अफगानिस्तान का मौजूदा हालात इस बात का गवाह है कि जब तक आप खुद की शक्ति के उपर निर्भर नहीं हैं, तब तक आप अपने आप को सुरक्षित नहीं रख सकते। कुछ ऐसा ही उदाहरण अफगानिस्तान में सदियों से देखा जा रहा है। सबसे पहले ब्रिटेन को मुंह की खानी पड़ी। उसके बाद सोवियत संघ को आफगानिस्तान छोड़ना पड़ा और पिछले बीस वर्षों तक अमेरिका जैसी महाशक्ति ने प्रयास किया तालिबानियों का अंत करने के लिए, लेकिन वह भी इसमें विफल हो गया और अब उसे अफगानिस्तान छोड़ कर स्वदेश वापस लौटना पड़ रहा है। लौटने से पहले इस महाशाक्ति देश के करीब ढाई हजार के आसपास सैनिकों की जान चली गई करीब 2.26 ट्रिलियन डॉलर की राशि झोंक दी गई।

इसके बावजूद बदले में कुछ हाथ नहीं लगा। यह जरूर कह सकते हैं कि जब तक अमेरिकी सेना वहां रही, तब तक शांति कायम था। आज तालिबान राज कायम हो गया। जनता के एक बड़े हिस्से को जैसे-तैसे देश छोड़ कर अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ रहा है। अब तालिबानियों ने पूरी तरह से उद्योगों पर ही नहीं, बल्कि सभी सरकारी संपत्ति पर अपना अधिपत्य कायम कर लिया है। महिलाओं की आजादी भी छिन गई है। वहां पर रहना एक कैदखाने में रहने के समान है। ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि यह दुनिया के लिए एक असफलता है।
’शशांक शेखर, नोएडा, उप्र