हिंसा करने का अर्थ सिर्फ किसी को शारीरिक क्षति पहुंचाना ही नहीं होता, किसी के मन को दुख पहुचाना भी हिंसा के श्रेणी में आता है। हिंसा शब्द से पाप का बोध होता है और पाप तो किसी का अहित सोचने भर से भी हो जाता है। दुनिया के कई धर्मों में अहिंसा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कठोर वाणी/ व्यवहार हिंसा के जनक हैं और इन्हें पापी बनने की पहली सीढ़ी मानी गई है।
अगर कोई किसी के लिए कटु वाणी का प्रयोग करता है तो वह खुद के साथ-साथ उस व्यक्ति को भी भागीदार बनाता है, जिसके लिए उसने कटु वाणी का प्रयोग किया है। अपने बारे में बुरा सुनने से एक सामान्य व्यक्ति क्रोधित हो जाता है और वही क्रोध उसके गलत कर बैठने का कारण बन जाता है।
गांधीजी का मानना था कि हिंसा और अहिंसा का संबंध किसी समुदाय विशेष से नहीं होता है।
वर्तमान समय में कई तरह के लोगों और खासकर एक विचार वालों को गांधीजी की सोच और काम करने के तरीके में कुछ अस्वाभाविक नजर आता है और वे लोग किसी अहिंसक व्यक्ति को डरपोक आदि की संज्ञा देते हैं तो यह उनकी समझ के सीमित होने का उदाहरण है। क्या ऐसे लोगों को पता है कि अहिंसक होने के लिए अपने आप में कितनी सहनशीलता और खुद को कितना मजबूत बनाना पड़ता है? दूसरों के व्यवहार से तुरंत विचलित हो जाने वाले लोग ही असल में कायर होते हैं और अपनी कायरता का परिचय देते हुए अपराध या गलत काम कर बैठते हैं।
बापू द्वारा आजादी के लिए अहिंसा का रास्ता चुनने का मतलब एक ऐसा देश बनाना था, जहां हिंसा की न कोई जगह हो और न ही हिंसा किसी समस्या का समाधान हो। इक्कीसवीं सदी, यानी वर्तमान समय बापू के सपनों को अक्सर तोड़ता नजर आता है। नेता हो या अभिनेता, इनके भाषण या फिर फिल्मों की सफलता के लिए हिंसा एक प्रमुख हथियार बन गया है।
अब शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को कम लोग सहारा बनाना चाहते हैं। हमारी पहली पसंद में वैसी ही फिल्में या वेब-सिरीज होती हैं जिनमें गाली-गलौज और मारपीट के साथ नशा या अन्य अहिंसक सामग्री मौजूद हो। इस परिस्थिति के लिए प्रदर्शक तथा दर्शक दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं।
’अविनाश, बक्सर, बिहार</p>