दुनिया में कई सारे खूंखार और कुख्यात अपराधी हुए लेकिन एक शख्स विक्टर बाउट हुआ, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा आर्म डीलर कहा गया। विक्टर बाउट के कई नाम रहे लेकिन अब यह अमेरिका की जेल में 25 साल की सजा काट रहा है। विक्टर के बारे में कहा जाता है कि इसने दुनिया के कई देशों में आतंक फैलाने वालों को हथियार मुहैया कराए। दूसरी बात यह कि इसके पिछले अतीत के बारे में कहानियां कई प्रचलित हैं।

विक्टर बाउट को बिक्टर बड, विक्टर बोरिस विक्टर बुलाकिन समेत कई नामों से जाना गया। अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विक्टर बाउट 90 के दशक में सोवियत मिलिट्री का हिस्सा रहा था। फिर नौकरी छोड़कर वह हथियारों की डीलिंग करने लगा। इस धंधे में विक्टर बाउट की जगह ऐसी बनी कि उसे मर्चेंट ऑफ डेथ कहा जाने लगा। अमेरिकी दस्तावेज उसकी पैदाइश तजाकिस्तान तो वहीं दक्षिण अफ्रीकी कागजात उसे यूक्रेन का बताते हैं।

खुफिया एजेंसीज मानती हैं कि सन 1967 में पैदा हुआ विक्टर कई भाषाओं का ज्ञान रखता है और इसी दम पर उसने अपने कारोबार को अलग स्तर तक ले जा सका। विक्टर मिलिट्री में ट्रांसलेटर का काम करता था। साल 1991 आया तो उसने सेना छोड़ हवाई विमान से माल ढुलाई का कारोबार शुरू किया। इसके लिए उसने अफ्रीकी देश अंगोला की जमीन चुनी। ऐसे में वह अमेरिका की नजर में तब आया जब प्रतिबंधित जगहों पर उसने हथियारों की सप्लाई शुरू की।

साल 1994 आते-आते उसने विद्रोही गुटों तक हथियारों की सप्लाई शुरू की, यही वह दौर था जब विक्टर की कंपनी सीआईए की नजरों में चढ़ गई। फिर यूएन की रिपोर्ट में भी 2000 में उसकी कंपनी का नाम था, क्योंकि पता चला कि यूगोस्लाविया, अंगोला और लाइबेरिया में गृह युद्ध जैसे हालातों के लिए विक्टर बाउर ही जिम्मेदार था। हालांकि साल 2000 के बाद विक्टर तेज रफ्तार घोड़े की भांति अपने धंधे में दौड़ रहा था।

हालांकि, साल 2002 में अमेरिका की एक रिपोर्ट ने पूरे दुनिया को हिला दिया, जिसमें कहा गया कि विक्टर बाउट ने 30 से अधिक जहाजों की मदद से हथियार पहुंचाए। साथ ही उसने केन्या को सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल भी दी, जिससे इजराइल के एक विमान को निशाना बनाया गया था। विक्टर 2002 से 2007 तक दुनिया के जिन देशों में भी रहा वहां अधिकतर देशों ने खुद को लहूलुहान पाया। इनमें सीरिया, लीबिया, रवांडा, लेबनान, अफ्रीका मुख्य थे।

फिर साल 2008 में विक्टर को थाईलैंड में दबोच लिया गया, क्योंकि इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर चुकी थी। कहा गया कि वह कुछ आतंकी संगठनों के आकाओं से मिलने वाला था। फिर साल 2009 में उसे अमेरिका डिपोर्ट कर दिया गया। इसके बाद अमेरिका में मुकदमा चला और उसे कई देशों में अमेरिकी नागरिकों की हत्या कराने का दोषी पाया गया। जिसके बाद विक्टर को अप्रैल 2012 में 25 साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई।