शिप्रा किरण

यों तो देश में महिला-शिक्षा की दर में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन जिस रफ्तार और तादाद में इसे पूरा होना चाहिए था, वह सपना अभी कोसों दूर दिखाई पड़ रहा है। सबसे बड़ी कठिनाई अभी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में है, जहां महिलाओं का प्रतिशत आज भी बहुत कम है। किसी भी राष्ट्र का पूर्ण विकास तभी संभव है जब उसकी पुरुष आबादी के साथ-साथ बाकी आधी आबादी यानी महिलाओं को भी उनके सभी अधिकार समान रूप से मिलें। अधिकार मिलने का मतलब यह नहीं कि सिर्फ कानून की किताबों में उनके अधिकार दर्ज हों। बल्कि उनके अधिकार व्यवहार में भी दिखें। कहा जाता है कि अधिकार ऐसी चीज है जो सिर्फ दिया नहीं जाता बल्कि लेने वाले को भी उसके प्रति सजग रहना चाहिए। ऐसे में शिक्षा ही वह कुंजी है, जो किसी को अपने अधिकार दिला सकती है।
शिक्षा विकास का मूलभूत आधार है, इसलिए स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। भारतीय संविधान में अन्य अधिकारों की तरह स्त्री को भी पुरुष के समान ही शिक्षा या उच्च शिक्षा के अधिकार प्राप्त हैं। संविधान के तहत चौदह साल तक के बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। पंचवर्षीय योजनाओं में स्त्री के शैक्षिक विकास और उनके व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए कई समितियां बनीं और उनकी बेहतरी के लिए कई सुझाव भी दिए गए। विश्वविद्यालय शिक्षा समिति, नारी शिक्षा राष्ट्रीय समिति, स्त्री शिक्षा सार्वजनिक सहयोग समिति, कोठारी आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति परीक्षण समिति, स्त्री शिक्षा सार्वजनिक सहयोग समिति, केंद्रीय सलाहकार समिति आदि ने स्त्रियों की शिक्षा के प्रचार-प्रसार के अलावा उनकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के सुझाव दिए, साथ ही स्त्रियों को उच्च शिक्षा की तरफ आकर्षित करने के सुझाव भी मिले। 1988 में शिक्षा संबंधी इन्हीं सुझावों के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की शुरुआत हुई। इन्हीं योजनाओं की कड़ी में महिलाओं की साक्षरता के लिए 1989 में समाख्या योजना आरंभ हुई।

1950-51 में उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश लेने वाली महिलाओं की संख्या चालीस हजार थी, जो कि 1993-94 में बढ़ कर 16 लाख 64 हजार के आसपास पहुंच गई। केरल, मिजोरम, गोवा आदि राज्यों में यह साक्षरता दर सर्वाधिक दर्ज की गई। साक्षर का मतलब इतना ही है कि जो अपना हस्ताक्षर कर ले यानी अक्षर ज्ञान होना। चिट्ठी पढ़ना, हस्ताक्षर करना और टूटी-फूटी भाषा में कुछ लिख लेने को शिक्षित कैसे कहा जा सकता है!  यह हमारे समाज की विडंबना रही है कि स्त्री को उतनी ही शिक्षा दिए जाने पर बल दिया जाता रहा है, जिससे उसकी चिट्ठी-पत्री का काम चल जाए। ग्रामीण भारतीय समाज या सामाजिक-आर्थिक तौर पर पिछड़े समाज में स्त्री के हस्ताक्षर कर लेने और चिट्ठी पढ़ लेने भर से उसका काम चल जाता था। जबकि शहरी और मध्यवर्गीय समाज में उतना पढ़ना जरूरी माना गया जिससे लड़की की शादी में कोई बाधा न आए। उच्च शिक्षा में स्त्री की संख्या का कम होना या उनका प्रतिनिधित्व न होना एक बड़ा और जरूरी सामाजिक प्रश्न है, क्योंकि कानून या भारतीय संविधान की तरफ से स्त्री-पुरुष दोनों को ही समान अधिकार मिले हुए हैं। फिर क्या कारण है कि स्त्रियों का एक बहुत छोटा तबका ही उच्च शिक्षा तक पहुच्ां पाता है। इसके जवाब हमें समाज तथा परिवार-विवाह आदि सामाजिक संस्थाओं के भीतर तलाशने होंगे।

हमारा समाज एक पितृसत्तात्मक समाज है। पुरुष की उच्च शिक्षा पर व्यय किया गया धन उसे व्यर्थ नहीं लगता क्योंकि भारतीय समाज की एक अवधारणा यह है कि पुरुष ही आगे चलकर परिवारों का आर्थिक निर्वहन करने वाला है। स्त्री विवाह के बाद किसी और परिवार में चली जाएगी। इसलिए यह सोच कायम रहती है कि कन्या पराया धन है यानी अगर उस पर पैसा खर्च करके उसे पढ़ाया-लिखाया जाए तो इसका कोई फायदा पितृपक्ष को नहीं होगा, क्योंकि वह तो दूसरे के घर चली जाएगी। स्त्री की उच्च शिक्षा का प्रश्न सामाजिक संरचना से जुड़ा प्रश्न है, लेकिन यह जितना सामाजिक है उतना ही आर्थिक भी। स्त्री की उच्च शिक्षा से जुड़ी इन समस्याओं का हल तब निकल सकता है जब योजनाओं को व्यावहारिक रूप दिया जाए। उन पर गंभीरता से अमल किया जाए। साथ ही उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए। पहले से छात्रवृत्तियों की राशि में समय के साथ बढ़ोतरी भी की जाए। छात्रवृत्तियां स्त्रियों को उच्च शिक्षा में आने के मार्ग खोलेंगी। उनके माता-पिता के पास भी एक आधार होगा और लड़कियां पूरी तरह आत्मनिर्भर रह कर उच्च शिक्षा में बिना किसी आर्थिक कठिनाई के अपने कदम बढ़ा सकेंगी। साथ ही विभिन्न प्रशासनिक पदों के अलावा महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में महिला प्राध्यापकों की नियुक्ति को प्रोत्साहन देना होगा। इसके अलावा, महिलाओं की सुरक्षा और आर्थिक मुश्किलों की बाबत अलग से भी प्रयास करने की जरूरत है। उच्च शिक्षा उनके लिए रोजगार की संभावनाओं के नए-नए द्वार खोलेगी।