मुंबई में सोने की तस्करी करने वालों में हाजी मस्तान का नाम सबसे बड़ा था। लेकिन हाजी मस्तान सबसे बड़ा तस्कर तब बना, जब उसने बखिया बंधुओं (Bakhiya Bandhu) को साथ लिया। हाजी मस्तान ने बखिया भाइयों के सहारे ही तस्करी की दुनिया के हर दांव-पेंच सीखे थे।
80 के दशक तक मुंबई में हाजी मस्तान (Haji Mastan) ही तस्करी का बादशाह था, उसे लोग तस्करी किंग कहते थे। लेकिन पुराने समय यानी 50 के दशक में जब हाजी मस्तान तस्करी के काम में नया था तो अरब और यमन से आने वाले सोने की तस्करी सुकुर नारायण और राजनारायण बखिया ही करते थे। यह बखिया बंधु सोने की तस्करी को गुजरात के बॉर्डर में अंजाम देते थे। लेकिन अब आपको बताते हैं कि हाजी मस्तान को मस्तान भाई किसने बनाया।
दरअसल, सुकुर नारायण और राजनारायण बखिया गुजरात के रहने वाले थे। ये कभी भी सोने की तस्करी में रंगे हाथों नहीं पकड़े नहीं गए। कई बार उनके खिलाफ पुलिस ने मामले दर्ज किये, लेकिन हर बार उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता। जहां 50 के दशक में हाजी मस्तान पनप रहा था तो वहीं दूसरी ओर बखिया बंधु कई सालों से गुजरात, गोवा, दमन और दीव के बेताज बादशाह थे। बखिया बंधुओं की मर्जी के बिना एक पत्ता भी ही नहीं हिलता था। कुछ सालों बाद 1956 में हाजी मस्तान ने बखिया के साथ काम शुरू किया और अपने भरोसे को मजबूत कर दिया।
बखिया बंधुओं के साथ काम करते-करते हाजी मस्तान ने वो सब गुर सीख लिए, जो तस्करी की प्राथमिकता थे। साथ ही मस्तान ने बखिया बंधुओं के साथ काम करने के दौरान अपने नेटवर्क को और बड़ा कर लिया। जब राजनारायण की मौत हो गई और सुकुर नारायण अकेला था तो हाजी मस्तान उसके साथ खड़ा रहा।
70 का दशक आते-आते हाजी मस्तान ने करीम लाला, वरदा के साथ काम करना शुरू किया। उधर सुकुर नारायण अकेला था, पुलिस ने उसके खिलाफ मीसा एक्ट और कोफेपोशा यानी विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी रोकथाम अधिनियम (COFEPOSA) के तहत केस दर्ज करने शुरू किये, लेकिन हर बार वह बचता गया। कई मामले ऐसे थे, जो हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक भी गए लेकिन सुकुर नारायण के खिलाफ सबूत जुटाना पुलिस के लिए मुश्किल होता था।
देश में आपातकाल के दौरान पुलिस का सिरदर्द बने सुकुर नारायण को देश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद उसे कई सालों की मशक्कत के बाद साल 1982 की मई में अन्य मामलों में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन 24 मई 1982 में हड़कंप तब मच गया था, जब गोवा की एक जेल में बंद सुकुर नारायण जेल की चहारदीवारी को लांघकर फरार हो गया था।
हालांकि 70 से 80 के दशक के बीच, जहां एक तरफ हाजी मस्तान बड़ा नाम था तो वहीं सुकुर नारायण भी तस्करी के धंधे का गुरु था। हाजी मस्तान ने बखिया बंधुओं के साथ काम कर तस्करी की दुनिया में अपराध गाथा लिखी थी। इसलिए जब भी हाजी मस्तान का नाम आता है तो बखिया बंधुओं की बात बरबस ही निकल आती है।