मध्य प्रदेश के छतरपुर से दर्दनाक खबर सामने आई है। यहां स्कूल के पहले दिन ही 12वीं के छात्र की हार्ट अटैक से मौत हो गई। छात्र का नाम सार्थक टिकरिया है। बेटे की मौत से परिवार सदमें में है। पिता का कहना है कि बेटे ने मुझसे कहा था कि पापा मुझे बचा लो। अगर हम थोड़ा जल्दी अस्पताल पहुंच जाते तो मेरे बेटे की जान बच सकती थी। हमें बहुत अफसोस है कि हमने ट्रैफिक जाम से निपटने और बेटे को जिला अस्पताल की दूसरी मंजिल स्थित आईसीयू तक पहुंचाने में काफी समय बर्बाद कर दिया। हमने पूरी कोशिश की मगर उसे बचा नहीं पाए।

परिवार ने दान की सार्थक की आंखें

परिवार का कहना है कि वह हमारे बीच मौजूद रहे इसलिए हमने उसका कॉर्निया दान करने का फैसला किया है। पिता का कहना है कि हम चाहते हैं कि वह हमारे बीच किसी ना किसी रूप में मौजूद रहे इसलिए उसकी आंखें दान कर दी हैं।

पिता ने की अपील

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार, पिता का कहना है कि हमने अपने बेटे को खो दिया लेकिन मैं अधिकारियों से यातायात की स्थिति में सुधार लाने की अपील करता हूं। मैं आग्रह करता हूं कि सीरियस मरीजों के लिए एक लिफ्ट को रिजर्व कर दिया जाए। इसके साथ ही मैं आईसीयू को ग्राउंड फ्लोर पर शिफ्ट करने की अपील करता हूं। इस समय मृतक के पिता काफी भावुक हो गए। उन्होंने रोते हुए कहा कि मेरा बेटा कहता रहा कि पापा मुझे बचा लो।

सार्थक कभी बीमार नहीं होता था

रिपोर्ट्स के अनुसार, पिता ने बताया कि तीनों भाई-बहनों में सार्थक सबसे छोटा था। उसे कभी कोई बीमारी नहीं होती थी। हमारा संयुक्त परिवार है। हम सभी साथ में रहते हैं। घर में 14 लोग और बच्चे हैं। वह पूरे दिन इधर-उधर भागते रहता था। वह किसी चीज के लिए परेशान नहीं करता था। उसने कभी किसी बात के लिए कभी शिकायत भी नहीं की। वह इतना होशियार था कि रक्तदान करना चाहता था मगर नाबालिग होने के कारण उसे परमिशन नहीं मिली। उसका कहना था कि वह एमपी बोर्ड से पढ़ना चाहता है। इसलिए हमने उसका एडमिशन एक नए स्कूल में करवा दिया। सोमवार को उसका पहला दिन था। हमारे पास 9.15 पर स्कूल से फोन आया। 9.45 पर हम अस्पताल पहुंच गए थे मगर वह बच नहीं सका।

20 मिनट का समय हुआ बर्बाद

असल में सार्थक स्कूल की दूसरी मंजिल पर था। वह क्लास में था। वहां से जिला अस्पताल की दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है। रास्ते में ट्रैफिक था। इस कारण वैकल्पिक रास्ते का सहारा लेना पड़ा। इस कारण 10 मिनट अधिक समय लग गया। अस्पताल पहुंचने के बाद आईसीयू में ले जाने के लिए कहा गया मगर ICU दूसरी मंजिल पर है। वैसे तो अस्पताल में 4 लिफ्ट है मगर उनमें से एक भी सीरियस मरीज के लिए रिजर्व नहीं है। इस तरह आईसीयू तक पहुंचने में 10 मिनट का समय बर्बाद हो गया। अब परिवार के पास सिर्फ सार्थक की यादें हैं।