लंबे समय से महिला आरक्षण बिल संसद के पटल पर धूल चाट रहा है। समय-समय पर आने-जाने वाली सरकारों ने महिला आरक्षण के विषय में चुनाव घोषणा पत्र में बड़े-बड़े वादे भी किए। वे लोकसभा चुनाव हों या राज्यों के विधानसभा चुनाव, महिला आरक्षण के विषय में सभी राजनीतिक दल महिलाओं की वोट लेने की बात कर आरक्षण बिल पास करने के लिए विभिन्न प्रकार के वादे करते हैं। समय-समय पर सरकारें बनती रहीं और राजनीतिक दल वोट बैंक की रोटियां महिला आरक्षण बिल पर सेंकते रहे। लेकिन इस दिशा में कुछ भी ठोस नहीं हुआ।
जबकि महिला आरक्षण बिल अगर लागू हो जाता है तो ग्राम पंचायत से लेकर नगरपालिका और विधानसभा तथा संसद तक महिलाओं के लिए अलग से आरक्षित सीटें घोषित होंगी और उसके साथ-साथ सुरक्षित सीटें भी होंगी। लेकिन अभी तक यह बिल अधर में लटका हुआ है। अगर यह कानून बनता है तो इसके बाद नुमाइंदगी करने वाली महिलाओं से उम्मीद होगी कि समाज में महिलाओं का आदर और सम्मान बढ़ाने के लिए वे आगे आएंगी। इसका व्यापक असर पड़ेगा, विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों पर प्रतिबंध लगेगा और महिलाओं के अधिकारों के विषय में विभिन्न तरह से जागृति आएगी और महिलाओं के उत्पीड़न पर रोक लगेगी।
सवाल यह है कि आखिर समय-समय पर महिलाओं के अंदर शिक्षा से प्रेरित करने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के नारे के अमल को कैसे देखा जाएगा। महिलाओं के खिलाफ विभिन्न प्रकार के बढ़ रहे अपराधों पर पूर्ण रूप से लगाम लगाना जरूरी है, वरना अन्याय पर आधारित एक नई व्यवस्था बन सकती है।
’विजय कुमार धनिया, नई दिल्ली</p>