बाहुबली से सफेदपोश बने धनजंय सिंह ने कई महीनों तक पुलिस को छकाने के बाद आखिरकार सरेंडर कर दिया। खास बात यह भी है कि आत्मसमर्पण करते वक्त भी धनंजय सिंह पुलिस की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहा। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो जौनपुर से पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने वकील का चोला पहन प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट में सरेंडर किया है। यह वहीं बाहुबली पूर्व सांसद हैं जिनपर पुलिस ने 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर रखा था।
पिछले ही साल मार्च के महीने में यह खबर आई थी कि इस बाहुबली को पकड़ने के लिए 6 थानों की पुलिस दिन-रात एक कर काम कर रही थी। दरअसल उस वक्त पुलिस को सूचना मिली थी कि धनंजय सिंह लॉकडाउन के दौरान राजधानी लखनऊ से जौनपुर अपने घर आए थे। जिसके बाद 6 थानों की पुलिस फोर्स को लेकर खुद एसपी उसे दबोचने के लिए गए थे। लेकिन धनंजय सिंह फरार हो गया था।
अजीत सिंह हत्याकांड का आरोप
पूर्व सांसद ने अजीत सिंह हत्याकांड में ही सरेंडर किया है। दरअसल लखनऊ के कठौता चौराहे पर अजीत सिंह की बीती 6 जनवरी को हत्या कर दी गई थी. इस मामले में अजीत की पत्नी रानू सिंह ने मऊ में जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह, आजमगढ़ के माफिया कुंटू सिंह उर्फ ध्रुव सिंह, अखंड सिंह और गिरधारी विश्वकर्मा उर्फ डॉक्टर के खिलाफ तहरीर दी थी।
अकूत संपत्ति, ED का शिकंजा
कहा जाता है कि धनंजय सिंह ने अकूत संपत्ति अर्जीत की है। यही वजह है कि उसपर ईडी का शिकंजा भी कस चुका है। आरोप है कि अपराध के बूते धनंजय सिंह ने करोड़ों रुपये की सम्पत्ति अर्जित की है। इन सम्पत्तियों में लखनऊ में विभिन्न स्थानों पर छह फ्लैट, दो फार्म हाउस, गोमतीनगर में लैब, फर्जी दस्तावेजों से बनायी गई कई कम्पनियां, दिल्ली, जौनपुर, वाराणसी, मऊ, फतेहगढ़, बाराबंकी में कई फ्लैट व मकान, पेट्रोल पम्प है। इसके अलावा धनंजय के नाम से विभिन्न स्थानों में स्टैंड, झारखण्ड में फार्म हाउस, व ईट-भठ्ठे चलते हैं। इस संबंध में ईडी और आयकर को पत्र लिखा गया है। इसके बाद ईडी सक्रिय हो गई।
मायावती के रहे करीबी
बाहुबली की पहचान के अलावा धनंजय सिंह की राजनीति में भी गहरी पैठ मानी जाती है। साल 2002 में तब की रारी विधानसभा सीट (अब मल्हनी सीट) से धनंजय सिंह ने पहली बार निर्दलीय जीत का परचम लहराया था। उस वक्त उनकी उम्र 27 साल थी। इसके बाद इसी सीट पर वो JDU की टिकट से चुनाव लड़े और फिर जीत गए। लेकिन धनंजय सिंह ने जल्दी ही तीर का साथ छोड़ा और हाथी पर सवार हो गए। हाथी का साथी बनते ही उन्होंने साल 2009 में जौनपुर लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर अपना दमखम दिखाया। कहा जाता है कि 2 साल बाद ही धनंजय सिंह का पार्टी के नेताओं से अनबन हो गया और फिर सुप्रीमो मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
रंगदारी मांगने का आरोप
धनंजय सिंह पर रंगदारी मांगने का आरोप भी लगा। ‘IANS’ की रिपोर्ट के मुताबिक जल निगम प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने आऱोप लगाया था कि पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने उनसे रंगदारी मांगी थी और नहीं देने पर उनका अपहरण करने की धमकी भी दी थी।