मैकगिल विश्वविद्यालय में शिक्षक वृंदा नारायण के मुताबिक जुलाई में अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद से, तालिबान ने तेजी से देश के बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर लिया है। राष्ट्रपति भाग गए हैं और सरकार गिर गई है। उनकी सफलता, अफगान बलों द्वारा प्रतिरोध की कमी और न्यूनतम अंतरराष्ट्रीय दबाव से उत्साहित तालिबान ने अपनी हिंसा तेज कर दी है। अफगान महिलाओं के लिए उनकी बढ़ती ताकत भयावह है क्योंकि तालिबान महिलाओं और लड़कियों को यौन गुलाम बनाता है।
जुलाई की शुरुआत में, बदख्शां और तखर के प्रांतों पर नियंत्रण करने वाले तालिबान नेताओं ने स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ विवाह के लिए 15 साल से अधिक उम्र की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की सूची प्रदान करने का आदेश जारी किया। अभी यह मालूम नहीं हो सका है कि उनके हुक्म की तामील हुई है या नहीं। यदि ये जबरन विवाह होते हैं, तो महिलाओं और लड़कियों को पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाया जाएगा और फिर से तालीम देकर प्रामाणिक इस्लाम धर्म कबूल कराया जाएगा।
इस आदेश ने इन क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं और उनके परिवारों में भय पैदा कर दिया है और उन्हें आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों की श्रेणी में शामिल होने और पलायन करने के लिए मजबूर किया है। अफगानिस्तान में मानवीय आपदा का आलम अपने पैर पसार रही है और तीन महीनों में ही 900,000 लोग विस्थापित हुए हैं। तालिबान का यह निर्देश इस बात की कड़ी चेतावनी देता है कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है और 1996-2001 के तालिबान के क्रूर शासन की याद दिलाता है, जब महिलाओं को लगातार मानवाधिकारों के उल्लंघन, रोजगार और शिक्षा से वंचित किया गया, बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया गया और एक पुरुष संरक्षक या महरम के बिना उनके घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई। यह दावा करने के बावजूद कि उन्होंने महिलाओं के अधिकारों पर अपना रुख बदल लिया है, तालिबान के हालिया कार्यों और हजारों महिलाओं को यौन दासता की ओर ढकेलने के यह ताजा इरादे उसके दावों के खिलाफ नजर आते हैं।