गुजरात से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक शख्स को जेल अधिकारियों की लापरवाही के कारण तीन साल और जेल में बिताने पड़े। दरअसल, अधिकारी ईमेल के साथ भेजे गए जमानत के आदेश को खोल नहीं पाए। अब गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को जेल में तीन साल अधिक समय बिताने वाले कैदी को एक लाख रुपये देने का आदेश दिया है। कोर्ट का कहना है कि यह राशि 14 दिन के भीतर दी जानी चाहिए।
दोषी की पहचान 27 साल के चंदनजी ठाकोर के रूप में हुई है। वह एक हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। हालांकि 29 सितंबर, 2020 को उसकी सजा निलंबित कर दी गई थी। फिर भी वह 2023 तक जेल में ही रहा क्योंकि जेल अधिकारियों ने ईमेल के साथ भेजे गए जमानत के आदेश को खोला ही नहीं।
दोषी को एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश
यह मामला तब सामने आया जब दोषी ने नई जमानत याचिका दायर की। इसके बाद न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति एमआर मेंगडे की खंडपीठ ने राज्य सरकार को दोषी को एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस मामले में न्यायालय ने आवेदक को नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने इस आदेश के बारे में जेल अधिकारियों को स्पष्ट रूप से सूचित किया था। ऐसा नहीं है कि सिर्फ इस तरह का ई-मेल भेजा गया था, जिसे जेल अधिकारी खोल नहीं पाए। यह जेल अधिकारियों की लापरवाही है कि वे कोविड -19 महामारी के समय कार्रवाई नहीं कर सके। उन्हें ईमेल भी किया गया था हालांकि वे उसे खोल नहीं पाए। हालांकि मेल जिला सत्र न्यायालय को भी भेजा गया था। हालांकि किसी ने इसे देखा ही नहीं। इस मेल में दोषी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया था।
‘यह मामला आंखें खोलने वाला है’
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर दोषी को रिहा कर दिया गया होता को वह आजाद होता। उसे सिर्फ इसलिए जेल में रहना पड़ा क्योंकि इस कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश पर जेल अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। इसके बाद कोर्ट ने कैदी की रिहाई का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि कैदी की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए वे उसे मुआवजा देना चाहते हैं।
वहीं इस मामले पर जेल अधिकारियों ने दावा किया कि वे कोविड महामारी के कारण मामले में आवश्यक कार्रवाई नहीं कर सके। अधिकारियों ने यह भी कहा कि वे मेल के साथ अटैच फाइल को खोल नहीं सके।
मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने सभी जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLS) को उन सभी कैदियों का डेटा एकत्र करने का भी निर्देश दिया जिन्हें जमानत मिल चुकी है, लेकिन अभी तक रिहा नहीं किया गया है।