जानेमाने कपड़ा व्यापारी और वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन श्री पॉल ओसवाल से बीते दिनों साइबर ठगों ने सात करोड़ रुपये ठग लिए थे। खुद को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) का अधिकारी बता कर ठगों ने पूरे वारादात को अंजाम दिया था। साथ ही पूरे घटनाक्रम को “प्रामाणिक” बनाने के लिए आरोपियों ने फर्जी अदालती सुनवाई की भी व्यवस्था की थी।
लुधियाना के पुलिस उपायुक्त (DCP) जसकिरणजीत सिंह तेजा ने बताया कि साइबर ठगों ने ओसवाल से संपर्क किया और उनसे जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले से संबंधित आपत्तिजनक दस्तावेज होने का दावा किया। साथ ही ठगों ने उन्हें अविलंब गिरफ्तारी की धमकी दी और कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को पहले ही सूचित कर दिया गया है।
इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट के अनुसार पूरी घटना को “प्रामाणिक” बनाने के लिए शातिर ठगों ने एडवांस टेक्निक का इस्तेमाल कर एक नकली सीबीआई ऑफिस का सेटअप भी तैयार किया, जिसमें मौजूद लोगों ने सीबीआई की वर्दी में बैठकर वीडियो कॉल किया और धाराप्रवाह अंग्रेजी में बातचीत की।
इतना ही नहीं, अपराधियों ने फोन पर सुप्रीम कोर्ट की फर्जी सुनवाई की भी व्यवस्था की। एक शख्स जो वकील बनकर ओसवाल का मामला पेश कर रहा था, उसका नाम ले रहा था और उसे आश्वस्त कर रहा था कि उसको बचाने की कोशिश की जा रही है।
संभावित गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई के भारी दबाव के कारण ओसवाल ने ठगों की ओर से दिए गए अलग-अलग बैंक खातों में किश्तों में कुल 7 करोड़ रुपये ट्रांस्फर किए, जिसमें शुरुआत में 4 करोड़ रुपये, बाद में 3 करोड़ रुपये शामिल हैं।
हालांकि, पूरे मामले में दो दिन बाद ही शिकायत दर्ज की गई, जिसके बाद लुधियाना की साइबर क्राइम टीम को जांच पड़ताल शुरू की। लुधियाना के पुलिस उपायुक्त (DCP) ने बताया कि मामले में दो संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही 5.25 करोड़ रुपये भी रिकवर कर लिए गए हैं। अन्य सात संदिग्धों की तलाश में पुलिस जुटी हुई है।
घटना के बाद डीसीपी तेजा ने व्यापारियों से अपील की कि वे साइबर ठगों के प्रति सजग रहें. उन्होंने कहा कि बाकी संदिग्धों की गिरफ्तारी के बाद और भी खुलासे हो सकते हैं। पुलिस को शक है कि ठगों ने धोखाधड़ी करने के लिए ओसवाल पर वित्तीय अनियमितताओं का झूठा आरोप लगाने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया।