आजकल सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के बाद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के साथ गोल्डी बराड़ का नाम काफी चर्चा में है। आए दिन कोई न कोई घटनाक्रम सामने आ रहा है। हालांकि, सवाल है कि यह दोनों गैंगस्टर क्यों कहे गए? इन पर कई अपराधों के चलते गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई। ऐसे में आज जानते हैं कि आखिर यह गैंगस्टर एक्ट क्या होता है और किसी अपराधी पर कैसे लागू होता है।

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क्या है गैंगस्टर: देश में गिरोह बनाकर वारदातों को अंजाम देने वाले अपराधियों के खिलाफ साल 1986 में एक अधिनियम (एक्ट) बनाया गया। इस एक्ट के मुताबिक, एक या एक से अधिक लोगों का समूह जो समाज में अपराध को अंजाम देकर अवैध तरीके से पैसा जुटाता है या फिर किसी उद्देश्य या सुनियोजित ढंग से अपराध को अंजाम देता है; उसे गैंगस्टर कहा जाता है। एक सामान्य अपराधी की तुलना में गैंगस्टर अधिक घातक अपराधों को अंजाम देता है इसलिए उन्हें अलग श्रेणी में रखा जाता है। गैंगस्टर केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में सक्रिय हैं।

ऐसे घोषित किये जाते हैं गैंगस्टर: यूपी गैंगस्टर अधिनियम के मुताबिक, संगीन अपराध में शामिल आरोपियों के लिए सम्बंधित थाने में थाना प्रभारी एक गैंग शीट बनाता है। इस शीट को थाना प्रभारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों तक भेजता है, जिसकी वह समीक्षा करते हैं। अंत में जिलाधिकारी इस गैंग शीट पर समीक्षा व निरीक्षण करते हैं। यदि उन्हें लगता है कि आरोपी के अपराध गैंगस्टर एक्ट के तहत मिलान खाते है तो गैंग शीट को मंजूरी देकर आरोपी को गैंगस्टर घोषित किया जाता है।

संशोधन के बाद मिली एक्ट को मजबूती: साल 2015 में उत्तर प्रदेश में तत्कालीन सरकार ने गैंगस्टर एक्ट में संशोधन किया था, जिसे उस वक्त के राज्यपाल राम नाइक ने मंजूरी दी थी। इस संशोधन के चलते एक्ट का दायरा बढ़ गया था और एक्ट में अन्य अपराधों को भी शामिल किया गया था, जिनकी संख्या पहले केवल 15 ही थी। बता दें कि गैंगस्टर एक्ट के तहत दोषियों को दो साल से 10 साल तक की सजा मिलने का प्रावधान है। इसके अलावा, अब समय-समय पर डीएम, कमिश्नर और अपर मुख्य सचिव (गृह) समीक्षा करते हैं।

एक अपराध पर भी लग सकता है गैंगस्टर एक्ट: सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 27 अप्रैल को एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने बड़ा फैसला सुनाया था। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर सहमति जताई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी गैंग द्वारा किया गया एक अपराध भी गैंग के सदस्य पर गैंगस्टर एक्ट लागू करने के लिए काफी है।

कोर्ट ने कहा था कि यदि किसी आरोपी पर पहली बार भी केस दर्ज होता है और वारदात में शामिल पाया जाता है तो उसके खिलाफ भी यूपी गैंगस्टर्स और एंटी-सोशल एक्टीविटी प्रीवेंशन एक्ट के तहत केस चलाया जा सकता है। भले ही एक्ट की धारा 2(बी) में उल्लेखित किसी भी असामाजिक गतिविधि के लिए केवल एक अपराध, एफआईआर या आरोप पत्र दाखिल किया गया हो।