खबर यह थी कि पेड़ जीवन भर चलते रहते हैं। मन में खयाल आया कि भला कैसे! कहां तो यह देखकर हमेशा दुख होता रहा है कि बेचारे पेड़, चाहे उनका जीवन पांच वर्ष का हो, दस का, पचास का, सौ, दो सौ, हजार, चार हजार वर्ष… लेकिन वे एक जगह ही खड़े रहते हैं। उनके पांव नहीं होते कि चल सकें, जब कोई काटने आए तो दौड़ सकें।
हालांकि जब कोई कुल्हाड़ी लेकर उनकी तरफ बढ़ता है, तो वे कांपते भी हैं। वे स्पर्श की कोमलता को भी पहचानते हैं। अपने पालने-पोसने वाले से बेहद लगाव भी रखते हैं। जिन पेड़ों को कोमल स्पर्श मिलता है, उसका प्रतिदान वे खूब बढ़कर और ढेर सारे फल-फूल देकर करते हैं। यह भी कहा जाता है कि पालनहार अगर नहीं रहा, तो पेड़ भी अपना जीवन त्याग देते हैं।
बहुत पहले एक ऐसी पुस्तक भी पढ़ी थी जिसमें उदाहरण समेत बताया गया था कि अगर पेड़ों की देखभाल करने वाले की किसी ने हत्या की है, तो वे उसे पहचानते हैं और उसे देखते ही कांपने लगते हैं। लेकिन उनकी मासूम अभिव्यक्तियां अक्सर नजरों से ओझल हुई रहती हैं। बहरहाल, खबर में यह था कि वे न केवल चलते हैं, बल्कि अपनी वंशावली को बढ़ाने के लिए लगातार सक्रिय रहते हैं।
उनके बीज ही उनका रूप होते हैं। वे हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं। देश-विदेश तक तरह-तरह के माध्यमों से पहुंचते हैं और वहां की पारिस्थितिकी के अनुसार अपना विकास करते हैं। यह भी होता होगा कि वहां की परिस्थितिकी के अनुसार उनका रूप-रंग, फलों का आकार, फूलों के खिलने का समय बदल जाता हो।
आज जब शहरी खेती-किसानी की बातें हो रही हैं, बताया जा रहा है कि शहरों में जो भी जमीन खाली है, वहां हरियाली बढ़ाएं। इससे न केवल बढ़ते तापमान या ग्लोबल वार्मिंग में कमी आएगी, बल्कि आक्सीजन बढ़ेगी। मनुष्य के जीवन में पेड़-पौधों, हरियाली का महत्त्व भी बढ़ेगा। जो लोग गांव से आते हैं, वे जानते हैं कि किसी पेड़ का जीवन में क्या महत्त्व है।
इसीलिए गांव के बाहर, चबूतरे या गली के नुक्कड़ पर जो पीपल, बरगद, नीम आदि के पेड़ होते हैं, उन्हें बहुत दिन बाद देखा जाए तो उन्हें बांहों में भरने, उनका आलिंगन करने, उनका हाल-चाल पूछने का मन करता है। वहीं अगर बचपन का पेड़ दिखाई न दे, वह न रहा हो, उसे काट दिया गया हो, तो कितना दुख पहुंचता है!
वर्षों पहले मेरठ में रहने वाले एक मित्र के घर में विशालकाय कैथे का पेड़ था। उस जमीन पर मित्र के घर वाले बहुमंजिली इमारत बनवाना चाहते थे। इसलिए पेड़ को काट दिया गया। मित्र एक बार जब वहां गए, तो उस स्थान पर खड़ा होकर खूब रोए। उन्होंने घर वालों से नाराजगी प्रकट करते हुए कहा- ‘तुमने पेड़ ही नहीं काटा, मेरा बचपन भी छीन लिया।’
देखा तो यह भी गया है कि पेड़ लगातार बढ़ते हैं, लेकिन चूंकि हम अपने आसपास के पेड़ों को रोज देखते हैं, इसलिए उनके बदलाव पर अक्सर ध्यान नहीं जाता। चम्पा का एक पेड़ पैंतीस-छत्तीस वर्ष पहले नन्हा-सा था। अब दो मंजिला ऊंचा हो गया है। यह बात भी हाल ही में महसूस हुई जब उसकी डालियां बालकनी को आकर छूने लगीं।
गर्मी के दिनों में जब सारे फूल मुरझा रहे हैं, तब इस पर भीनी-भीनी खुशबू वाले हल्के पीले, लाल रंग के छींटों से भरे फूलों की बहार है। गुलमोहर की तरह। जितनी धूप बढ़ती है, गुलमोहर के छतनार पेड़ों पर उतने ही चटख लाल रंग के फूल खिलते हैं। पेड़ के नीचे लाल मखमली चादर-सी बिछ जाती है। अपने आप ही पेड़ों के जीवन के साथ-साथ अपने जीवन और उसके अहसास मन में तैरने लगते हैं। आखिर हमारा जीवन भी तो प्रकृति का ही अभिन्न हिस्सा है!
जब से पेड़ों के चलने की बात सुनी है, कल्पना की दुनिया कुलांचें मार रही है। कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि एक दिन जब नींद खुलेगी, तो आसपास के सारे पेड़ अपनी यात्रा पर निकल गए होंगे। जैसे कि मनुष्य, पशु, पक्षी निकल जाते हैं। पानी के बारे में भी यही बात कही जा सकती है। नदियों, झरनों में बहता पानी कितनी लंबी यात्रा करता, पहाड़ों से समुद्र तक पहुंचता है। सचमुच अगर पेड़ भी ऐसा करने लगें, तो क्या होगा।
धन्यवाद है वैज्ञानिकों का, जिन्होंने इस डर से मुक्ति दिलाई। बताया कि जो पेड़ हम देख रहे हैं, वे रूप बदलकर यात्राओं पर जाते हैं। यानी हमारे पेड़ पूरे जीवन हमें दिखते रहेंगे। वे हमसे बतियाते रहेंगे। हम उनके तनों, डालियों, फूलों को छूकर प्यार जताते रहेंगे और वे इसे महसूस करेंगे। सच कितना अच्छा है, हम हैं, हमारे पेड़ हैं। वे हमारे साथ-साथ हैं।