भारतीय जासूसी इतिहास में कूमर नारायण नाम का एक जासूस ऐसा हुआ, जिससे देश को फायदा कभी नहीं हुआ बल्कि जिसके चलते देश बड़ी मुश्किल में पड़ सकता था। 60 के दशक में कूमर नारायण ने सरकार के इर्द-गिर्द रहते हुए गोपनीय जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की और दूसरे देशों को बेची। जब कूमर 1985 में धराया तो सरकार और सरकारी मंत्रालयों में अधिकारियों की गिरफ्तारी की बाढ़ आ गई थी।
केरल में जन्में कूमर का पूरा नाम चित्तर वेंकट कूमर नारायण था। 18 साल की उम्र में आर्मी की कुरियर सर्विस में हवलदार रहा लेकिन 6 साल बाद सर्विस से छुट्टी दे दी गई। फिर 1949 में वह स्टेनोग्राफर के रूप में विदेश मंत्रालय में शामिल हुआ और कई देशों का दौरा किया। इसके बाद 1960 में नारायण ने बॉम्बे स्थित एसएलएम मानेकलाल कंपनी में क्षेत्रीय प्रबंधक बना।
एसएलएम मानेकलाल कंपनी में क्षेत्रीय प्रबंधक बनने के बाद से उसने भारतीय राष्ट्रपति और पीएम के कार्यालयों से क्लासीफाइड जानकारी एकत्र करना शुरू कर दिया। इसी दौर में करीब 20 सालों तक उसने कंपनी मानेकलाल के जरिए कथित तौर पर फ्रांसीसी, पोलिश, जर्मन दूतावासों व अन्य कई देशों के अधिकारियों को गोपनीय जानकारी दी थी। लेकिन जब जासूस कूमर का भांडा फूटा तो सरकार सन्न रह गई।
दरअसल, एसएलएम मानेकलाल कंपनी का दफ्तर दिल्ली में हेली रोड पर स्थित था। इस कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर योगेश मानेकलाल था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले यह कंपनी कपड़े के धंधे में थी लेकिन विस्तार के बाद कई तरह के उपकरण भी बनाने लगी थी। जिसमें कूमर नारायण का पूरा हाथ था। कूमर ने इन सालों में भारतीय राष्ट्रपति और पीएम के कार्यालयों सहित मंत्रालय के अफसरों के बीच गहरी पैठ बनाई और गोपनीय जानकारी बेचना शुरू किया।
कई सालों तक अफसरों की मिलीभगत से गोपनीय दस्तावेज बेचे जाते रहे। अफसर असली पेपर लौटा ले जाते और कूमर उनकी फोटोकॉपी अपने पास रख लेता। 70 के दशक में मानेकलाल कंपनी का व्यापार यूरोप और रूस तक जा पहुंचा और कंपनी के जरिए कूमर सीक्रेट बेचता रहा। यहां प्रक्रिया एक हाथ से देने और लेने वाली थी। 80 का दशक आते-आते उसने खुफिया जानकारी, रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज कई देशों को बेचे।
1982 में इस कांड की भनक खुफिया एजेंसियों को लग गई। इंदिरा गांधी पीएम थी तो निर्देश आए कि पीएम कार्यालय सहित सभी दफ्तरों में नजर रखी जाए। इसी बीच उनकी मौत के बाद काम धीमा पड़ गया लेकिन राजीव गांधी सरकार ने फिर से इस केस में नजर डाली। इस कांड में ऐसे लोग शामिल थे, जिनका खुफिया जानकारियों के बीच सीधा दखल था।
साल 1985 में पीएम के प्रमुख सचिव पीसी एलेक्जेंडर के वरिष्ठ निजी सहायक पूकट गोपालन, हेली रोड में कूमर के दफ्तर पहुंचे। तभी पुलिस दफ्तर में घुसी और उस समय पूकट गोपालन के सूटकेस में पीएम कार्यालय से जुड़े तीन बेहद महत्त्वपूर्ण दस्तावेज मौजूद थे। इसके बाद राष्ट्रपति के प्रेस सचिव के सहायक एस शंकरन, पीसी एलेक्जेंडर के निजी सचिव टीएन खेर, रक्षा मंत्रालय के जगदीश चन्द्र अरोड़ा, पीएम सचिवालय के दो सहायक और वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ सहायक को गिरफ्तार किया गया।
राजीव गांधी ने जब इस जासूसी रैकेट की बात सार्वजनिक की तो देश भर में हड़कंप मच गया। वहीं, गिरफ्तार किये गए लोगों के पास से बरामद दस्तावेजों ने आईबी की नींद उड़ा दी। पीएम के प्रमुख सचिव पीसी एलेक्जेंडर को तुरंत इस्तीफ़ा देने को कहा गया हालांकि, उन पर कोई आरोप नहीं थे। साथ ही कई सारे दूतावासों के अधिकारियों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया। मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराई।
फरवरी 1986 को कूमर ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और साल 2002 में आए फैसले में 13 लोग दोषी पाए गए। मानेकलाल कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर योगेश मानेकलाल को सबसे ज्यादा 14 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी, बाकी 12 लोगों को 10 साल की सजा दी गई थी। जबकि कूमर की न्यायिक प्रक्रिया के दौरान ही साल 2000 में मौत हो गई थी।