वर्दी की पहचान हमारे रक्षक के तौर पर होती है लेकिन जरा सोचिए अगर यहीं रक्षक भक्षक बन जाए तो क्या होगा? आज के इस कड़ी में हम एक ऐसे ही सीरियल रेपिस्ट, किलर और लुटेरे की बात करेंगे जिसकी करतूतों ने उसे रक्षक से बना दिया दानवों का देवता। कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में साल 1969 में माकिल गांव में उमेश रेड्डी का जन्म हुआ था। बचपन से पढ़ाई-लिखाई में औसत उमेश रेड्डी की नौकरी सीआरपीएफ में लग गई। इस नौकरी में उसकी पहली पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में हुई। तब किसी को अंदाजा नहीं था कि वर्दी में रखवाला नजर आने वाला उमेश दरअसल दिमाग से एक वहशी दरिंदा है। जानकारी के मुताबिक साल 1996 में उमेश की नौकरी डिस्ट्रिक्ट आर्म्ड रिजर्व में लगी और इसी साल उसपर उसपर पहली बार नवंबर दिसंबर के महीने में चित्रदुर्ग जिले में एक लड़की के साथ वहशीपना करने का आरोप लगा। साल 1996 में उसने एक और लड़की की हत्या कर दी और हत्या से पहले उसके साथ बलात्कार भी किया।
इसके बाद तो जैसे कॉन्सटेबल उमेश रेड्डी ने ठान ली कि वो नौकरी में अपना नाम करे या ना करे लेकिन वो गुनाहों का देवता जरूर बनेगा। साल 2002 आते-आते उमेश पर कई अलग-अलग जगहों पर रेप, हत्या और लूट के आरोप लग गए। मैसूर, मुंबई, अहमदाबाद, बड़ौदा और बेंगलुरु में उसपर अलग-अलग केस दर्ज हुए। इस साल तक उसपर घिनौने अपराधों के 19 मामले दर्ज हुए जबकि 2009 तक उसपर 25 मामले दर्ज हो गए। इस दौरान उमेश साल 2002 में पुलिस के कब्जे में भी आया लेकिन पुलिस को चकमा देकर फरार होने में कामयाब हो गया। फरार होने के बाद भी उमेश ने कई बलात्कार और लूटपाट को अंजाम दिया।
जब पुलिस ने दोबारा इस दरिंदे को दबोचा तो उसके करतूतों के पन्ने खुलते ही चले गए। उमेश जिस तरीके से कत्लेआम और दुष्कर्मों को अंजाम दिया करता था उसे जानकर सभी दंग रह गए। पता चला कि उमेश ज्यादातर उस वक्त महिलाओं पर हमले करता था जब वो घर में अकेली होती थीं। वो चाकू के बल पर लड़कियों को अपने कब्जे में ले लेता था। वो उनके हाथ बांध देता और फिर उनके साथ दुष्कर्म कर उनकी हत्या कर देता था। इतना ही नहीं इसके बाद वो घर में डकैती भी करता था। उमेश लड़कियों के अंडरगार्मेन्ट्स चुरा लेता था और वहां से फरार हो जाता था। जब पुलिस ने उसे पकड़ा तो उसके पास से जो बैग बरामद हुए उसमें से महिलाओं के 10 ब्रा, 18 जोड़े पैंटिज, 6 साड़ी, 2 नाईटी, 8 चुंदरी और 4 ब्लाउज बरामद हुए। यह भी पता चला कि उमेश महिलाओं के कपड़े पहनता भी था।
18 फरवरी 2009 को अदालत ने उमेश को उसके जघन्य अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई। उमेश ने निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट और यहां तक की सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई कि उसकी मौत की सजा को माफ कर दिया जाए। लेकिन सभी अदालतों में उसकी याचिका खारिज हो गई। कर्नाटक हाईकोर्ट ने तो सुनवाई के वक्त उमेश पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘वो तो दानव है’। साल 2012 में उमेश की मां ने राष्ट्रपति के पास भी अपने इकलौते बेटे की सजा पर रहम के लिए गुहार लगाई लेकिन साल 2013 में राष्ट्रपति ने उसकी सजा को टालने से इनकार कर दिया। अब उमेश हिंदाल्गा में बेलगावी सेंट्रल जेल में बंद अपनी बची हुई सांसे गिन रहा है क्योंकि कभी भी सजा का वारंट आ सकता है और वो फांसी के फंदे पर लटक सकता है।
इस बीच साल 2013 में उमेश पर एक कन्नड़ फिल्म भी बनी। उस वक्त फिल्म का नाम था ‘उमेश रेड्डी’। फिल्म के रिलीज होने के बाद उमेश की 75 वर्षीय मां गोवारम्मा ने अदालत में अपील की कि फिल्म से उनके बेटे का नाम हटाया जाए। इसके बाद अदालत ने फिल्म से ‘रेड्डी’ शब्द को हटाने का हुक्म सुनाया। 2 सितंबर 2013 को यह फिल्म दोबारा रिलीज की गई। इस बार फिल्म का नाम बदलकर ‘खतरनाक’ कर दिया गया।

