भाजपा ने राष्ट्रवाद की चादर के नीचे इतनी बातें छिपाई हैं कि अब उनके पांव बाहर निकलने लगे हैं। पहले जनसंघ और अब भाजपा के नाम से कार्यरत दल, संघ परिवार के साठ से अधिक आनुषंगिक संगठनों में से एक है, जिसके ऊपर चुनाव प्रणाली द्वारा सत्ता में आने और उसके सहारे रक्षा तंत्र पर अधिकार करने की जिम्मेवारी है।
यह बात छिपी नहीं है कि भाजपा का कोई भी नीतिगत फैसला संघ की अनुमति के बिना नहीं होता और हर स्तर के संगठन सचिव के पद पर संघ के प्रचारक को नियुक्त करने का नियम आम है, जिससे संघ का नियंत्रण बना रहे। इतिहास बताता है कि अपनी स्थापना के बाद से भाजपा ने चुनाव प्रणाली की कमियों का दुरुपयोग करते हुए सर्वाधिक विकृतियां फैलार्इं। इस पार्टी ने सांप्रदायिकता, जातिवाद, लोकप्रियतावाद (सेलिब्रिटियों को उम्मीदवार बनाना), धन और बाहुबल का प्रयोग करने की भी कोशिश की है।
चुनाव के बाद भी सरकार बनाने के लिए दल-बदल कराना, विधायकों की खरीद-फरोख्त करने की बुराइयों में भी इनकी भूमिका छिपी नहीं रही है। जब भी मौका मिला, ये हर रंग और सिद्धांतों की पार्टियों के साथ सभी संविद सरकारों में सम्मलित होने के लिए तैयार रहे और उन सरकारों में भी भितरघात की कोशिश करते रहे।
इस सरकार के बनने में भी कॉरपोरेट लॉबी की भूमिका पर काफी चर्चा हो चुकी है। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा को कुल डाले गए मतों के इकतीस फीसद ही मिले थे और आज भी इनका राज्यसभा में बहुमत नहीं है। यही वजह है कि कहीं न कहीं भाजपा के हाथ बंधे हैं। शायद इसीलिए राज्यों में सरकारें बनाना इनका मुख्य लक्ष्य है। जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने पीडीपी की शर्तों के आगे नतमस्तक होकर सरकार बनाई और ऐसा करते हुए यह भुला दिया कि इनकी लोकप्रियता का मूल आधार वे राष्ट्रवादी घोषणाएं हैं, जिनसे समझौता करके अब इनका सरकार में दोयम दर्जे के हिस्सेदार के रूप में सम्मिलित होना संभव हुआ है।
लंबे समय तक चली वार्ता के बाद भाजपा को अपनी धारा- 370 को समाप्त करने की मांग छोड़नी पड़ी। चुनावों के दौरान भाजपा ने अलगाववादी नेता के रूप में मशहूर सज्जाद गनी लोन की पार्टी से समझौता किया था, जिसने वहां दो सीटें जीतीं। इस तरह यह सरकार केवल भाजपा-पीडीपी की सरकार नहीं है, बल्कि इसमें लोन की पार्टी जम्मू ऐंड कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस भी सम्मलित है।
यही नहीं, भाजपा ने घाटी में अपना दखल बनाने के लिए उन्हें अपने कोटे से मंत्री भी बनवा दिया। कोई आपराधिक प्रकरण लंबित न होने के जिस आधार पर लोन को मंत्री बनवाया गया, उसी आधार पर मसर्रत को सभी मामलों में जमानत मिल जाने की बात पीडीपी के नेताओं ने कही। दूसरी ओर, पीडीपी के नेताओं का यह भी कहना है कि भाजपा में गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत अनेक राज्यों के ऐसे नेताओं को टिकट दिए गए थे, जिन पर न केवल आर्थिक अनियमितताओं के आरोप थे, बल्कि आपराधिक प्रकरण भी चल रहे हैं।
यही कारण रहा कि भाजपा ने आरोप लगने पर दिखावे के लिए तो बहुत शोर मचाया, लेकिन जम्मू में विरोध करने वाले अपने नेताओं को बुला कर रणनीति समझा दी। नतीजतन, मंत्रिमंडल की बैठक में इस विषय को रखा ही नहीं गया और भाजपा के किसी सदस्य ने इसकी चर्चा तक नहीं की।
एक तरफ संघ की ओर से केवल आदर्श की बातें की जाती हैं, लेकिन उसने चुनाव जीतने के लिए भाजपा की तमाम नैतिक-अनैतिक कार्यवाहियों के खिलाफ शायद ही कभी आपत्ति जताई। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में तो व्यापमं घोटाले में संघ के पदाधिकारियों के नाम भी आए हैं और कई आरोपी संघ से निकले नेता हैं।
वीरेंद्र जैन
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