Karnataka High Court: अपने माता-पिता के बीच कस्टडी की लड़ाई के केंद्र में एक नौ साल के लड़के से बातचीत करने के बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने जर्मनी के एक अदालत के आदेश को खारिज कर दिया है। जर्मन कोर्ट ने अपने आदेश में बच्चे की मां को उसके निवास स्थान और स्कूली शिक्षा का चयन करने का अधिकार दिया था। कर्नाटक हाई कोर्ट ने बच्चे की समग्र भलाई पर विचार करने के बाद लड़के की कस्टडी उसके बैंकॉक स्थित पिता को सौंप दी है।

न्यायमूर्ति पीएस दिनेश कुमार और टीजी शिवशंकर गौड़ा की खंडपीठ ने 29 सितंबर को लड़के की मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर आदेश पारित किया। बच्चे के पिता उसे इस साल जुलाई में जर्मनी से ले गए थे और अपने बेंगलुरु आवास पर लाए थे।

क्या है ओडिशा के अलग-अलग रहने वाले कपल का दावा, पूरा मामला

रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा का यह अलग-अलग रहने वाला जोड़ा 2016 में बैंकॉक चला गया था। तब उनका बच्चा तीन साल का था। फिर दोनों और बेहतर करियर की तलाश में जनवरी 2022 में जर्मनी चले गए थे। कथित तौर पर दंपति के बीच जर्मनी में मनमुटाव हो गया था और पिता कथित तौर पर इस साल जुलाई में अपनी मां की जानकारी के बिना अपने बच्चे को वापस भारत ले आए। शुरुआत में, माँ ने लड़के की कस्टडी के लिए जर्मनी की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने फैसला सुनाया कि बच्चे के निवास स्थान और स्कूली शिक्षा का निर्धारण करने का अधिकार माँ के पास निहित है।

कर्नाटक हाई कोर्ट में बच्चे के पिता ने क्या- क्या दलीलें दीं?

कर्नाटक हाई कोर्ट को बच्चे के पिता ने बताया था कि वह लड़के को जर्मनी से लाया है। क्योंकि वहाँ कस्टडी की लड़ाई के कारण बच्चे को उस देश के नियमों के अनुसार राज्य की देखरेख में आना होगा। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में उन निर्णयों का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है और जर्मन अदालत के एकतरफा आदेश को खारिज कर दिया।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने खारिज किया जर्मन अदालत का एकतरफा फैसला

कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, “इस पहलू पर यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि यह जर्मन न्यायालय द्वारा पारित एक पक्षीय आदेश है जब बच्चा भारत में था। जर्मनी की अदालत को बच्चे से बातचीत का लाभ नहीं मिला। जैसा ऊपर दर्ज किया गया है, इसके विपरीत, इस कोर्ट ने दो कक्षों में सुनवाई की और बच्चे के साथ लंबी बातचीत की।”

हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया, “भारत में कानून की स्थापित स्थिति को ध्यान में रखते हुए कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, यहां ऊपर दर्ज कारणों से और बच्चे के साथ हमारी बातचीत के आधार पर, हमारा मानना ​​​​है कि अपने पिता के साथ बैंकॉक में वर्तमान माहौल में (बच्चा) अपने आप में खुश है और इसलिए, जर्मन न्यायालय द्वारा पारित एकपक्षीय आदेश के संबंध में विवाद को केवल खारिज कर दिया गया है।”

बच्चे की मां को हाई कोर्ट ने दिया ये अधिकार, बच्चे की सहमति को तरजीह देने की शर्त

कर्नाटक हाई कोर्ट ने बच्चे की मां को 15 दिन की अग्रिम सूचना और स्कूल की छुट्टियों के दौरान तीन महीने में एक बार मुलाकात का अधिकार दिया है। उसे अपने बेटे से सप्ताह में दो बार फोन पर और वीडियो कॉल के जरिए बात करने का अधिकार भी दिया गया है। हालांकि, जब भी लड़का उससे बात करना चाहता हो। हाई कोर्ट के आदेश पर फिलहाल पति-पत्नी दोनों राजी दिखे।

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