दिल्ली हाई कोर्ट ने पति द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर सोमवार को एक महिला को तलाक देते हुए कहा कि कोई भी कानून पति को अपनी पत्नी को पीटने और प्रताड़ित करने का अधिकार नहीं देता है। कोर्ट ने कहा कि तलाक के इस मामले में, यह साबित हो गया है कि पति अपनी पत्नी के साथ दोबारा संबंध बनाने में नाकाम रहा। इसमें न केवल शारीरिक अलगाव हुआ, बल्कि उसे अपने घर में वापस न लाने को लेकर “शत्रुता” भी जुड़ी थी।
महिला के मेडिकल दस्तावेजों से शारीरिक उत्पीड़न होने की पुष्टि- हाई कोर्ट
महिला के मेडिकल दस्तावेजों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि पुरुष द्वारा किसी भी एतराज नहीं होने की स्थिति में यह माना जाना चाहिए कि शारीरिक उत्पीड़न होने की महिला की गवाही मेडिकल दस्तावेजों द्वारा साबित की गई है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा, “केवल इसलिए कि दोनों पक्षों ने शादी कर ली है और प्रतिवादी (पुरुष) उसका पति है, किसी भी कानून ने उसे अपनी पत्नी को पीटने और यातना देने का अधिकार नहीं दिया। प्रतिवादी का ऐसा आचरण आवश्यक रूप से शारीरिक क्रूरता है जो हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए), 1955 की धारा 13(1) (आईए) के तहत अपील करने वाली महिला को तलाक का अधिकार देता है।”
तलाक के फैसले से नहीं पति को नहीं था एतराज, कोर्ट ने इसे भी माना आधार
कोर्ट ने कहा कि फैसला सुनाए जाने के समय जो व्यक्ति अदालत में मौजूद था, उसे तलाक दिए जाने पर कोई आपत्ति नहीं थी। पीठ ने कहा, “इसके अनुसार हम अपील में योग्यता पाते हैं और अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह को समाप्त किया जाता है।” हाई कोर्ट पीड़ित महिला द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था। इसमें एक पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसने क्रूरता और परित्याग के आधार पर अपने पति से तलाक की मांग करने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया था।
दस साल पुरानी शादी के बावजूद साफ दिखी महिला से शारीरिक दूरी और दुश्मनी
हाई कोर्ट ने कहा कि महिला ने बताया था कि 11 मई, 2013 को उसे घायल हालत में उसके माता-पिता के घर छोड़ दिया गया था और उसके बाद, उसके प्रयासों के बावजूद, पुरुष ने उसे अपने घर में वापस ले जाने से इनकार कर दिया। इसमें कहा गया है कि पुरुष ने महिला के इस तर्क का भी खंडन नहीं किया कि उसे घर में वापस नहीं लाया गया, जिसका कोई कारण नहीं था। कोर्ट ने माना कि यह साबित हो गया है कि प्रतिवादी अपील करने वाली महिला के साथ फिर से संबंध बनाने में नाकाम रहा था और इस प्रकार न केवल शारीरिक अलगाव हुआ, बल्कि यह अपीलकर्ता को घर में वापस न लाने की ‘शत्रुता’ से भी जुड़ा था।
हिंदू विवाह अधिनियम , 1955 की कई धाराओं के तहत महिला तलाक की हकदार
हाई कोर्ट ने कहा, “प्रतिवादी का वैवाहिक संबंध फिर से शुरू करने का कोई इरादा नहीं था, जो तब भी परिलक्षित हुआ जब उसने याचिका का विरोध नहीं करने का फैसला किया। तलाक के लिए याचिका दो साल से अधिक समय के अलगाव के बाद दायर की गई है और इसलिए एचएमए की धारा 13 1 (आईबी) के तहत परित्याग का आधार के मुताबिक अपीलकर्ता भी तलाक की हकदार है।”
पीड़ित महिला ने अपनी याचिका में दी थी ये मजबूत दलीलें, गिनाई क्रूरता और मुश्किलें
महिला की याचिका के अनुसार, उसकी और उस व्यक्ति की शादी फरवरी 2013 में हुई थी और वे उस व्यक्ति की मौसी के परिवार के साथ रह रहे हैं क्योंकि उसके माता-पिता की काफी समय पहले मृत्यु हो गई थी। महिला ने दावा किया कि शादी के तुरंत बाद उसे शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं और उस पर तरह-तरह के अत्याचार किए गए, जिन्हें वह इस उम्मीद में सहन करती रही कि समय के साथ चीजें ठीक हो जाएंगी।
छुटकारा पाने के लिए दहेज की बार-बार मांग, संपन्न घर में दूसरी शादी का लालच
याचिका में कहा गया है कि हालांकि, उस व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों के अत्याचार बढ़ते रहे क्योंकि वे उससे छुटकारा पाना चाहते थे ताकि वह व्यक्ति एक संपन्न परिवार में दोबारा शादी कर सके। महिला ने दावा किया कि दहेज की बार-बार मांग की गई और उस व्यक्ति ने उसे छोड़ दिया और उसे अपने घर में वापस ले जाने से इनकार कर दिया।