Kiran Parashar

बेंगलुरु में 13 साल पहले एक हत्या हुई थी। ये हत्या एक महिला की थी और इस मामले में उसका पति ही आरोपी था। इस मामले की कहानी अजीब है क्योंकि पति अपनी पत्नी को सरप्राइज देना चाहता था और उसने हत्या कर दी। सबसे बड़ी बात जब ये हत्या हुई उसके बाद आरोपी पति पुलिस स्टेशन के बाहर हत्यारे को पकड़ने के लिए धरना दे रहा था। इसके बाद पुलिस को शक हुआ और उसने पति से ही पूछताछ शुरू कर दी।

10 अगस्त 2010 को बेंगलुरु में रहने वाली प्रियंका की हत्या हुई थी और उसके तीन बाद उसका पति सतीश कुमार शहर के हुलिमावु पुलिस स्टेशन के बाहर धरने पर बैठा था। इस दौरान वो कह रहा था, “क्या बेंगलुरु में रहना लोगों के लिए इतना असुरक्षित है? मेरी पत्नी की हत्या कर दी गई। तीन दिन हो गए हैं और पुलिस ने दोषियों को पकड़ने के लिए अभी तक कुछ नहीं किया है। वे चुप क्यों हैं?”

सतीश को इसकी जानकारी नहीं थी कि वह पहले से ही पुलिस के रडार पर था। इसके चार दिनों के भीतर वह निर्मम हत्या के आरोप में सलाखों के पीछे था। वर्षों बाद सतीश को दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

पुलिस को आरोपी ने किया फोन

10 अगस्त 2010 को हुलीमावु पुलिस इंस्पेक्टर ए आर बलराम गौड़ा काम पर थे, जब उन्हें एक हत्या के बारे में फोन आया। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “सुबह के लगभग 7.30 बजे थे। मैं अपने स्टाफ के साथ दौड़ा और हमने कुर्सी पर बैठी हुई अवस्था में शव देखा। जब सतीश ने घर की जांच की, तो उन्होंने कहा कि 1.25 लाख रुपये के सोने के गहने और 2 लाख रुपये नकद गायब थे। हमारे पूछने से पहले ही सतीश ने कहा कि वह हमेशा की तरह सुबह जॉगिंग के लिए घर से निकला था। प्रियंका ने उन्हें फोन पर यह कहते हुए बुलाया था कि पेपर विक्रेता होने का दावा करने वाले दो लोग घर आए थे। फिर सतीश के अनुसार उसने कहा कि वह उनके लौटने तक उन्हें अंदर न आने दे। 45 मिनट बाद वह जॉगिंग से लौटा, तो प्रियंका को मृत पाया।”

बलराम गौड़ा ने बताया, “हम सबूत इकट्ठा कर रहे थे। जब हत्या हुई तो घर का दरवाजा बाहर से बंद था. सतीश के पास एक और चाबी थी और उसने उसे अपने कार्यालय में रखा था। उनके बयान के अनुसार शव देखने के बाद, वह अपने कार्यालय, इंफोसिस गए और दरवाजा खोलने के लिए चाबी लेकर आए।”

हत्या से पहले गया था ऑफिस

पुलिस ने पूछताछ की कि क्या सतीश सुबह-सुबह कार्यालय गया था और पता चला कि वह अपने दोस्त किशन के साथ गया था। लेकिन पुलिस को कुछ गड़बड़ होने का शक हुआ। बलराम गौड़ा ने कहा, “अगर उसे कार्यालय में प्रवेश करना है, तो उसे अपने आईडी कार्ड की आवश्यकता होगी, जो बायोमेट्रिक कार्ड के रूप में भी काम करता है जो बिल्डिंग में प्रवेश करने की सुविधा देता है। वह जॉगिंग के लिए आईडी कार्ड क्यों लेकर आएगा? इसके अलावा, अगर उसकी पत्नी ने उसे फोन किया था, तो उसने पेपर विक्रेताओं से उसके लौटने तक इंतजार करने और फिर 45 मिनट बाद घर पहुंचने के लिए क्यों कहा?”

पुलिस ने घटनाओं के बारे में सतीश की भूमिका का जांच करने का निर्णय लिया। बलराम गौड़ा ने कहा, ”हमने अगले 3-4 दिनों तक उनकी भूमिका को नजरअंदाज करने का नाटक किया लेकिन हम उनके फोन कॉल और अन्य चीजों पर नजर रख रहे थे।” इसी अवधि के दौरान सतीश ने हुलिमावु पुलिस स्टेशन के सामने विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।” हंसते हुए गौड़ा कहते हैं, “हमारी जांच पहले ही उसकी ओर इशारा कर चुकी थी और वह इतना आश्वस्त था कि पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा था। चार दिन बाद हमने उसे उठाया और सारे सबूत दिखाए। उसके पास कबूल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।”

सतीश इंफोसिस में मैनेजर थे, वहीं प्रियंका दिल्ली पब्लिक स्कूल (बेंगलुरु साउथ) में टीचर थीं। पुलिस के मुताबिक यह एक सुनियोजित हत्या थी और सतीश का इरादा इसे डकैती का रूप देने का था, जो गलत हो गया। जांच का हिस्सा रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया, “उसने शहर के बाजार क्षेत्र से एक चाकू, एक नायलॉन की रस्सी, दस्ताने और सिगरेट का एक पैकेट खरीदा था।”

सरप्राइज देने के बहाने की हत्या

हत्या से तीन दिन पहले सतीश ने प्रियंका को एक आश्चर्यजनक उपहार दिया। उसकी तस्वीरों वाला एक मैट-फिनिश फाइबर शीट बोर्ड उसे गिफ्ट किया था। उसने उसे अपनी आंखें बंद करने और एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। जब उसकी आंख खुली तो उसकी नजर बोर्ड पर पड़ी। वह बहुत खुश हुई और उसने फोन करके यह जानकारी अपने माता-पिता से शेयर की। बाद में सतीश ने एक सप्ताह के भीतर ‘bigger surprise’ का वादा किया।

पुलिस के मुताबिक 10 अगस्त को सुबह करीब 5 बजे सतीश ने प्रियंका को जगाया और उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी। उसने उसके हाथ उस कुर्सी से बांध दिए जिस पर वह बैठी थी। एक गिफ्ट की आशा करते हुए प्रियंका ने कथित तौर पर उससे पूछा कि क्या यह हीरे का हार है? उसने उससे इंतजार करने को कहा। पुलिस ने कहा कि कुछ ही मिनटों के भीतर उसने रस्सी से उसका गला घोंट दिया और चाकू से उसकी गर्दन काट दी। बाद में उसने सुबह की सैर के लिए निकलने से पहले उसके नंबर से अपने मोबाइल फोन पर कॉल किया।

अपनी हरकतों से पुलिस का संदेह बढ़ने के अलावा, सतीश के झूठ और उसके द्वारा छोड़े गए सबूतों ने उसे धोखा दे दिया। सतीश ने पुलिस को बताया था कि प्रियंका ने सुबह करीब 6.45 बजे उसे फोन किया था। लेकिन कॉल सुबह 5.30 बजे की गई थी। कॉल करने वाले और रिसीवर दोनों का स्थान एक ही था।

सतीश के अनुसार जो नकदी और आभूषण गायब हुए, वे अपराध से कुछ दिन पहले उसके बैंक खाते में जमा किए गए थे। बलराम गौड़ा ने कहा, ”उन्होंने खुद इसे जमा किया था इसलिए इस सबूत से हमें मदद मिली। कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, लेकिन पुष्टि करने वाले साक्ष्य (जिसमें वह कपड़े भी शामिल थे, जिन्हें सतीश ने फेंक दिया था) ने पुलिस को मामले को सुलझाने में मदद की।

हत्या से पहले क्या आया सामने

बेंगलुरु में जन्मे और पले-बढ़े सतीश एक अच्छी नौकरी के साथ इंजीनियरिंग ग्रेजुएट थे। उनके परिवार ने सोचा कि उत्तर प्रदेश की रहने वाली प्रियंका अग्रवाल एक अच्छी जोड़ी हैं और दोनों ने 2007 में शादी कर ली।

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि सतीश ने उन्हें बताया था कि उनकी वैवाहिक परेशानियां पहले दिन से ही शुरू हो गई थीं। जब प्रियंका ने देखा कि सतीश ने एक लॉकेट वाली चेन पहन रखी है, जिसमें उसके माता-पिता की तस्वीर है, तो उसने कथित तौर पर उसे उतारने के लिए कहा। सतीश ने पुलिस को बताया कि उसे यह पसंद नहीं आया।

कुछ दिनों बाद उसने कथित तौर पर इस बात पर जोर दिया कि सतीश अपने माता-पिता के घर से चला जाए। सतीश ने पुलिस को बताया कि जब वह रोजाना अपने माता-पिता से बात करती रहती थी, तो उसे ऐसा लगता था जैसे उसने अपने माता-पिता को छोड़ दिया है। बाद में दंपति के बीच एक बड़ी बहस हुई जब सतीश के माता-पिता उसकी खरीदी गई जमीन के भूमि पूजन समारोह में शामिल होने आए और प्रियंका ने कथित तौर पर उन्हें यह कहते हुए बाहर निकाल दिया कि यह उसके पति की है। एक पुलिस अधिकारी ने कहा उस दिन सतीश ने फैसला किया कि वह अब प्रियंका के साथ नहीं रह सकता।

हत्या के चार दिन के भीतर

हत्या के एक हफ्ते के भीतर ही सतीश को गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस ने अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया। सबूतों से यह सुनिश्चित हो गया कि सतीश को कभी जमानत नहीं मिलेगी। गौड़ा ने बताया, ”वह सुप्रीम कोर्ट तक गए लेकिन उन्हें कभी सफलता नहीं मिली।” 28 जुलाई 2017 को बेंगलुरु के सिविल और सत्र न्यायाधीश ने सतीश को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि बाद में उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत थे।

सतीश की ओर से पेश हुए वकील ने नरम दृष्टिकोण की मांग करते हुए दलील दी, “मुकदमे के दौरान आरोपी न्यायिक हिरासत में है। उसने कई कैदियों को प्रशिक्षित किया है। उसने उन्हें शिक्षित किया है और उनमें से कुछ डिग्री प्राप्त करने में सफल हुए हैं।”

हालांकि न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, “जो कुछ मेरे सामने रखा गया है, उस पर गौर करने से यह तथ्य सामने आता है कि जहां तक ​​जुर्माना लगाने का सवाल है, आरोपी उदार दृष्टिकोण का पात्र है।” कोर्ट ने 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

बलराम गौड़ा, जो 33 साल की सेवा के बाद पुलिस उपाधीक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुए और मांड्या जिले में अपने फार्म में रह रहे हैं, उन्होंने कहा कि बाद में उनकी मुलाकात सतीश से हुई। उन्होंने बताया, “ऐसा हुआ कि मैं उनसे जेल में तब मिला जब मैं किसी अन्य मामले में एक आरोपी से पूछताछ करने गया था। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उन पर सख्ती न करूं लेकिन मेरा काम यही है।”