हाल ही में चीन द्वारा बांग्लादेश को तीस्ता नदी परियोजना के लिए एक बिलियन डॉलर की कर्ज सहायता उपलब्ध कराई गई, जिससे न केवल फिर एक बार तीस्ता नदी विवाद का मुद्दा उभर कर सामने आया है, बल्कि बांग्लादेश के अंदर चीन की बढ़ती उपस्थिति भी चिंता का विषय बना है। तीस्ता चार सौ चौदह किलोमीटर लंबी नदी है जो भारत के सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में प्रवाहित होती है और पद्मा नदी के साथ मिल कर बंगाल की खाड़ी में विसर्जित होती है। बांग्लादेश में इसकी कुल लंबाई एक सौ इक्कीस किलोमीटर है।

एशियन फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश की लगभग चौदह फीसद कृषि योग्य भूमि तीस्ता नदी द्वारा सिंचित है और मूल रूप से इस क्षेत्र में चावल की खेती की जाती है जो कि बांग्लादेश का मुख्य भोज्य पदार्थ है। बांग्लादेश की लगभग तिहत्तर फीसद आबादी को चावल यहीं से उपलब्ध होता है।

बांग्लादेश इसी नदी के पचास फीसद जल की मांग करता है। पश्चिम बंगाल के उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए भी यह नदी महत्त्वपूर्ण है। पश्चिम बंगाल में इस नदी पर बनाए गए हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट द्वारा 67.60 मेगा वाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। साथ ही नौ लाख बाईस हजार हेक्टेयर भूमि भी सिंचित की जाती है। पश्चिम बंगाल और सिक्किम मिल कर इस नदी के पचपन फीसद जल की मांग करते हैं।

सन 2011 में पंद्रह वर्ष के लिए अंतरिम समझौता हुआ जिसमें भारत को 42.5 फीसद जल तथा बांग्लादेश को 37.5 फीसद जल उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया गया था। यह समझौता 2026 में खत्म होगा, लेकिन बांग्लादेश द्वारा लगातार अंतिम समझौते के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

किसी भी देश में कृषि और पेयजल के लिए नदियां आधार का काम करती हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल विवाद का एक मुख्य कारण भारत की आंतरिक राजनीति भी रही है। बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना पर उनके विपक्षी यह आरोप लगाते हैं कि उन्होंने बांग्लादेश की संप्रभुता का भारत के साथ समझौता किया है। भारत को शीघ्र ही बांग्लादेश के साथ अपने नदी जल विवाद का समाधान करके तमाम विवादों को खत्म कर देना चाहिए।

’प्रिंस कुमार, प्रयागराज, उप्र