मौसम का बदलना प्रकृति का नियम है। वर्षा ऋतु में किसानों से लेकर प्यासी धरती को भी बारिश का इंतजार रहता है। राजधानी दिल्ली, मुंबई और सभी बड़े शहरों में वर्षा ऋतु में जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। मुंबई में तेज बारिश की वजह से कई स्थानों पर भूस्खलन और मकान गिरने से दो सौ से अधिक लागों की मौत हुई और कई घायल हुए। बरसात और बाढ़ से पहले भी ग्रामीण इलाकों में जीवन अस्त व्यस्त हो जाता था, लेकिन अब शहरों का भी जीवन बदतर हो जाता है। शहरों में जलजमाव की समस्या बढ़ती जा रही है।

दरअसल, शहरों की धरती बिना किसी ठोस योजना के बड़े-बड़े भवनों से भरती चली जा रही है, जिससे बरसात का पानी धरती में जाने के बजाय नाला में चला जाता है। सभी बड़े शहरों में जल निकासी की व्यवस्था काफी पुरानी है। कई जगहों पर प्रशासन की अनदेखी के कारण नालों का अतिक्रमण हो चुका है। इसके चलते बरसात का पानी उतनी तेजी से नहीं निकलता है, जितना निकलना चाहिए था। फिर नाला का सही साफ-सफाई नहीं किए जाने और इसमें गाद, प्लास्टिक कचरा वैगरह जमते रहने के कारण बरसाती पानी ठीक से बाहर नही निकल पाता। यही पानी रिहायशी इलाकों और सड़कों को कई दिनों तक जलमग्न किए रहता है। सरकार और आम नागरिक के ईमानदार प्रयासों से जलजमाव की समस्या का समाधान निकल सकता है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार</p>

मतलब के साथी

आज भी कई देश ऐसे हैं जो यूरोप के रईस देशों के पिछलग्गू के रूप में जिंदा हैं। ओशिनिया महाद्वीप में ऐसे ही एक द्वीपसमूह है फ्रेंच पोलिनेशिया। आबादी करीब सात लाख है। 1946 में इसे फ्रांस का एक विदेशी क्षेत्र बनाया गया था। आज तक यही स्थति है। फ्रांस का एक हिस्सा होते हुए भी इसके साथ हमेशा से ही सौतेला व्यवहार किया गया। वहां की आबादी का बिना कोई खयाल किए 1966 से 1996 तक दो सौ के करीब परमाणु परीक्षण किए गए। वहां के आबोहवा में रेडियोधर्मिता की मात्रा में बेतहाशा वृद्धि हुई। लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे। बदले में राष्ट्रपति मैंक्रॉन उस क्षेत्र के दौरा करते हैं, मगर किसी तरह का न माफी मांगते हैं. न ही कोई मुआवजा देने की बात करते हैं। सिर्फ वहां के लोगों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। जाहिर है, फ्रांस ने एक तरह से मतलबी देश के रूप में ही वहां काम किया है।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>