बांबे हाईकोर्ट के स्किन टू स्किन फैसले पर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में अदालत में कहा कि अगर कोई व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने पहनकर महिला से छेड़छाड़ करता है, तो उसे इस फैसले के अनुसार यौन उत्पीड़न के लिए दंडित नहीं किया जाएगा। उन्होंने तीखे लहजे में कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला एक गलत मिसाल पेश कर रहा है।
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लीगल सर्विसेज कमेटी को आदेश दिया कि वो बच्ची से छेड़छाड़ के आरोपी की तरफ से पैरवी करे, क्योंकि हाईकोर्ट के फैसले में शामिल मामले के आरोपी की ओर से अदालत में कोई पेश नहीं हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने एमिक्स क्यूरी सिद्धार्थ दवे से इस केस में मदद करने को कहा है।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने कहा कि नोटिस भेजने के बावजूद आरोपी ने पक्ष नहीं रखा इसलिए सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी उनकी पैरवी करे। अब मामले की सुनवाई 14 सितंबर को होगी सुनवाई।
गौरतलब है कि 19 जनवरी को बांबे हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग के शरीर के अंग को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टेक्ट के छूना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा। ऐसे मामले को आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ का अपराध माना जाएगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है। यह IPC की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है। धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक साल की कैद है, वहीं POCSO कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन साल कारावास है।
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ यूथ बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि हाईकोर्ट का फैसला उचित नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग की है। वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि बीते एक साल में पॉक्सो एक्ट के तहत 43 हजार मामले दर्ज किए गए हैं।