प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण कार्य के दौरान अध्यापकों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उसमें ‘पढ़ना’ सिखाना सबसे कठिन कार्य है। आमतौर पर शिक्षक बच्चों को किताबों के पाठ का वाचन करने पर बल देते हैं, चाहे बच्चे को उस पाठ का अर्थ समझा पाएं या नहीं, बच्चे को उस पाठ का अर्थ समझ में आए या नहीं। लेकिन ‘पढ़ने’ का अर्थ सिर्फ वर्णमाला की पहचान और शब्दों के उच्चारण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आगे उसके अर्थ को ग्रहण कर अपनी निजी समझ विकसित करना भी है।

अगर बच्चों को लिखित सामग्री को पढ़ कर खुद की धारणाएं बनाने और वास्तविक जीवन से संबंध स्थापित करने के अवसर दिए जाएं तो ‘पढ़ना’ अधिक प्रभावशाली होगा। अगर बच्चा अर्थपूर्वक पढ़ने-लिखने की प्रारंभिक क्षमताएं हासिल नहीं कर पाता तो उसे स्वतंत्र रूप से समर्थ नहीं माना जाता। इसलिए बच्चों को ‘पढ़ना’ सिखाने के लिए उनमें शब्दों को पहचानने के कौशल बढ़ाए जाने चाहिए और समझने के तरीकों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही रोचक गतिविधियों और समृद्धशाली परिवेश का निर्माण करना चाहिए और इसके लिए जरूरी है अध्यापकों का निपुण होना।

इसलिए सरकार को पूर्ण प्रशिक्षित अध्यापकों की ही नियुक्ति प्राथमिक विद्यालयों में करनी चाहिए जो अपने शिक्षण कार्य से न केवल बच्चों में भाषायी कौशल, जैसे पढ़ना, लिखना, बोलना आदि का निर्माण करें, बल्कि बच्चों में अपने परिवेश से सीखने की कला का भी विकास करें। अगर बच्चों में पढ़ कर सीखने की समझ विकसित हो जाए तो वे शिक्षा और जीवन के हर सोपान को सरलता से पार कर लेंगे।
’शिवम सिंह, बिंदकी, फतेहपुर, उप्र