आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी विकास दुबे की मौत ने जो सवाल खड़े किए हैं उससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर अगुंलिया उठ रही हैं। जिस तरह अपराधी विकास दुबे को ढेर किया गया, उससे साफ है कि इस घटनाक्रम की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि देश और समाज में काफी लोग इस मुठभेड़ की सराहना करने के साथ ही साथ इसे त्वरित न्याय का साधन मान रहे हैं।
पर इसका भविष्य क्या होगा, यह भी सोचा जाना चाहिए। चलती राहों पर पुलिस या भीड़तंत्र न्याय करने लगेगा तो हमारे लोकतंत्र के तीन स्तंभ व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जिसके कार्य हमारे संविधान में परिभाषित हैं, का औचित्य ही क्या रह जाएगा। अगर पुलिस ही अपराधियों को मार कर निपटा देगी, तो फिर न्यायपालिका क्या क्या करेगी। क्या इसी तरह कानून का शासन लागू होगा?
’शैलेश मिश्र, बीएचयू, वाराणसी</p>
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