अनूप शुक्ला
आजकल देशसेवा के काम में बहुत बरकत है। जिसे देखो वह देशसेवा की लंबी लाइन में लगा हुआ है। यह काम जिसे मिल जाता है, वह खुद को धन्य समझता है, जिसे नहीं मिलता वह उदास हो जाता है। बड़े-बड़े जुगाड़ लगते हैं। बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है, तब कहीं देशसेवा का टिकट मिलता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि देशसेवा का टिकट तो मिल जाता है, लेकिन काम नहीं मिलता। सब पैसे डूब जाते हैं। आदमी कुछ दिन उदास रहता है। लेकिन फिर अगला देशसेवा का काम देखता है। बहुत पहले से लाइन में लग जाता है। कोशिश करता है कि इस बार जैसे ही देशसेवा का काम निकले, वह उसे हासिल कर ले। देश की भरपूर सेवा करके अपना और परिवार का कल्याण करे। साथ में नाम भी रोशन हो। देश के इतिहास में नाम दर्ज हो सो अलग से।
इस काम में प्रतियोगिता बहुत तगड़ी है। आदमी पहुंच वाला हो, दबंग, लोकप्रिय, अच्छा वक्ता और मेहनती हो, लोग उसकी बातों पर भरोसा करते हों, तभी उसे देशसेवा का काम मिल सकता है। ये सब गुण तो देश में बहुतों के पास होते हैं, लेकिन इसके बाद सबसे जरूरी चीज है पैसा। जितना गुड़ डालोगे, उतना मीठा होगा जैसा ही है देशसेवा का काम। ज्यादा पैसा बड़ा काम। शुरुआत में कभी-कभी तो पूरा पैसा डूब जाता है। कमजोर दिल के देशसेवक निराश हो जाते हैं और यह काम छोड़ देते हैं। लेकिन सच्चे देशसेवक लगे रहते हैं। वही लोग देशसेवा का काम हासिल करते हैं। एक बार यह काम मिल जाने पर सब नुकसान पूरा हो जाता है। पैसा वसूल हो जाता है। नाम रोशन होता है। फुटपाथ पर जिंदगी बिताने वाला इतिहास की किताबों में कबड्डी खेलने लगता है।
लेकिन पैसा बहुत लगता है इस देशसेवा के काम में। करोड़ों-अरबों फुंक जाते हैं देखते-देखते। देशसेवा के काम के लिए इतना पैसा फूंकना बड़ी फिजूलखर्ची है। इसके लिए सरकार को कुछ उपाय सोचना चाहिए। एक उपाय तो यह है कि देशसेवा के काम में एफडीआइ यानी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी जाए। हमें कुछ पता नहीं है एफडीआइ के बारे में। लेकिन सुनते हैं कि जहां पैसा ज्यादा लगता है, वहां सरकार एफडीआइ ले आती है। हर सेवा क्षेत्र में एफडीआइ आ जाती है। जिधर देखो उधर एफडीआइ का हल्ला है। फिर देशसेवा के काम में भी एफडीआइ लाने में क्या हर्ज है भाई! यों भी, हर चुनाव में हर पार्टी दूसरी पर आरोप लगाती है कि उसने विदेशी पूंजी का इस्तेमाल किया। प्रवासी लोग भी तो पैसा लगाते हैं! सरकारी ठेकों में दलाल को मंजूरी मिलने ही वाली है। फिर आने दो विदेशी पूंजी देशसेवा के काम में भी! लगाने दो विदेशियों को खुल्लम-खुल्ला पैसा देशसेवा में।
देशसेवा के काम में एफडीआइ होने से एक तो फायदा यह होगा कि विदेशी पूंजी का हल्ला नहीं मचेगा। दूसरे, अपने देश की पूंजी चुनाव में जो फुंकती है, वह बचेगी। देश का पैसा बचेगा। विदेशी पूंजी से बैनर, पोस्टर बनेंगे तो देश के लोगों को और रोजगार मिलेगा। कुछ लोगों को शायद एतराज हो सकता है कि देशसेवा के काम में विदेशी पूंजी का दखल खतरनाक है। देश के लिए खतरा है। तो हमारा कहना यह है कि अभी कौन विदेशी पूंजी कम गदर काटे है। अभी वह चोरी से आती है तो गड़बड़ करती है। एफडीआइ के रास्ते आएगी तो अपना घर समझ कर आएगी। उसे देश की चिंता होगी और वह यहां मन लगा कर काम करेगी। कुल मिला कर हमें तो यही लगता है कि देशसेवा के धड़ल्लेदार विकास के लिए इस काम में एफडीआइ जरूरी है!
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