यूं तो उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों की कोई कमी नहीं। आज हम जिस बाहुबली की बात कर रहे हैं उसने कभी अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े डॉन दाउद इब्राहिम से भी पंगा लिया था। इतना ही नहीं यूपी के माफिया कहे जाने वाले मुख्तार अंसारी से भी इस डॉन की दुश्मनी रही। आज हम बात कर रहे हैं बाहुबली बृजेश सिंह की जिसने यूपी की राजनीति में भी दस्तक दी।

बृजेश सिंह उर्फ अरुण सिंह का जन्म वाराणसी में हुआ था। कहा जाता है कि उनके पिता रविंद्र सिंह की गिनती रसूखदार लोगों में होती थी और राजनीति में भी उनकी अच्छी पैठ थी। डॉन बनने के बाद बृजेश सिंह की गिनती कुख्यातों की लिस्ट में होने लगी। लेकिन कुख्यात बनने से पहले पढ़ाई-लिखाई के दिनों में बृजेश सिंह की गिनती होनहार छात्रों में होती थी।

बताया जाता है कि बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी होनहार थे। साल 1984 में उन्होंने इंटर की परीक्षा पास की थी। इस परीक्षा में उन्हें अच्छे अंक मिले। यूपी के ही एक कॉलेज से उन्होंने बीएससी की पढ़ाई भी की। वहां भी उनका नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था। पढ़ाई-लिखाई में होनहार के एक छात्र के डॉन बनने की कहानी बेहद चौंकाने वाली है।

पिता की हुई थी हत्या

27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में हरिहर सिंह औऱ पांचू सिंह समेत कुछ अन्य बदमाशों का नाम उस वक्त सामने आया था। यह भी कहा जाता है कि सियासी रंजिश में बृजेश सिंह के पिता की हत्या हुई थी। पिता की हत्या के बाद ही शुरू हुई बृजेश सिंह के माफिया बनने की कहानी। दरअसल बृजेश सिंह अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतारना चाहते थे। रविंद्र सिंह की हत्या के करीब एक साल बाद हरिहर सिंह की हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि इस हत्याकांड में बृजेश सिंह का ही हाथ था और इस कत्ल के बाद वो फरार भी हो गये थे।

जेल में हुई त्रिभुवन सिंह से दोस्ती

इसके कुछ महीनों बाद हरिहर सिंह के 5 अन्य साथियों की हत्या हुई। इन सभी को गोलियों से भून दिया गया था। इस कत्ल-ए-आम में भी बृजेश सिंह का नाम उछाला और पहली बार बृजेश सिंह गिरफ्तार हुए। जेल में बंद बृजेश सिंह की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के रहने वाले त्रिभुवन सिंह से हुई। दोनों के बीच दोस्ती इतनी गहरा गई दोनों एक साथ कई गंभीर वारदात में सक्रिय हो गये। धीरे-धीरे पूरे पूर्वांचल में इस गैंग की तूती बोलने लगी। शराब, रेशम और कोयले के धंधे में इस गैंग की एंट्री ने उस वक्त तहलका मचा दिया था।

मुख्तार अंसारी से हुई भिड़ंत

कहा जाता है कि बृजेश सिंह की छवि पूर्वांचल के बड़े माफिया के तौर पर बन गई थी। कोयले की ठेकेदारी को लेकर उस वक्त के और एक और बड़े माफिया मुख्तार अंसारी के साथ बृजेश सिंह का पंगा हो गया। ठेकेदारी और कोयले के कारोबार को लेकर दोनों गैंग के बीच कई बार गोलीबारी हुई जिसमें जानमाल का नुकसान भी हुआ।

दाउद से हुई मुलाकात

90 के दशक में बृजेश सिंह का उत्तर प्रदेश के बाहुबली मुख्तार अंसारी के गैंग से आमना-सामना हुआ। इस दौरान वह पुलिस और मुख्तार के गैंग से बचने के लिए मुंबई चले गए। यहां पहुंचने के बाद दाउद के करीबी सुभाष ठाकुर से उनकी मुलाकात हुई। कहा जाता है कि सुभाष ठाकुर ही वो शख्स था जिसके जरिए बृजेश सिंह दाउद से मिले। इसके बाद बृजेश ने दाउद के लिए काम भी शुरू कर दिया। दाउद के जीजा इब्राहिम कासकर की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश 12 फरवरी 1992 को जेजे अस्पताल पहुंचे। बताया जाता है कि यहां डॉक्टर का वेश बनाकर गवली के गैंग के 4 लोगों को पुलिस के पहरे के बीच बृजेश ने मार दिया था। उनकी इस शातिराना चाल को देखकर दाउद काफी खुश हो गया और बृजेश अंडरवर्ल्ड डॉन के और करीब आ गए।

दाउद से पंगा

हालांकि दो कुख्यातों की यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली। साल 1993 में हुए मुंबई ब्लास्ट के बाद दोनों में मतभेद हो गया। जानकारों की मानें तो बृजेश सिंह मुंबई को दहलाने की दाउद की योजना से पूरी तरह अनजान था। इस ब्लास्ट में हजारों बेगुनाह मारे गए और सैंकड़ों लोग घायल हुए। दाउद इब्राहिम के इस कदम के बाद दोनों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई। माना जाता है कि इसके बाद दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। हालांकि मुंबई ब्लास्ट के पहले ही दाऊद ने देश छोड़ दिया। बाद में साल 2008 में बृजेश सिंह को ओडिशा से गिरफ्तार किया गया।