70 के दशक में गैंगस्टर मुनी गौड़ा ने जिस हफ्ता वसूली के साथ बेंगलुरु के देशी अंडरवर्ल्ड को खड़ा किया था, उसे पहचान एमपी जयराज के जमाने में मिली। मुनी गौड़ा के बाद जयराज और रामचंद्र कोतवाल ने आपराधिक वारदातों को अंजाम शुरू किया। फिर कुछ समय बाद दोनों ने इस देशी अंडरवर्ल्ड को मुंबई की तर्ज पर ला खड़ा किया। एमपी जयराज इस अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन था।
कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मा एमपी जयराज पहले हिंदुस्तान एयरोनाटिकल लिमिटेड (HAL) में कर्मचारी था। लंबी और बलिष्ठ कद-काठी वाले जयराज को किसी अनबन के चलते नौकरी से निकाल दिया। इसके बाद वह जबरन वसूली करने लगा लेकिन उसने धाक तब जमाई जब उसे सूबे के दो बार सीएम रहे डी. देवराज उर्स के दामाद डी. नटराज का संरक्षण मिला।
‘भाई ऑफ बेंगलुरु’ किताब को लिखने वाली ज्योति शेलार के मुताबिक, जब प्रदेश में एक गैंगस्टर एमपी जयराज और नटराज के संबंधों पर सवाल उठे तो नटराज ने कुछ दिनों बाद एक प्रेस वार्ता में कहा कि वह सोवियत संघ की सुरक्षा एजेंसी ‘कोमिटेट गोसुदरस्टवेनॉय बेज़ोपासनोस्टी’ (Komitet Gosudarstvennoy Bezopasnosti – KGB) की तर्ज पर इंदिरा ब्रिगेड तैयार कर रहे हैं। जो इंदिरा गांधी की रक्षा करेगी और खुफिया इकाई के तहत काम करेगी।
ज्योति के मुताबिक, पुलिस का मानना था कि एमपी जयराज के नेतृत्व में चल रही इंदिरा ब्रिगेड मात्र सत्ता के द्वारा संरक्षित गुंडों का गिरोह भर था। इनका काम राजनीतिक समर्थन, जबरन वसूली और पार्कों में बैठों जोड़ों से लूट-घसोट करना था। इस गिरोह ने उस समय सत्ता पक्ष के पक्ष में माहौल बनाने और इलाके में प्रभुत्व जमाने के अलावा कुछ नहीं किया था।
वहीं, एमपी जयराज को 1979 में झटका तब लगा जब एक कोर्ट शूटआउट मामले में जयराज को 10 साल की सजा सुनाई गई। पांच साल बाद 1984 में जयराज जमानत पर आया तो उसकी जगह पर साथी गैंगस्टर रामचंद्र कोतवाल ने अपना दबदबा बना लिया। वहीं एमपी जयराज और कोतवाल के बीच वर्चस्व की जंग दो साल बाद ख़त्म हुई जब उसने 22 मार्च 1986 में अग्नि श्रीधर, बच्चन और सीताराम शेट्टी के साथ मिलकर कोतवाल को ख़त्म कर दिया। इस हत्या में एमपी जयराज 1986 में अग्नि, बच्चन के साथ जेल गया।
कुछ सालों बाद जयराज जमानत पर बाहर आया तो देखा कि उसकी जगह मुथप्पा राय नाम के गैंगस्टर ने ले ली थी। अब जयराज की नजर मुथप्पा के पिता के बार और रेस्तरां के कारोबार पर पड़ी। मुथप्पा इस बात से चिढ़ गया और ठाना कि जब तक जयराज रहेगा तब तक उसका अंडरवर्ल्ड डॉन बन पाना मुश्किल है। ऐसे में मुथप्पा ने मुंबई अंडरवर्ल्ड के शूटरों की मदद से 21 नवंबर 1989 को एमपी जयराज को सुबह थाने से लौटते वक्त गोलियों से भून दिया और खुद को बेंगलुरु अंडरवर्ल्ड का डॉन घोषित कर दिया।