60 के दशक में मुंबई का अपना रूआब था। उस वक्त देशभर के कोने-कोने से लोग रोजगार की तलाश में यहां आते थे। वजह ऐसी की लोगों को हर तरह का काम यहां मिल जाता था। हालांकि, जिन लोगों के पास किराए पर रहने की व्यवस्था नहीं होती वह फुटपाथ को अपना सहारा बना लेते। लेकिन 1960 का दशक मुंबई के फुटपाथ पर सोने वाले गरीब, मजदूरों के लिए काल साबित हुआ।
आज के समय में बहुत से लोगों के मन में साइको किलर के नाम से कुख्यात रमन राघव को लेकर यादें धुंधली होगी। या फिर कईयों को इस बारे में पता भी न हो लेकिन 60 के दशक में यह शख्स गरीबों के लिए यमराज से कम नहीं था। रमन राघव के पुराने इतिहास के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में ज्यादा जानकारी नहीं है। हालांकि, माना जाता था कि वह दक्षिण भारत का रहने वाला था।
1965-66 के समय में मुंबई में फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की हत्याओं की ख़बरों ने सभी को सन्न करके रख दिया था। पुलिस भी अनजान थी कि आखिर कौन है जो रात के अंधेरे में बेसहारों को अपना शिकार बना रहा है। अधिकतर रात में होने वाले कत्लों में हत्या का एक ही तरीका इस्तेमाल किया गया था। जिसमें लोगों के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था।
एक साल के अंदर करीब डेढ़ दर्जन लोगों के ऊपर जानलेवा हमले हुए, जिनमें से 9 लोग मारे गए। वहीं इस अनजान हमलावर के पकड़ में न आने के चलते मुंबई पुलिस सहित जनता भी हैरान थी। लोग शाम होते ही अपने-अपने घरों की ओर लौटने लगते। वह ऐसा समय था जब लोग खुद बचाव के लिए लकड़ी या डंडा लेकर चले लगे थे। हालांकि बीच के एक साल इन घटनाओं में ब्रेक लगा रहा।
साल 1968 में एक बार फिर हत्याओं का दौर शुरू हुआ लेकिन इन सबमें वारदात की जगहें अलग-अलग थी। पुलिस जांच में जुटी थी और कई घायलों की मदद से इस हमलावर का स्केच बनवाया गया। जिसके आधार पर मुंबई पुलिस के एक इंस्पेक्टर ने इस खूंखार हत्यारे रमन राघव को पहचान लिया। थोड़े ही समय में गिरफ्तार रमन राघव को पूछताछ के बाद सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
इसी बीच इन हत्याओं का मामला क्राइम ब्रांच के पास गया और 27 अगस्त 1968 को रमन राघव को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस पूछताछ में रमन ने बताया कि तीन साल के भीतर उसने करीब 40 लोगों को मौत के घाट उतारा है। वहीं पुलिस का मानना था कि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है। इस हत्यारे ने फुटपाथ पर सोये बुजुर्ग महिला-पुरुष, युवा और बच्चों सभी को अपना शिकार बनाया।
पूछताछ के दौरान पुलिस ने उसकी मेडिकल जांच कराई तो डॉक्टरों के पैनल ने उसे मानसिक रूप से विकृत बताया। फिर निचली अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद उसे मौत की सजा दे दी। इस सबके बीच रमन राघव ने सजा के खिलाफ कोई अपील भी नहीं की। हाई कोर्ट ने तीन मनोवैज्ञानिकों के पैनल से उसके मानसिक स्तर की जांच कराई।
मनोवैज्ञानिकों के पैनल द्वारा किये गए कई घंटो के इंटरव्यू के बाद निष्कर्ष निकला कि वह दिमागी रूप से बीमार है। ऐसे में उसकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया। इसके बाद उसे पुणे की यरवदा जेल में भेज दिया गया, जहां कई सालों तक उसका इलाज भी चला। वहीं, साल 1995 में साइको किलर रमन राघव की किडनी की बीमारी के चलते सस्सून अस्पताल में मौत हो गई।