अभिनव पांडेय

कहा जाता है कि देरी से मिला न्याय, अन्याय के ही समतुल्य होता है। भारतीय न्याय प्रणाली में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि मुकदमे कई वर्षों तक चलते रहते हैं और जब तक फैसला आता है, तब तक या तो आरोपी की मौत हो चुकी होती है या तो वह जीवन के आखिरी पड़ाव पर होता है। कई मामले ऐसे भी देखने में आए जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं। हालत यह है कि लोग अपने बाप-दादा के जमाने के मुकदमे झेल रहे हैं। इस दुनिया से इंसान का निपटारा हो जाता है, लेकिन मुकदमे का नहीं। हाल ही में इंदिरा गांधी के शासनकाल में रेलमंत्री रहे ललित नारायण मिश्रा की हत्या के मुकदमे में चालीस साल बाद फैसला आया। इसमें भी आरोपी अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर है। निचली अदालत ने तीन दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई और दो अन्य को सिर्फ जुर्माना लगाया गया। गौरतलब है कि जनवरी, 1975 में ललित नारायण मिश्रा की समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट में हत्या कर दी गयी थी।

इस फैसले ने एक बार फिर भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाया है। कैबिनेट स्तर के मंत्री की हत्या के मुकदमे का फैसला चालीस साल बाद आता है, तो आम लोगों के मामले में क्या हालत होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अभी भी यह फैसला निचली अदालत का है। यानी दोषियों के पास उच्च अदालतों में जाने के पूरे विकल्प हैं। जब निचली अदालत का फैसला आने में चालीस वर्ष का समय लग गया तो उच्च अदालतों का फैसला आने में कितना वक्त लगेगा?
यह कोई इकलौता मामला नहीं है, जिसमें फैसला देरी से आया है। ऐसे बहुत सारे मामले वर्षों से चले आ रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि देशभर की अदालतों में लगभग 3.3 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं। अदालतों में लंबित मामलों का पहाड़ खड़ा होता जा रहा है। सरकार और न्याय तंत्र ‘तारीख पर तारीख’ की अव्यवस्था को दूर करने का कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं।

यह कहना गलत न होगा कि साधारण लोगों का न्याय व्यवस्था पर से विश्वास उठने लगा है! आए दिन देश के कानून मंत्री और न्यायाधीश न्याय में विलंब को लेकर चिंता जाहिर करते हैं और जल्दी से जल्दी न्याय देने का वादा भी करते हैं, लेकिन नतीजा फिर भी ढाक के पात ही साबित होता है। कई बार न्यायाधीश न्याय व्यवस्था में बदलाव की कोशिश भी करते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि तब तक उनकी सेवानिवृत्ति का समय आ जाता है। देश की लचर न्याय व्यवस्था का एक प्रमुख कारण न्यायाधीशों की कमी है। देश की अदालतों के न्यायाधीशों के पद खली पड़े हैं। मुकदमों की बढ़ती संख्या को देखते हुआ आज त्वरित न्यायिक व्यवस्था समय की मांग है। सरकार को इस दिशा में जल्दी से जल्दी पहल करने की जरूरत है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की जल्द से जल्द आवश्यकता है, ताकि लंबित मामलों का जल्द निपटारा हो सके और लोगों में न्याय-व्यवस्था के प्रति विश्वास जग सके।

 

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