कोरोना के कारण पिछले एक डेढ़ साल में हमारा जीवन पूरी तरह बदल गया है। स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की दिनचर्या और यहां तक कि उनकी सोच को भी इस माहौल ने प्रभावित किया है। एक अनचाहा तनाव हर समय उनके मस्तिष्क में व्याप्त है। न पढ़ाई ठीक से हो रही है और न ही प्रतियोगी परीक्षाएं। हाल ही में सरकार ने बारहवीं बोर्ड के सभी विद्यार्थियों को प्रोन्नत करने का निर्णय लिया। इस निर्णय का सभी ने स्वागत किया, लेकिन जब परीक्षा परिणाम का फॉर्मूला निर्धारित किया गया तब तनाव का एक और मुद्दा खड़ा हो गया। विद्यार्थी और उनके अभिभावक परीक्षा परिणाम के फॉर्मूले को लेकर तनाव में हैं। किसी को दसवीं परीक्षा का प्रतिशत अधिक लग रहा है तो कोई ग्यारहवीं का प्रतिशत अधिक बता रहा है। किसी को बारहवीं प्री-बोर्ड परीक्षा को अधिक प्रतिशत दिए जाने से समस्या है। सबकी राय अलग-अलग हैं, लेकिन चिंता का कारण एक ही है।
दरअसल, यह फार्मूला सभी विद्यार्थियों के लिए एक समान है। प्रतिशत अगर कम रहता है तो सभी का रहेगा। फिर कोई मेरिट यानी मेधा सूची इस बार नहीं बन रही है तो खुद को परेशान करने वाली इस वजह को दिमाग से निकाल देना चाहिए। दूसरे, सभी विद्यार्थियों को परीक्षा परिणाम सुधारने का एक अवसर भविष्य में दिया जाएगा। उस अवसर का उपयोग करके वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रदर्शन करके अपना प्रतिशत सुधार सकते हैं। साथ ही सभी अच्छे कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही प्रवेश देते हैं। इस बार सभी को इस नियम का पालन करना है। बेहतर होगा कि विद्यार्थी अंकों के गणित से बाहर निकल कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी जारी रखें और प्रवेश परीक्षा की तैयारी करें।
कुछ देशों ने कोरोना के कारण जीरो सत्र भी घोषित किया है। यह भी एक सकारात्मक कदम है कि हमारे देश मे ऐसा नहीं होने से विद्यार्थियों का एक साल व्यर्थ नहीं हुआ है। तनाव का एक और कारण है। इस साल शुरुआत से ही आॅनलाइन कक्षाओं का प्रारंभ होना। विद्यार्थी और अभिभावक आॅनलाइन शिक्षण से खुश नहीं हैं। शिक्षक भी खुश नहीं हैं. लेकिन हमारे सामने दूसरा कोई विकल्प अभी नहीं है।
ध्यान से देखा जाए तो जीवन में आई इन परेशानियों का कारण और निवारण हमारे पास ही है। आवश्यकता है तनावमुक्त होकर परेशानियों का हल खोजने की। यही वह समय है जब विद्यार्थियों को अपने भविष्य की योजना बनाने का काम करना है। अपने सपनों के कैरियर के विषय में जानकारी प्राप्त करनी है। विभिन्न संस्थानों द्वारा आॅनलाइन प्रशिक्षु कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। इनमें भाग लेकर अपनी क्षमताओं को निखारने का समय है। जो विद्यार्थी परफॉर्मिंग आर्ट्स में कैरियर बनाने के इच्छुक हैं वे इन सभी विधाओं को आॅनलाइन सीख सकते हैं।
’अर्चना त्यागी, जोधपुर, राजस्थान
संकट के बीच
‘भूख से मौतें’ (संपादकीय, 12 जुलाई) पढ़ कर मन व्यथित हो गया। आज विश्व के विकसित राष्ट्र युद्ध सामग्रियों और मंगल यात्रा पर जो धन पानी की तरह बहा रहे हैं, उसी धन का उपयोग मानवता का पेट भरने, उचित चिकित्सा मुहैया कराने आदि में किया जाए तो धरती स्वर्ग बन जाएगी। कोरोना जैसे महासंकट के बावजूद विश्व के किसी भी देश ने अपने सैन्य खर्च में कोई कटौती नहीं की, भले ही उनके नागरिक इलाज या भोजन के अभाव में दम तोड़ रहे हों। भारत भी सब में शामिल है। लाखों करोड़ के पैकेज दिए जा रहे हैं, उसके बावजूद अगर एक भी व्यक्ति भूख से मरता है तो समझ लीजिए वह पैकेज बीच वाले ही खा गए हैं। सामाजिक संस्थाओं ने लोगों को निशुल्क भोजन सामग्री पहुंचाई, मगर भारत में व्यापार करने वाली कोई विदेशी कंपनी ने एक पैसे का भी सहयोग नहीं किया। अब सरकार को सस्ते अनाज और सस्ते भोजन की व्यवस्था भी करनी चाहिए। इस कार्य में जमीनी स्तर के क८ार्यकर्ताओं का सहयोग लिया जा सकता है।
’विभुति बुपक्या, आष्टा, मप्र