाने पर ही सचेत होता है। समर्थ हो जाने पर वह बुद्धि से काम लेना बंद कर देता है।’ तीसरी शक्ति बोली- ‘मैं धन की देवी हूं।
मनुष्य को समृद्धि देती हूं। भिखारी को भी राजा बना सकती हूं’। उसकी बात सुन कर महात्मा मुस्कराए और बोले- ‘देवी, आप जिसको धन और वैभव की पूर्ति करती हैं, वह विवेक खो बैठता है तथा उसमें लोभ, काम व क्रोध बढ़ने लगता है। इसलिए मेरा प्रणाम आपको भी नहीं था’। अंत में चौथी शक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा कि ‘महात्मा, मैं संकल्पशक्ति हूं।
मुझे धारण करनेवाला कालजयी होता है। वह ‘अलभ्य चीजें’ भी बहुत सरलता से प्राप्त कर सकता है’। महात्मा ने यह शब्द सुनते ही चौथी शक्ति को फिर से प्रणाम किया और कहा- ‘आप महाशक्ति हैं, अजेय हैं और अनंत भी। आपके सहारे मनुष्य कुछ भी हासिल कर सकता है। मेरा प्रणाम आपको ही निवेदित था। संतोष और सज्जनता- ये दोनों महाशक्तियां हैं, बस इनका उपयोग विवेक के साथ परोपकार के लिए किया जाना चाहिए’।
जब भी कोई किसी बात को हासिल करने के लिए मन ही मन संकल्प करे, तब उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह जल्दबाजी में लिया गया निर्णय न हो, बल्कि पूरी तरह सोच-विचार करके लिया गया हो। अन्यथा संकल्प के जादू का असर आहिस्ता-आहिस्ता बेअसर हो जाता है। यह बात अनुभव की है कि संकल्प से सिद्धि प्राप्त करने की इस यात्रा तक के लोग बहुत कम होते हैं।
इसका प्रमुख कारण यह है कि ऐसे संकल्पवीर बहुतायत में मिलते हैं। अपनी आधी-अधूरी निष्ठा से थोड़ा-बहुत प्रयास करते हैं और सफलता हासिल न होते देख कर आधे रास्ते से लौट जाते हैं। जिस व्यक्ति में यह जज्बा होता है कि ‘अब आए ही हैं तो कुछ करके जाएंगे’, वे लोग अपने संकल्प को पूरा करने में कामयाब होते है।’ ‘अपना जीवन खुद ही बनाना है’- जिसे यह बात अच्छी तरह से समझ में आ जाती है, वही संकल्प लेकर अपनी पूरी इच्छाशक्ति के साथ सिद्धि तक पहुंचता है।
सच यह है कि संकल्प करने से ही प्रयासों को सच्ची दिशा मिलती है। असंभव को संभव बनाना ही संकल्प की मूल भावना होती है। अरुणिमा सिन्हा इसका जीता-जागता प्रमाण हैं। चलती रेल से उनको चोरों ने बाहर फेंक दिया था। उनके पैर बेकार हो गए थे। फिर भी उन्होंने कृत्रिम पैरों से चल कर एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने में कामयाबी हासिल की। यह उनके ‘संकल्प शक्ति’ का ही प्रमाण है। अपनी इस सफलता के बाद वे बोलीं- ‘अभी तो मैंने लांघा है समंदर, अभी तो पूरा आसमान बाकी है।’
संकल्प करने के लिए किसी मुहूर्त या विशेष अवसर की आवश्यकता नहीं होती है। संकल्प कभी भी किया जा सकता है। बस आवश्यकता इस बात की है कि उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी निष्ठा और सकारात्मक प्रयासों की पूर्ण शक्ति का सही तरीके से इस्तमाल किया जाए। संकल्प किया जाए, लेकिन सोच-समझ कर। एक बार संकल्प कर लिया तो फिर उसे अधबीच या मझधार में नहीं छोड़ना चाहिए।

