2002 Gujarat Riots:गुजरात के पंचमहल जिले के हलोल की एक अदालत (Halol court) ने मंगलवार को 2002 के गोधरा कांड (Godhara Burning Train) के बाद हुए दंगों में हत्या और दंगे के 14 आरोपियों को बरी (Acquits) कर दिया। मुकदमा दर्ज होने के 18 साल बाद तक मामला लंबित रहने के दौरान पांच अन्य अभियुक्तों की मौत (Death) हो जाने के कारण उन्हें मुकदमे से हटा दिया गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) हर्ष बालकृष्ण त्रिवेदी ने कहा कि अभियोजन पक्ष (Prosecution) इस मामले को साबित करने में विफल रहा। इसके कारण आरोपियों को बरी कर दिया गया।

अदालत ने की The rule of corpus delicti की चर्चा

हलोल कोर्ट के एडिशनल सेशन जज (ASJ) हर्ष बालकृष्ण त्रिवेदी ने फैसले में कॉर्पस डेलिक्टी के नियम (The rule of corpus delicti) पर भी भरोसा जताया। उन्होंने कहा कि अपराध के मामले से जुड़ा यह “सामान्य नियम है कि जब तक किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता कॉर्पस डेलिक्टी की स्थापना की जा सकती है। अदालत ने कहा, ” सात जनवरी 2024 को दर्ज इस मामले में एफ.एस.एल. विशेषज्ञ ने बताया कि ‘पूरी तरह से जली हुई हड्डी के टुकड़ों पर कोई डीएनए प्रोफाइलिंग परिणाम प्राप्त नहीं होगा।’ कथित तौर पर इसे लापता व्यक्तियों का बताया जा रहा था। तब कॉर्पस डेलिक्टी के नियम पर स्वचालित रूप से विचार किया जाना आवश्यक था।

Halol Court ने निष्कर्ष में इन तथ्यों पर दिया जोर

हलोल की अदालत (Halol Court) ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष अपराध के संदिग्ध स्थान को भी साबित नहीं कर सका। क्योंकि अपराध के संदिग्ध स्थान से शारीरिक अवशेष बरामद नहीं किए जा सके। अदालत ने यह भी नोट किया कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध स्थल पर अभियुक्तों की उपस्थिति या अपराध में उनकी विशिष्ट भूमिका को स्थापित करने में भी विफल रहा। अभियुक्तों से अपराध के लिए इस्तेमाल किए गए कथित हथियारों को बरामद करने में विफल रहा। इसके अलावा संदिग्ध अपराध स्थल से मिला पदार्थ भी कोई ज्वलनशील पदार्थ नहीं था।

क्या है पंचमहल का पूरा मामला

यह मामला 2002 का है। उस समय गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन (Sabarmati Express Train) में आग लगने के बाद पूरे गुजरात में सांप्रदायिक दंगे (Gujarat Communal Riots 2002) भड़क उठे थे। इस मामले कि मूल शिकायत के अनुसार, कलोल राहत शिविर में डेलोल गांव से भागे कई मुस्लिमों ने आरोप लगाया कि उनके परिवार के सदस्य लापता हैं। एक अन्य राहत शिविर में रहने वाले ने भी शिकायत की थी कि वह 150-200 लोगों की भीड़ से खुद को बचाने के लिए अपने बेटे के साथ गांव में अपने घर से भाग गया था। इसके अलावा गांव के 18 मुसलमान लापता थे।

मामले में बनाए गए थे 20 आरोपी

इस मामले में बाद की जांच में जली हुई हड्डियों की बरामदगी और कई लोगों की वापसी हुई थी। कई लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था। इस मामले में आरोपी के रूप में 20 लोगों की शिकायत की गई थी। वे भीड़ का हिस्सा थे। शिकायत करने वालों ने दावा किया कि इन आरोपियों को तलवार (Sword) और कुल्हाड़ी जैसे हथियारों से उनके परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था। जांच अधिकारियों द्वारा हथियार (Weapons) बरामद नहीं किए जा सके थे।

सुनवाई में 80 गवाहों ने दिया था बयान, इन्हें किया गया बरी

इस मामले में 2004 में चार्जशीट (Chargesheet) दायर की गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, सबूत (Evidence) मिटाने के लिए 17 लोगों को भीड़ ने 1 मार्च, 2002 को मार डाला था और उनके शवों को जला दिया था। अदालत की सुनवाई के दौरान 84 गवाहों का बयान दर्ज कराया गया था। कोर्ट की ओर से बरी किए गए 14 लोगों में मुकेश भारवाड़, किलोल जानी, अशोकभाई पटेल, नीरवकुमार पटेल, योगेशकुमार पटेल, दिलीपसिंह गोहिल, दिलीपकुमार भट्ट, नसीबदार राठौड़, अलकेश कुमार व्यास, नरेंद्रकुमार कछिया, जिनाभाई राठौड़, अक्षयकुमार शाह, किरीटभाई जोशी और सुरेशभाई पटेल शामिल हैं।