बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को निजी क्षेत्र में यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के तहत बनाई जाने वाली आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) के सदस्यों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चिंता जताते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। साथ ही अदालत ने अपनी तुलना महाभारत से “भीष्म पितामह” से करते हुए कहा कि वह हर जगह अपनी शक्तियां इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।

हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की जिसमें निजी कंपनियों की ओर से वर्क प्‍लेस पर यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम के तहत बनाई जानी वाली आंतरिक शिकायत समिति के सदस्यों को सरकारी कार्यकारी की तरह मानने और उन्हें कुछ सुरक्षा देने का अनुरोध किया गया था। अब मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को राहत के लिए सर्वोच्च न्यायालय या सक्षम प्राधिकारी से संपर्क करने को कहा है।

दरअसल, यह जनहित याचिका मुंबई के रहने वाले एक शख्स द्वारा दायर की गई थी, जो एक कॉर्पोरेट फर्म में काम करता था। उसने करीब ढाई साल तक फर्म की यौन उत्पीड़न रोकथाम समिति का नेतृत्व किया था। वहीं, मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुई वकील व सामाजिक कार्यकर्ता आभा सिंह का कहना था कि निजी क्षेत्र में ऐसी समितियों के सदस्य को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है।

सोमवार को मामले में मौखिक टिप्पणी देते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने कहा कि आपने महाभारत के बारे में देखा या सुना होगा। उसमें भीष्म पितामह के पास कई शक्तियां थीं, लेकिन जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ तो वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सके थे। हम भी भीष्म पितामह की तरह है, हर जगह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। हम भी किसी के अधीनस्थ हैं।

इस पूरे मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील आभा सिंह ने याचिका वापस ले ली और कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट या फिर अन्य सक्षम अथॉर‍िटी के पास जाएंगी। बता दें कि इस मामले में पहले हुई सुनवाई के दौरान अदालत की पीठ ने संकेत दिया था कि वह इस मामले में केंद्र को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती है और इसकी शक्तियां केवल पहले से पारित कानून को अवैध या असंवैधानिक घोषित करने तक सीमित हैं।