यूपी की राजनीति में हमेशा से सफेदपोश बाहुबलियों का नाम शामिल रहा है। ढेर सारे बाहुबलियों की लिस्ट में एक नाम धनंजय सिंह सिंह का भी है। लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान ही वह आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो चुके थे। साल 1998 आते-आते वह मोस्टवांटेड अपराधी बन चुके थे और तब उन पर 50 हजार का इनाम भी रखा गया था।

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दर्ज थे करीब आधा दर्जन केस: लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले धनंजय की मुलाकात अभय सिंह नाम के एक नेता से हुई, वहीं अभय पहले से ही आपराधिक कृत्यों में शामिल था। इसके बाद धनंजय ने अभय के साथ लखनऊ भर में जमकर उत्पात मचाया और साल भर के अंदर ही उन पर हत्या, वसूली और सरकारी ठेकों में हस्तक्षेप करने जैसे मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हो चुके थे।

1998 में नाम के आगे लिख गया 50 हजार का इनामी: धनंजय और अभय सिंह का याराना साल 1998 तक ही तक था, बाद में इन दोनों की अदावत छिड़ गई। लेकिन तब तक धनंजय पर डकैती और हत्या समेत एक दर्जन मुकदमें दर्ज थे और उन्हें 50 हजार का इनामी भी घोषित किया जा चुका था।

जब पुलिस ने कहा मुठभेड़ में ढेर हो गया धनंजय: तारीख 17 अक्टूबर, साल 1998। पुलिस के पास इनपुट था कि धनंजय अपने गुर्गो के साथ मिर्ज़ापुर-भदोही रोड पर स्थित पेट्रोल पंप को लूटने वाला है। चारों अपराधियों के वहां पहुंचने पर पुलिस ने एक्शन लिया और सभी को मार गिराया। पुलिस ने बताया कि चार मृतकों में से एक धनंजय सिंह है। इसके बाद सभी पुलिस वालों को सम्मानित किया गया।

लेकिन क्या था असली माजरा: जिस दिन यूपी पुलिस ने धनंजय को मारने का दावा ठोका; उसी शाम भदोही के एक सीपीएम कार्यकर्ता फूलचंद यादव ने सामने आकर कहा कि मारे गए लोगों में उसका भतीजा ओम प्रकाश यादव था और पुलिस उसे धनंजय सिंह के रूप में दिखा रही है। असलियत में धनंजय सिंह जिंदा थे और अंडरग्राउंड हो गए थे।

हल्ला हुआ तो सीबी-सीआईडी ​​को सौंपी गई जांच: फूल चंद ने नेता विपक्ष मुलायम सिंह यादव व सीपीएम के राज्य सचिव को चिट्ठी लिखी और मामले में संज्ञान लेने को कहा। ऐसे में एनकाउंटर मामले में मुलायम ने राज्य सरकार पर दबाव डाला तो घटना के दो माह बाद जांच सीबी-सीआईडी ​​को सौंप दी गई।

जब मरा हुआ शख्स सरेंडर करने पहुंचा: एनकाउंटर मामले को चार महीनें हो चुके थे लेकिन 1999 की फरवरी में जब धनंजय सिंह खुद को पुलिस में सरेंडर करने पहुंचे तो सभी के होश उड़ गए। भदोही के फर्जी एनकाउंटर का सारा मामला खुल गया। धनंजय के जिंदा होने की बात से मानवाधिकार आयोग के कान खड़े हो गए और पूरे मामले में जांच बैठा दी गई। फर्जी एनकाउंटर मामले में कुल 34 पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज हुए।

इसके बाद धनंजय कई सालों तक जेल में रहे, गवाह और सबूत न होने के चलते कई मुकदमों से भी छूटे। जब 2002 में बाहर आये तो निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। साल 2009 में बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीता लेकिन 2014 में लोकसभा तो वहीं 2017 का विधानसभा चुनाव हार भी गए। इस समय वे लखनऊ के चर्चित अजीत हत्याकांड में वांछित है और उन पर 25 हजार रुपये का इनाम भी रखा गया है।