सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को आदेश दिए है कि वह उस 75 साल के शख्स को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दे, जिसने दावा किया है कि वह एक भारतीय जासूस था और 1970 के दशक में जासूसी के आरोप में उसे पाकिस्तान में 14 साल की कैद का सामना करना पड़ा था।
मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने स्पष्ट किया कि अदालत उनके दावों पर अपने विचार व्यक्त नहीं कर रही लेकिन मामले के सभी पहलुओं को देखते हुए उन्हें अनुग्रह राशि दी जानी चाहिए। पीठ ने तीन सप्ताह के भीतर इस राशि को याचिकाकर्ता को दिए जाने के निर्देश दिए हैं।
याचिकाकर्ता का क्या था दावा
इस मामले में राजस्थान के रहने वाले महमूद अंसारी ने दावा किया था कि उन्होंने साल 1966 में डाक विभाग में नौकरी शुरू की थी। ‘पूर्व जासूस‘ अंसारी ने दावा किया था कि इसी नौकरी के दौरान 12 दिसंबर 1976 को पाकिस्तानी रेंजरों ने उन्हें जासूसी के आरोप में पकड़ लिया गया था। अंसारी के मुताबिक, पाकिस्तान में जासूसी के आरोपों को लेकर जब उनपर मुकदमा चलाया गया तो साल 1978 में उन्हें 14 साल जेल की सजा सुनाई गई। इसी के चलते, भारत में उनकी नौकरी चली गई और फिर साल 1980 में उन्हें नौकरी से हटा दिया गया।
1989 में देश वापस लौटा था याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता महमूद अंसारी ने कहा कि पाकिस्तान की जेल में रहने के दौरान उन्होंने खुद के लिए कई कोशिशें की कि लेकिन वह हर बार असफल रहे। महमूद ने बताया कि जब साल 1989 में सजा पूरी होने के बाद रिहा होकर वापस देश आए तो तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त किए जाने की सूचना मिली। इसके बाद ही उन्होंने कोर्ट का रुख किया।
केंद्र ने किया था याचिका का विरोध
केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने महमूद अंसारी द्वारा दायर याचिका का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि यदि अनुग्रह राशि देने का आदेश दिया जाता है तो इसका मतलब यह है कि अदालत याचिकाकर्ता के द्वारा किए गए दावों को स्वीकार कर रही है।
अंसारी के वकील का दावा- पाक में अंजाम दिए दो मिशन
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता समर विजय सिंह ने कहा कि अंसारी रेल मेल सेवा में कार्यरत थे। 1972 में, उन्हें भारत सरकार के ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस से एक प्रस्ताव मिला और उन्हें सीक्रेट मिशन के लिए दो बार पाकिस्तान भेजा गया। हालांकि, तीसरी बार अंसारी को पाकिस्तानी रेंजर्स ने 23 दिसंबर, 1976 को गिरफ्तार कर लिया था।
अधिवक्ता समर विजय सिंह के मुताबिक, इंटेलिजेंस की तरफ से देश के लिए सीक्रेट ऑपरेशन चलाने की पेशकश को अंसारी और डाक विभाग ने स्वीकार कर लिया था और उन्हें विभाग की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया था। इस सारी दलीलों के बीच ही सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट की बेंच ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह ‘पूर्व जासूस’ को 10 लाख रुपये का भुगतान करे।