आज से करीब 88 साल पहले कोलकाता में एक जानी-मानी रियासत के युवा जमींदार अमरेंद्र चंद्र पांडेय का कत्ल हुआ था। अमरेंद्र पांडेय के कत्ल में इस्तेमाल किया गया हथियार कभी बरामद नहीं किया जा सका। जब इस कत्ल में जांच रिपोर्ट सामने आई थी तो पूरी दुनिया हिल गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमरेंद्र की हत्या जैव हथियार के माध्यम से की गई थी। इस हत्या को टाइम मैगजीन ने “जर्म मर्डर” (Germ Murder) की संज्ञा दी थी।

इस सनसनीखेज घटना की शुरुआत कोलकाता के हावड़ा स्टेशन से शुरू होती है। 26 नवंबर 1933 को अंग्रेजो के जमाने से चर्चित रियासत पाकुड़ के वारिस अमरेंद्र चंद्र पांडेय भीड़ के बीच से गुजर रहे थे। इसी दौरान उन्हें लगा कि उनकी दायीं बांह पर कुछ चुभ सा गया है। थोड़ी देर में अमरेंद्र का यह दर्द बढ़ गया लेकिन वह अपने बड़े और सौतेले भाई बेनोयेंद्र के साथ घर चले गए।

दो दिनों तक सब ठीक रहा लेकिन तीसरे दिन भयानक बुखार ने अमरेंद्र को जकड़ लिया। आपाधापी के बीच उन्हें कोलकाता लाया जाता है, जहां 3 दिसंबर को वह कोमा में चले गए। फिर अमरेंद्र 4 दिसंबर के बाद कभी नहीं उठे और उनकी मौत हो गई। शुरुआती जांच में बताया गया कि उन्हें निमोनिया की बीमारी ने लील लिया, लेकिन खून की जांच ने सभी को हिलाकर रख दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, अमरेंद्र के खून में यरसिनिया पेस्टिस (Yersinia pestis) नामक जानलेवा बैक्टीरिया (जीवाणु) होने का पता चला। उस समय डॉक्टरों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। दरअसल, यह वही जीवाणु था जिसकी वजह से प्लेग जैसी भयानक महामारी फैलती थी। हालांकि, सवाल सबसे बड़ा यह था कि ऐसा जीवाणु पांडेय के शरीर में कहां से आया था? बता दें कि 1896-1918 और 1929-38 के बीच प्लेग (Plague) से पूरी दुनिया में करोड़ों लोग मारे गए थे।

इस हत्या के पीछे कई सवाल थे जिनकी तलाश पुलिस को थी, लेकिन कोई साफ़ सा जवाब नहीं मिल रहा था। कई दिनों के जांच के बाद हावड़ा स्टेशन पर हुए हादसे का जिक्र हुआ। इसके अलावा पाकुड़ रियासत की अकूत संपत्ति व विवाद के चलते शक की सुई अमरेंद्र के बड़े और सौतेले भाई बेनोयेंद्र पर भी थी। पुलिस को यह भी पता चला कि जहां जनता के बीच अमरेंद्र सभी के दुलारे थे, वहीं बेनोयेंद्र की छवि शराबी और अय्याश की थी।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट में प्रस्तुत किये गए कागजातों में दावा किया गया था कि इस कत्ल की साजिश एक साल पहले से की जा रही थी। इसमें बताया गया था कि बेनोयेंद्र के क़रीबी डॉ. तारानाथ भट्टाचार्य एक मेडिकल लैब से प्लेग के बैक्टीरिया को सुई में लाने की कोशिश में थे पर काम नहीं हो पाया था। हालांकि, दोनों से पूछताछ में पता चल गया था कि मौत जीवाणु से ही हुई थी लेकिन वह सीरिंज कभी नहीं मिल पाई।

फिर इस मामले में पुख्ता सबूतों के आधार पर बेनोयेंद्र व डॉ. तारानाथ भट्टाचार्य को 1934 में अरेस्ट कर लिया गया। केस में नौ महीने तक चली सुनवाई में पता चला कि इन दोनों ने मिलकर मुंबई के एक अस्पताल से यह प्लेग बैक्टीरिया (Bacteria) रिसर्च के नाम पर निकाला था। फिर किसी भाड़े के हत्यारे से कत्ल को अंजाम दिया था।

अदालत ने अपने फैसले में बेनोयेंद्र और डॉ. तारानाथ दोनों को मौत की सजा दी जबकि दो अन्य डॉक्टरों को बरी कर दिया था। हालांकि, जब साल 1936 में केस हाई कोर्ट गया तो वहां इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था। जज ने आदेश सुनाते हुए कहा था कि “शायद यह अपराध इतिहास का सबसे अलग और खास मामला है।” ब्रिटिश राज में हुई इस हत्या ने अपने खुलासों से पूरी दुनिया को चौंकाकर रख दिया था।