पिछले साल फरवरी-मार्च के महिने में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (NRC) को लेकर दिल्ली समेत कुछ अन्य राज्यों में जमकर प्रदर्शन किये गये थे। इस दौरान हिंसा भी भड़की थी और कई लोगों की जान तक चली गई थी। दिल्ली में भड़की हिंसा के दौरान एक नौजवान लड़के ने एक पुलिसवाले पर बेहद करीब से पिस्टल तान दिया था। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। आज हम उसी जांबाज पुलिसवाले के बारे में बात कर रहे हैं जिनके हाथ में उस वक्त डंडा था और दंगाई के हाथ में पिस्टल लेकिन बिना डरे उन्होंने उस दंगाई का सामना किया था।

दरअसल जिस लड़के ने दिल्ली पुलिस के जवान पर पिस्टल तानी थी उसका नाम शाहरुख पठान है। उस पर आरोप यह भी लगा था कि उसने 24 फरवरी 2020 को नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के मौजपुर इलाके में पुलिसवालों के सामने ही कई राउंड फायरिंग भी की थी। दिल्ली हिंसा के वक्त शाहरुख का सामना जिस बहादुर जवान से हुआ था वो थे हवलदार दीपक दाहिया।

साल 2012 में दीपक दाहिया की दिल्ली पुलिस में भर्ती हुई थी। दिल्ली हिंसा के वक्त उनकी इमरजेंसी ड्यूटी उत्तर पूर्वी दिल्ली में लगा दी गई थी। उन्होंने हवलदार की ट्रेनिंग बजीराबाद स्थित दिल्ली पुलिस प्रशिक्षण केंद्र से ली। मूल रूप से हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले दीपक दाहिया के पिता कोस्ट गार्ड में नौकरी करते थे। उनके 2 छोटे भाइयों में से एक भाई दिल्ली पुलिस में सिपाही हैं, जबकि दूसरे भाई कोस्ट गार्ड में सेवारत हैं।

खास बात यह है कि दीपक दाहिया दिल्ली पुलिस में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे। इसके बाद जब हवलदार पद के लिए दिल्ली पुलिस विभाग में वैकेंसी निकली तो दीपक दाहिया ने उसका फार्म भरा और सफलता हासिल की। जब दिल्ली के नॉर्थ-ईस्ट इलाके में हिंसा भड़की थी तब दीपक दाहिया हवलदार की ट्रेनिंग ले रहे थे, लेकिन हालात को देखते हुए उनकी आपातकालीन ड्यूटी लगा दी गई थी।

उस दिन की घटना के बारे में जिक्र करते हुए दीपक दाहिया ने खुद मीडिया से कहा था कि ‘अचानक मेरे ठीक सामने लाल मैरून टी शर्ट पहने एक लड़का अंधाधुंध गोलियां चलाता हुआ आ गया…वो युवक देखने में पढ़ा लिखा जरूर लग रहा था। पहनावे से भी ठीक-ठाक दिखाई दे रहा था। जब उसे हाथ में पिस्टल से खुलेआम पुलिस और पब्लिक को टारगेट करते हुए गोलियां चलाते देखा तब उसकी हकीकत का अंदाजा मुझे हुआ। मैं समझ गया कि इससे बेहद सधे हुए तरीके से ही निपटा जा सकता है। वरना एक लम्हे में वो मेरे सीने में गोलियां झोंक देगा।’

इस बहादुर जवान ने आगे कहा था कि ‘मेरे हाथ में एक लाठी थी…उसके हाथ में लोडेड पिस्टल…फिर भी मैंने उसे अपनी बॉडी लैंग्वेज से यह आभास नहीं होने दिया कि, मैं उससे भयभीत हूं। बल्कि उसे यह अहसास दिलाने की कोशिश की कि, मैं अपने हाथ मे मौजूद लाठी से ही उसके हमले को नाकाम कर दूंगा। उसे जब लगा कि मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं, तो वो खुद ही गोलियां दागता हुआ मौके से फरार हो गया। उस वक्त मैंने मौके को हालात के मद्देनजर नहीं छेड़ा। इन हालातों में कैसे जीता जाये यह ट्रेनिंग मुझे पुलिस में दी गयी थी। पुलिस की वही ट्रेनिंग उस दिन मुझे रिवालवर वाले के सामने भी एक लाठी के सहारे जिताकर जिंदा बचा लाई।’