जिस शिक्षा के मंदिर में विद्यार्थियों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है, अगर वह स्थान हिंसा का केंद्र बन जाए, तो यह चिंतनीय है। कर्नाटक के उडुपी से शुरू हुआ हिजाब विवाद अब विदेशों तक पहुंच गया है। धीरे-धीरे अब हिजाब का मामला हिंसात्मक रुख भी अपनाता जा रहा है। बीते शनिवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में जब एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने हिजाब पहन कर आई लड़की को विद्यालय में अंदर आने से मना किया, तो उस लड़की के समर्थन में पूरे इलाके के लोग जमा हो गए और शिक्षा का मंदिर को हिंसा की जगह बना दिया। कुछ देर तक चले इस संघर्ष को आखिरकार काबू पाया गया।

सवाल है कि आखिर यह प्रदर्शन हिंसक रूप क्यों ले रहा है? इसका सीधा जवाब है कि इस मामले को राजनीतिक दल भुनाने लगे हैं। इससे मामला खतरनाक रूप लेता जा रहा है। अब उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में भी इस तरह के प्रदर्शन देखने को मिले। यह मामला इतना संवेदनशील हो गया है कि इसमें पाकिस्तान के साथ-साथ अमेरिका भी भारत का विरोध करने लगा है।

हालांकि, इस पर भारत सरकार ने उसी के शब्दों में अमेरिका को जवाब दिया है। देश के अंदर इस मामले को राजनीतिक लोग खूब तूल देने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ा जा सके। सवाल है कि क्या शिक्षा के मंदिर में यूनिफार्म को लेकर हो रहे विवाद में राजनेताओं का हस्तक्षेप जायज है? क्या ये लोग सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? इस तरह के तमाम सवाल अभी देश के अंदर खड़े हो रहे हैं।

बेशक हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है, लोगों को धारा 19 खुल कर जीने की आजादी देती है। लेकिन जब इसी देश के अंदर संविधान का उल्लंघन होता है तो यह चिंता की बात है। जिस तरह से कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 के तहत पूरे राज्य में सरकारी शिक्षण संस्थानों में वर्दी अनिवार्य कर दिया है। इससे पूरे देश में मुसलिम समुदाय के लोगों में आक्रोश फूट गया है। पर सवाल है कि क्या किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने वालों के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है या उनके लिए धर्म? बहरहाल, इस पूरे मामले में लोगों को न्यायालय पर भरोसा रखना चाहिए और निर्णय का इंतजार करना चाहिए।

लोकतंत्र का महापर्व

लोकतंत्र का महापर्व हर पांच साल बाद आने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। इसका महत्त्व इसी में है कि हम किसी ऐसे दल या प्रत्याशी को वोट न दें, जो धर्म, जातिवाद को बढ़ावा देता हो, गुंडा, तश्कर, भू-माफिया हो या जिससे कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो। दलबदलुओं और घोटालेबाजों को भी वोट नहीं देना है। भयवश, प्रलोभन के अंतर्गत मतदान न करें। हमारा दायित्व है कि जाति, धर्म से ऊपर उठ कर देश का नेतृत्व उसको सौंपें, जो क्षमतावान, दूरदर्शी, संवेदनशील, निष्ठावान, दृढ़प्रतिज्ञ, समद्रष्टा, सिद्धांतवादी हो, जिससे भारत देश समृद्ध शाली और विश्व में अग्रणी बन सके।

  • सचिन पांडेय, इलाहाबाद विवि, प्रयागराज

खेल में खेल

अब खेल रहा न खिलाड़ी, सब खेल के सौदागर हो गए और खेल तथा खिलाड़ी बन गए व्यापारी। कोई दस करोड़ में बिक रहा है तो कोई पंद्रह करोड़ या उससे भी अधिक कीमत में। कोई आस लगाए बैठा है आईपीएल की मंडी में कि कोई तो मुझे खरीदने आए, मेरी बोली लगाए। मगर हाय री किस्मत, सुबह से शाम हो गई, पर कोई मुआ बोली लगाने तो क्या, पूछने तक नहीं आया। हमारी हालत भी सब्जी मंडी-सी हो गई, जो बिक गई वो बिक गई शाम तक बाकी सब बासी याने फेंकने लायक हो गई। अत: जो बिक रहे हैं वे तो प्रोत्साहित हो रहे हैं, मगर जिनके कोई खरीदार नहीं रहे, उन बेचारों का तो हतोत्साहित होना स्वाभाविक है।

खिलाड़ियों के हित में खिलाड़ियों की नीलामी प्रथा बंद होनी चाहिए ताकि चयन न होने पर भी बेहतर से बेहतर नामी और नए खिलाड़ी सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित महसूस न करने पाएं।