हमारे देश में गरीबों को सरकार की तरफ से दी जाने वाली मुफ्त की सेवाओं में पारदर्शिता न होने और भ्रष्टाचार होने के कारण धनी और समृद्ध लोग भी इन मुफ्त की सुविधाओं को प्राप्त कर रहे। आजकल कुछ लोगों के सिर पर पैसे का ऐसा भूत सवार हो गया है कि वे इसे पाने के लिए इंसानियत से गिरने से भी गुरेज नहीं कर रहे। देश में सरकारें गरीबों के कल्याण के लिए बहुत-सी योजनाएं अमल में लाती हैं, लेकिन इनमें फर्जीवाड़े की खबरें अक्सर सुर्खियों में आती हैं। कभी इन योजनाओं पर समृद्ध लोगों के कुंडली मार कर बैठने की तो कभी सरकारी बाबुओं के भ्रष्टाचार की तो कभी इन योजनाओं को लागू करने वाली संस्थाओं की खबरें पढ़ने और सुनने को मिलती हैं।
केंद्र सरकार ने गरीबों को मुफ्त की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आयुष्मान भारत नाम की योजना और इसी तर्ज पर राज्यों सरकारों ने भी कुछ योजनाएं शुरू की हैं। लेकिन निगरानी ब्यूरो ने पंजाब के कुछ जगहों पर इसमें फर्जीवाड़े का चेहरा बेनकाब किया है। इसमें प्रधानमंत्री जन आरोग्?य योजना अर्थात आयुष्?मान योजना में बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। ऐसे फर्जीवाड़े देश-प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था के लिए दीमक का काम भी करते हैं।
सरकारों को गरीबों, किसानों और अन्य वर्गों की भलाई की योजनाओं को अमल में लाने के साथ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि कोई भ्रष्ट स्थानीय सत्ताधारी, अफसर अपने चेहतों को सरकारी योजनाओं की रेवडियां न बांट पाए और न ही कोई अमीर गरीबों की योजनाओं को ग्रहण लगा पाए। सरकारों को चाहिए कि वे मुफ्त की आमदनी देने के आश्वासनों के बजाय देश के हर हाथ को रोजगार मुहैया करवाए, मेहनत करने वालों को आमदनी बढ़ाए, महंगाई कम करने के उपाय करे, निजी क्षेत्र में रोजगार करने वालो की तरफ ध्यान दे यानी उनका भविष्य सुरक्षित करे, कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए गंभीरता दिखाए।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर, पंजाब
भागीदारी के बजाय
पिछले कुछ समय से ये सवाल तीखे होने लगे हैं कि क्या आरक्षण का प्रावधान से आरक्षित वर्गों का उत्थान हो गया? क्या उनके बीच से बेरोजगारी दूर हो गई? मेरा मानना है कि ऐसा नहीं हो सका है। फिर भी जिस तरह से हमारे समाज में अनुसूचित जातियों के बहुत सारे लोगों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार आज इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें वर्ष में भी जारी है। यह बेहद शर्मनाक स्थिति है। इसी वजह से अभी आरक्षण का जारी रहना जरूरी है। यह कोई गरीबी हटाने का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भागीदारी सुनिश्चित करने का जरिया है।
दूसरी ओर, इन दिनों कुछ राज्य इसे लेकर मतदाताओं को रिझाने का कोशिश में विभाजनकारी कदम उठाते नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा के बाद झारखंड ने निजी क्षेत्र में पचहत्तर फीसद नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का कदम उठाया है। ये अब इस देश में नए वायरस की तरह फैलेगी। अन्य राज्य भी इसका अनुसरण करेंगे। इसका असर सीधे तौर पर बीमारू राज्यों के प्रवासी श्रमिकों पर पड़ेगा। उन्हें अब अपना घर वापस आना पड़ेगा। क्या इन वापस आने वालों के लिए बीमारू राज्य रोजी-रोटी का व्यवस्था कर पाएंगे? अब समाज में नए किस्म का असंतोष उभरेगा। इससे देश का मजबूती पर भी असर पड़ सकता है।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड