अशोक कुमार

विज्ञापन एक माध्यम है लोगों को अपने उत्पाद के बारे में बताने का। किसी उत्पाद या सेवा में क्या विशेषता है और यह दूसरे से कैसे अच्छा है आदि बताने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जाता है। टीवी और विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं विज्ञापन का एक मजबूत आधार बनीं, जिससे उत्पादक वर्ग आसानी से अपने उत्पाद या सेवा के बारे में लोगों तक जानकारी पहुंचा पाते हैं। इससे लोगों को भी विभिन्न तरह के उत्पादों के बारे में घर बैठे जानकारी मिल जाती है। आज विज्ञापन एक उद्योग का रूप ले चुका है। किसी खास मौके को भुनाने में विज्ञापन उद्योग कभी पीछे नहीं रहा है। अब क्रिकेट विश्व कप के ही संदर्भ में देखा जाए तो ज्यादातर विज्ञापनों में क्रिकेट से जुड़ा कोई न कोई पहलू देखने को मिल जाता है। यह हमें उस खास मौके के असर में रंग देता है।

लेकिन कई बार कुछ विज्ञापन हमें विष के समान लगने लगते हैं। ये हमारे समाज को आपस में बांटते नजर आते हैं। इससे हम न केवल आहत होते हैं, बल्कि ये हमें डरावने भी लगने लगते हैं। भारत और पाकिस्तान के मैच से पहले और फिर दक्षिण अफ्रीका और भारत के बीच होने वाले मुकाबले को लेकर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों के बारे में क्या कहा जा सकता है! भारत और पाकिस्तान के बीच मैच से पहले विज्ञापन में दिखाया जाता है कि एक पाकिस्तानी नागरिक ने जब से होश संभाला है, तब से उस मौके का इंतजार कर रहा है कि विश्वकप में भारत से पाकिस्तान जीते और वह खूब पटाखे चलाए। लेकिन उसकी यह मुराद जवानी से बुढ़ापे तक पूरी नहीं होती है और वह झल्ला कर कहता है कि हम कब पटाखे छोड़ेंगे? इसी तरह दक्षिण अफ्रीका से होने वाले मैच के संदर्भ में दिखाया जाता है कि भारतीयों के पास इस बार मौका है कि वे जम कर आतिशबाजी करें। भारत के लिहाज से ये विज्ञापन खूब सराहे जा रहे हैं, लेकिन दूसरे देशों में इनकाक्या असर होगा, इस पर भी विचार करना चाहिए।

आज जब सूचनाएं कुछ ही पल के भीतर पूरी दुनिया में फैल जाती हैं, तब क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि ये विज्ञापन केवल भारत के लोग देख रहे होंगे और इनसे भारत के लोग ही प्रभावित होंगे? भारत में जो दूसरे देशों के लोग हैं, वे इस तरह के विज्ञापन को किस नजरिए से देख रहे होंगे? इसका नकारात्मक असर पाकिस्तान में पड़ा भी, जब पाकिस्तान के एक कस्बे में मैच देख रहे युवकों ने पाकिस्तान की हार के बाद अपने टीवी तोड़ डाले और पाकिस्तानी खिलाड़ियों को जम कर कोसा। कोई भी खेल आपस में जुड़ने का और विषम परिस्थितियों में धैर्य और साहस का संदेश देता है, न कि गुस्से और नफरत का।

एक ओर दुनिया को (खासकर भारत और पाकिस्तान को) एक मंच पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं तो दूसरी ओर ऐसे विज्ञापनों से लोगों के मन में नफरत फैलाने का भी प्रयास जारी है। हमें लगता है कि कहीं न कहीं समाज का एक धड़ा हमेशा इस प्रयास में है कि आपसी भाईचारे और प्रेम में विघ्न डाल कर अपना काम बनाते रहें। सरकार ऐसे विज्ञापनों को जांच-परख कर लोगों के सामने लाने का निर्देश दे, जिससे आपसी भाईचारे और गंगा-जमुनी तहजीब को बचाया जा सके। हम भी खेल को खेल भावना से देखें, तभी इसका आनंद लिया जा सकता है।

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta