मोहन सूर्यवंशी
कुछ समय पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे की शादी हुई। दिल्ली में हार की वजह से शादी की धूमधाम थोड़ी कम हुई। लेकिन खबरों के मुताबिक गुजरात में होने वाले स्वागत समारोह में साढ़े छह हजार से ज्यादा अति महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले लोगों को न्योता भेजा गया। इसके पहले भाजपा नेता नितिन गडकरी भी अपने बेटे की आलीशान शादी के लिए चर्चा में रहे थे। ऐसे नामों में बहुत से नेता हैं जो आमतौर पर गरीबों से जुड़े होने और उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करते रहते हैं। लेकिन सच यह है कि राजनीति में आने के बाद इनके पांव जमीन पर नहीं पड़ते हैं। नेताओं के बीच दिखावे का यह रोग भी एक वजह है कि आजकल आम लोगों के बीच भी शादियों में फिजूलखर्ची और बढ़ती चली जा रही है।
दिल्ली के आसपास जमीन के दाम बढ़ने से कुछ किसानों काफी पैसा मिला। अब उनके बच्चे शान और दिखावे के लिए हेलिकॉप्टर में बैठ कर दुल्हन को लाने जाते हैं। यह मूर्खता नहीं तो और क्या है? ये लोग इस पैसे से अपने आसपास के समाज का खयाल रखने के बजाय उसे व्यर्थ पानी की तरह बहाते हैं। शादी में कोई कितना खर्च करता है या दिखावा करता है, यह उसका निजी मामला हो सकता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का नेता हो या उस दल से जुड़ा हो, एक सामाजिक जीवन जी रहा हो और जो राजनीति में आया ही इसलिए हो कि उसे समाजसेवा करनी है, ऐसे लोग अगर इस तरह के काम करें तो दुख होता है।
हमारे देश में दहेज को एक सामाजिक बुराई माना जाता है। लेकिन कानूनी सख्ती की वजह से अब इसने शायद दूसरा रूप धारण कर लिया है। अब लोग खुले आम दहेज मांगने से बचते हैं, लेकिन शादी में होने वाले खर्च से अपने शौक की भरपाई कर लेते हैं। जाहिर है, लड़की पक्ष पर शादी का खर्च भारी पड़ता है और एक तरह से उनकी कमर टूट जाती है। यों शादी में खर्च किसी भी तरफ से हो, गलत है। अमीर लोगों को ऐसे बेलगाम खर्च से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मध्यमवर्ग और गरीब परिवारों पर इसकी ऐसी मार पड़ती है कि कई बार वह समूची जिंदगी नहीं उठ पाता। जो आदमी जिंदगी भर थोड़ा-थोड़ा करके धन बचा कर रखता है, वह एक झटके में शादी में खर्च हो जाता है। लोग ऐसा आमतौर पर इसलिए करते हैं कि वे अपनी झूठी शान का समाज में प्रदर्शन कर सकें। रही-सही कसर राजनेताओं की इस तरह की शादी के आयोजन पूरा कर देते है जो समाज में एक गलत संदेश लेकर जाते हैं।
इस तरह के विवाहों का खर्च कुछ परिवारों पर तो इस हद तक पहुंच जाता है कि लोगों को अपना घर-जमीन तक बेचना पड़ जाता है। जिस तरह दहेज एक सामाजिक बुराई है, उसी तरह शादी में होने वाला अनाप-शनाप खर्च भी एक बुराई है, जो कई परिवारों को तबाह कर देता है। अगर दो इंसान अपना जीवन शुरू कर रहे हैं तो उसके लिए इस तरह के खर्चों की जरूरत आखिर क्या है? क्या ऐसे कार्यक्रम सादगी से नहीं हो सकते? मेरी राय तो यह है कि सरकार को वैवाहिक आयोजनों में इस तरह की दिखावे और फिजूलखर्ची से सख्ती से निपटना चाहिए और इस प्रवृत्ति पर रोक लगाई जानी चाहिए। ऐसा करके कई परिवारों को तबाह होने से बचाया जा सकता है, समाज में अमीरी-गरीबी की खाई को कम किया जा सकता है।
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