बाबा साहेब ने कहा था कि हमें मिली राजनीतिक आजादी बिना सामाजिक और आर्थिक समानता के अर्थहीन है। जो लोग हिंदू राष्ट्रवाद के एजेंडे पर काम कर रहे हैं, आजकल वे भी आंबेडकर से खुद को जोड़ कर पेश कर रहे हैं। जबकि आंबेडकर ने कहा था कि मैं पैदा जरूर हिंदू के तौर पर हुआ, लेकिन जो धर्म असमानता, भेदभाव और अमानवीयता पर टिका हो, उसमें मरूंगा नहीं। उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। यही स्थिति हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला के परिवार के साथ हुई।

उसे न्याय दिलाने के बजाय उस तोहमतें लगाई गर्इं। रोहित के परिवार ने सामाजिक अन्याय और भेदभाव के प्रतिकार के तौर पर आंबेडकर जयंती के दिन बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। आज आर्थिक और सामाजिक असमानता, जाति और धार्मिक ध्रुवीकरण को तेज कर आपसी भाईचारे और हमारे संविधान के मूल्यों को चोटिल किया जा रहा है। एक तरफ पूंजीपरस्त उदारीकरण से हमारी घरेलू सार्वजनिक और प्राकृतिक संपदाओं को सरकार विदेशी पूंजी के हाथों समर्पित कर रही है, वहीं राष्ट्रवाद की झांसे के परदे तले हिंदुत्व के अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है।

वह संवैधानिक और संसदीय परंपराओं को दरकिनार कर एकाधिकारवादी तौर-तरीकों से किसानों से जमीन और मजदूरों से उनके श्रम अधिकार छीनने के कानून बनाने के विपरीतगामी कृत्य कर रही है, वहीं इसका विरोध करने वालों को ‘राष्ट्र विरोधी’ ठहराने के षड्यंत्र रच रही है। देश के संसाधनों की लूट जारी है। कर प्रणाली बड़े कॉरपोरेट घरानों के हित साधन का माध्यम बन गई है। उन्हें कर रियायतें और कर माफी से नवाजा जा रहा है, जबकि आमजन पर तरह-तरह के अधिभार और सेवा-कर लगा कर बोझ डाला जा रहा है। इस बजट में 6,11,000 करोड़ रुपए की कर माफी और रियायतें कॉरपोरेट जगत को दी गई।

देश के आधे हिस्से में सूखा है। महंगाई और बेकारी की कहीं सुध नहीं है। खेती आजादी के बाद अब तक के सबसे गहरे संकट में है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन ये सब सरकार के चिंता के विषय नहीं हैं। राष्ट्रवाद के नारे जैसे गैर-मुद्दों में उलझा कर अपने नकारेपन से बचने की कोशिश हो रही है। जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि हमारे देश में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता है।

अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता जहां अलगाववाद को हवा देती है, वहां बहुसंख्यक सांप्रदायिकता राष्ट्रवाद के नारे से एकाधिकारवाद थोप कर विभाजन का कारक बनती है। राष्ट्रवाद का नारा जपने वाली सरकार अमेरिका के साथ रणनीतिक सैन्य समझौते कर अपने सैनिक अड्डों के इस्तेमाल की इजाजत अमेरिका को देने में नहीं हिचक रही है। श्रीश्री रविशंकर के लिए पुल बनाने और रामदेव की योग क्लासों में सेना को भेजने से सेना का उपयोग भी राजनीतिक कर्म के लिए किए जाने की शुरुआत हो चुकी है।
’रामचंद्र शर्मा, तरूछाया नगर, जयपुर</p>