सुख-सुविधाओं से संपन्न युवा जहां अपनी हर असफलता के पीछे संसाधनों की कमी का हवाला देते हैं, वहीं कुछ गुदड़ी के लाल विपरित परिस्थितियों में भी अपनी सफलता की गाथा लिख देते हैं। इसका जीवंत उदाहरण राजस्थान के देशल दान रतनु हैं। बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले देशल दान रतनु ने सिविल सेवाओं की परीक्षा के लिए न तो किसी कोचिंग का सहारा लिया और न ही कभी अपनी गरीबी को राह में रोड़ा बनने दिया। कठिन परिस्थितियों को अपनी चुनौती समझा और सधे हुए तरीके से तैयारी की। जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें पहले प्रयास में ही सफलता मिली।

देशल दान का जन्म राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। वह कुल सात भाई बहन हैं। सिर्फ दो भाइयों को छोड़कर कोई भी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका। एक इंटरव्यू में देशल दान बताते हैं कि मैंने जन्म से ही पिता को चाय की दुकान लगाते हुए ही देखा था। IAS या सिविल सर्विस जैसे शब्द तो उन्होंने कभी सुने भी नहीं थे।

देशल दान के बड़े भाई इंडियन नेवी में थे और अक्सर छोटे भाई को पढ़ाई लिखाई कर इंडियन फ़ोर्स जॉइन करने को प्रेरित किया करते थे, यहीं से रतनु के दिल में सिविल सेवाओं की परीक्षा की तैयारी का जुनून जगा। जब वह सिविल सेवाओं की तैयारी का सपना संजो ही रहे थे कि तभी उनके भाई का निधन हो गया। उनकी पोस्टिंग IANS सिंधुरक्षक सबमरीन में थी।

रतनु 10वीं कक्षा में पढ़ रहे थे तभी उनके बड़े भाई शहीद हो गए थे। परिवार की इन कठिन परिस्थितियों में रतनु ने कोटा जाने का फैसला किया। वहीं से 12वीं की परीक्षा दी और जेईई का एंट्रेंस भी दिया। JEE की परीक्षा में उन्हें IIT जबलपुर जाने का मौका मिला।

IIT जबलपुर में पढ़ाई के दौरान भी रतनु के दिल और दिमाग में सिविल सेवाओं की तैयारी की बात बनी हुई थी। आईआईटी से पढ़ाई के बाद उनके पास नौकरी के ढेरों अवसर थे लेकिन उन्होंने सिविल सेवाओं में जाने का तय किया और इसकी तैयारी के लिए दिल्ली का रुख किया।

परिवार की आर्थिक स्थिति के चलते दिल्ली में तैयारी करना एक मुश्किल फैसला था औऱ मौजूदा स्थिति को देखते हुए उनके पास एक दो प्रयास से ज्यादा का समय नहीं था क्योंकि परिवार और माता-पिता की उम्मीदों को भी पूरा करना था। लिहाजा दिल्ली आने से पहले तय कर चुके थे कितने समय के लिए रुक कर अपने लक्ष्य को समय देना है।

रतनु बताते हैं कि दिल्ली पहुंचे तो पैसों की समस्या ज्यादा महसूस होने लगी। लेकिन उन्होंने मौजूदा संस्धानों के साथ तैयारी जारी रखी और साल 2017 में अपने पहले ही प्रयास में 82वीं रैंक हासिल कर ली।

वो कहते हैं कि अगर आपका लक्ष्य निर्धारित हो तो इस बात से आपको कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परिवार की आय कितनी है, परिवार में कोई पढ़ा लिखा है या नहीं या लोग आपकी असफलता पर क्या कहेंगे। अगर आप अपना 100 प्रतिशत देने के लिए तैयार हैं तो आपको सफलता जरूर मिलेगी।