साक्षी पर 16 बार चाकू से वार, पत्थर से सिर फोड़ दिया, आंते बाहर आ गईं। ये साहिल का कारनामा था, उसकी हैवानियत की पराकाष्ठा थी। श्रद्धा वॉकर शादी के सपने संजो रही थी, आफताब तैयार नहीं था, नाराज होकर खून कर दिया, शरीर के कई टुकड़े कर दिए और जंगलों में फेंक आया। निकिता की अपनी बॉयफ्रेंड साहिल से लड़ाई, कहासुनी ज्यादा हो गई, गुस्से में आकर पहले मारा और फिर लाश को फ्रिज में ठूंस दिया। इन तीनों ही वारदातों में एक कड़ी कॉमन है- हैवानियत। आखिर कोई आदमी क्यों बन जाता है हैवान? गुस्सा तो सभी को आता है, लेकिन ये जो जुर्म को अंजाम दिया जा रहा है, इसे क्या समझा जाए?
क्या होती है ये Criminal Psychology?
अब किसी भी अपराधी के मन में क्या चल रहा है, वो कैसी हरकते कर रहा है, उसकी बॉडी लैंग्वेज क्या है, क्या बातें वो बोल रहा है, इसका पता Criminal Psychology के जरिए लगाया जा सकता है। जितने भी क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट होते हैं, वो यहीं काम करते हैं, क्रिमिनल के मन में क्या चल रहा है, कोई जुर्म किया गया, तो उसके पीछे की मंशा क्या थी। इसी तरह इन जुर्म के पीछे का जो गुस्सा होता है, उसकी असल समीक्षा भी साइकेट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट सटीक तरह से करते हैं। मेडिकल साइंस में Criminal Psychology की परिभाषा कुछ इस तरह की बताई गई है- अपराधियों के विचारों और व्यवहार को पढ़ना Criminal Psychology कहलाता है। अपराधी ने कोई जुर्म किया, लेकिन उस तरह से क्यों किया, वो ‘क्यों’ ही क्रिमिनल साइकोलॉजी के अंदर आता है।
गुस्सा आना आम, लेकिन साहिल का दिमाग क्या बताता है?
अब क्योंकि साक्षी हत्याकांड हो गया है, साहिल ने इंसानियत को पूरी तरह शर्मसार किया है, तो उसके दिमाग को डीकोड करने के लिए हमने फोर्टिस अस्पताल की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर हेमिका अग्रवाल और 15 सालों से साइकेट्री फील्ड से जुड़े हुए डॉक्टर नंद किशोर से बात की है। अब आप लोग सोच रहे होंगे कि गुस्सा तो सभी को आता है, हमे भी, आपको भी, लेकिन साहिल ने जो किया, वो गुस्से से कुछ अलग था, उसके पीछे मनोविज्ञान सामान्य नहीं हो सकता है। इस बारे में डॉक्टर किशोर कहते हैं कि गुस्सा तो देखिए सभी को आता है, लेकिन जो नॉर्मल पर्सन होता है, वो उसे कंट्रोल कर लेता है। लेकिन वहीं अगर कोई क्रिमिनल पर्सनालिटी वाला इंसान है, या कोई एंटी सोशल पर्सनालिटी है, वो अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पाता है। आप कह सकते हैं कि उसे उस गुस्से से एक ‘Gratification’ भी मिलती है, आसान शब्दों में किसी को चोट पहुंचा कर अंदरूनी खुशी मिलती है। लेकिन ये बातें तब लागू होती हैं जब इंसान को किसी तरह का पर्सनालिटी डिसऑर्डर होता है।
क्या सिर्फ गुस्से में साहिल ने हत्या की या कुछ और?
डॉक्टर नंद किशोर ने जो बताया, उसके मुताबिक कई ऐसे अपराधी हो सकते हैं जिन्हें किसी दूसरे को चोट पहुंचाकर खुशी मिले, यानी कि जुर्म करने के असल कारण पीछे छूट सकते हैं और सिर्फ किसी को चोट पहुंचाने के इरादे से ही ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम दिया जा सकता है। इसी बात को फॉर्टिस अस्पताल की डॉक्टर हेमिका अग्रवाल भी मानती हैं। साहिल ने जो भी कुछ किया है, वे उसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करती हैं, लेकिन उसकी मनोवस्था पर कुछ रोशनी डालती हैं। डॉ हेमिका कहती हैं कि गुस्सा, भूख, ये सब हमारे नॉर्मल इमोशन होते हैं, लेकिन जब ये सब एक्सट्रीम पर चला जाता है तो एंड प्रोडक्ट कुछ भी हो सकता है, जैसे इस केस में एग्रेशन ने किसी की जान ले ली। हम ये कहे कि उसे तुरंत गुस्सा आया, और उसने ऐसा कर दिया, ऐसा नहीं हो सकता। अगर किसी में एग्रेशन का ऐसा रेंज देखने को मिलता है, संभावना ये है कि इससे पहले भी उस शख्स को लेकर गुस्से की शिकायतें रही होंगी, ऐसा नहीं हो सकता कि उसकी पर्सनालिटी को लेकर माता-पिता या फिर स्कूल के टीचरों को ना पता हो, वहीं वो रेड फ्लैग भी हैं, जिन्हें पकड़ना जरूरी होता है।
शक का कीड़ा या बदले की भावना, साहिल के मन में क्या?
अब यहां एक और बात समझना जरूरी है, साहिल ने पुलिस को बताया कि उसे इस जुर्म को करने का कोई पछतावा नहीं है, वो ये मानकर चल रहा है कि साक्षी ये सबकुछ डिजर्व करती थी। उसने अपने मन में कुछ कारण सेट कर लिए थे और बस सीधे सजा सुना दी। पुलिस पूछताछ में उसने कहा था कि मैंने सबक सिखा दिया, मारना था, बस मार दिया। उसके इस रवैये को लेकर नंद किशोर बताते हैं कि अगर किसी के मन में शक बैठ जाए, उसे लगे कि उसका पार्टनर उसे चीट कर रहा है, तो भी उसे ऐसा गुस्सा आ सकता है। हो सकता है ये सिर्फ शक पर आधारित हो, इसमें कोई वास्तविकता ना हो। लेकिन उस शक की वजह से इस तरह का जुर्म किया जा सकता है। नंद किशोर इस बात पर भी जोर देते हैं कि ऐसा हो सकता है कि ‘Fit Of Rage’ में ये किया गया हो, उस स्थिति में सही-गलत की पहचान करना ही मुश्किल हो जाता है। वे ये भी मानते हैं कि साहिल ने होशो हवास में सबकुछ किया, उसे पहले से पता था कि इसका परिणाम क्या हो सकता है, ऐसे में ये कहकर वो नहीं बच पाएगा कि उसने जो किया, उस बारे में उसे पता नहीं था, कानून में जो सजा होगी, वो उसे मिलेगी ही।
क्या बचपन से ही हिंसक रहा होगा साहिल, क्या है रेड फ्लैग?
नंद किशोर ये भी मानते हैं कि साहिल पर एक चीज पूरी तरह हावी हो चुकी थी- She Deserved That। उसके मन में ये बात बैठ चुकी थी, इसलिए उसने जो किया, उसे उसका कोई पछतावा नहीं हो रहा, वो अपने हर एक्शन को इसी वजह से जस्टिफाई कर रहा है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए हेमिका बताती हैं कि अगर किसी अपराधी में अपने जुर्म को लेकर पश्चताप नहीं होता, तब ये बात और ज्यादा पुख्ता हो जाती है कि उसका पिछला बैकग्राउंड में कुछ ऐसा ही रहा होगा। वे कहती हैं कि ऐसे लोग छोटी-मोटी हरकतें जैसे कि छोटे बच्चों को परेशान करना, जानवरों के प्रति बहुत ज्यादा हिंसक होना, लगातार नियम तोड़ना, चीटिंग करने की टेंडेंसी रहना, चोरी करना, नशे के आदि हो जाना, स्कूल में किसी दूसरे बच्चे को परेशान करना, ऐसे लोगों में ये सब कॉमन हो जाता है। ये नहीं कहा जा सकता कि एक ही दिन के अंदर इस तरह के जुर्म को अंजाम दे दिया गया हो।
अब एक सवाल ये आता है कि साहिल या फिर इस केस में आफताब की बात भी की जाए तो उन्होंने जिस तरह की हैवानियत दिखाई, क्या इसका कनेक्शन उनके बचपन से निकल सकता है? क्या ऐसा हो सकता है कि इन दोनों की ही ऐसी परवरिश रही हो या ऐसा माहौल रहा हो जिस वजह से उनका दिमाग इतना टॉक्सिक हो गया हो? इस सवाल पर दोनों नंद किशोर और डॉक्टर हेमिका की समान राय है। दोनों ही मानते हैं कि बचपन में कैसा माहौल रहा, उसका असर भी आने वाले सालों पर पड़ सकता है। इस सवाल पर नंद किशोर कहते हैं कि ये समझना जरूरी है कि हमारा जो व्यक्तित्व होता है, या पर्सनालिटी रहती है, 18 की उम्र तक आते-आते वो स्थिर हो जाती है। कुछ ट्रेट्स होते हैं, झूठ बोलना, चोरी करना, दूसरों की बुली करना, अगर ये सब बचपन से ही किसी की पर्सनालिटी का हिस्सा रहे, तो आने वाले सालों में ये बढ़ जाता है और इसी वजह से उस शख्स को एंटी सोशल पर्सनालिटी कहा जाता है। बचपन में जब किसी भी बच्चे में ये सार चीजें दिखती हैं तो इसे Conduct Disorder कहा जाता है, अगर उसमें सुधार नहीं होता तो आगे चलकर यही एंटी सोशल पर्सनालिटी बन जाता है। अगर साहिल की हिस्ट्री को ट्रेस किया जाए, तो उसमें भी ऐसे लक्षण होने की पूरी संभावना है।
Rejection ना झेलने की आदत, ब्रेक अप से कैसे बाहर निकलें?
वैसे साक्षी हत्याकांड वे एक बात और देखने को मिली, वो थी Rejection। साक्षी, साहिल के साथ अपने रिश्तो को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी। कारण जो भी रहा हो, उसने ‘ना’ बोल दिया था। लेकिन साहिल उस ‘ना’ को स्वीकार ही नहीं कर सका। उसके लिए वो ना उसकी इज्जत का सवाल बन गया। अगर अभी के समय की भी बात हो तो ब्रेक अप बहुत आम बात हो गई है, रिश्ते बनते-टूटते रहते हैं, लेकिन सवाल ये है कि किसी लड़की या फिर लड़के के ‘नो’ को दूसरा पार्टनर कैसे स्वीकार कर रहा है। साहिल ने अपराध की राह पकड़ ली, लेकिन सामान्य स्थिति में क्या करना चाहिए, क्या इस दौर से बाहर निकलने का कोई हेल्दी तरीका भी होता है? अब इस सवाल का जवाब हां है और दोनों एक्सपर्ट ने हमे विस्तार से इस बारे में बताया भी है।
ब्रेक अप्स को लेकर डॉक्टर हेमिका अग्रवाल कहती हैं कि आम तौर पर रिजेक्शन को स्वीकार नहीं करना नॉर्मल है, फर्क ये है कि हम लोग इतने हिंसक नहीं हो जाएंगे। इसलिए इसे सिर्फ रिजेक्शन से जोड़ना नहीं चाहिए, बड़ा सवाल ये है कि इस रिजेक्शन से कैसे उबरा जाए। अगर आप अपना सोशल सर्कल सही रखते हैं, दोस्त,रिश्तेदार, परिवार के करीब रहते हैं, तो आपको ऐसे दौर से बाहर निकलने में बहुत मदद मिलती है। लोगों को बेशर्म होने की जरूरत है, मदद मांगने के लिए पूरी तरह बेशर्म हो जाना चाहिए। सच्चाई ये है कि अकेले रहने का जो ट्रेंड शुरू हो गया है, उसने भी लोगों की सेहत पर बहुत असर डाला है। उसी वजह से ब्रेक अप्स से उबरना भी मुश्किल हो जाता है। डॉक्टर हेमिका ये भी मानती हैं कि मौत और ब्रेक अप में एक बात कॉमन रहती है।
साहिल को पछतावा नहीं, क्या डिप्रेशन में चला जाएगा?
जब किसी करीबी की मौत होती है, तब भी मातम मनाया जाता है, लेकिन कुछ समय बात सबकुछ ठीक हो जाता है। उसी तरह जब कोई रिलेशनशिप मरता है, दुखी होना नॉर्मल है, लेकिन उसे एसेप्ट कर आगे बढ़ना ज्यादा जरूरी हो जाता है। इस बारे में नंद किशोर भी कहते हैं कि आजकल के युवा को तुरंत रिजल्ट चाहिए, या ग्रेटिफिकेश चाहिए, दिल टूटता है तो सीधे बदले की भावना आ जाती है। लेकिन जब आप अपने उसी गुस्से को किसी दोस्त या परिवार के साथ शेयर करते हो, आपका तनाव कम होता है। इसके अलावा गेम खेलना, म्यूजिक का शौक तो गाने सुनना, ऐसा कर आप अपनी एनर्जी को सही जगह इस्तेमाल कर पाते हैं। नंद किशोर ने बड़ी बात बताते हुए ये भी कहा है कि हो सकता है कि आने वाले समय में साहिल डिप्रेशन का भी शिकार हो जाए क्योंकि उसके पास शायद वो सपोर्ट सिस्टम मौजूद ही नहीं है जिससे वो खुद की कोई मदद कर पाए।