आजकल हम सब भागदौड़ का जीवन बिता रहे हैं, अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं और अपने बुजुर्गों के साथ बिताने के लिए हमारे पास कोई समय नहीं है। हमारे अभिवावक अपनी पूरी जिंदगी की कमाई बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करने में लगा देते हैं। वे हमसे, हमारे साथ से ज्यादा कुछ नहीं चाहते हैं। उन्होंने हमें बहुत प्यार से बड़ा किया होता है।

कई बार वे खुद भूखे सोते हैं, लेकिन हम भूखे न सोएं, इसका ध्यान वे अवश्य रखते हैं। जिंदगी के अंतिम दौर में उन्हें हमसे बहुत उम्मीदें होती हैं, लेकिन जब हम उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं तो उन्हें बहुत दुख होता है। लेकिन हम यह याद नहीं रख पाते हैं कि अगर हमारा व्यवहार अपने बुजुर्गों के लिए अच्छा नहीं है, तो हमारे बच्चे भी इस तरह की बात और व्यवहार सीखेंगे।

इस संदर्भ में एक छोटी लोककथा है। एक बार जब एक आदमी के पिता की मृत्यु हो गई तो उसने उसके शव को एक टोकरी में डाल दिया और उसे पहाड़ी से फेंक दिया। उसका बेटा जो उसके साथ था, उसने यह सब देखा और अपने पिता को टोकरी वापस लाने के लिए कहा।

जब पिता ने उससे टोकरी वापस मंगाने का कारण पूछा तो बेटे ने कहा कि वह भी पिता के मरने पर उसे पहाड़ी से फेंकने के लिए ले जाएगा। इसलिए टोकरी वापस चाहिए। यह सुन कर पिता दंग रह गया और उसे अपने किए पर पछतावा हुआ। जो हम बोते हैं, वही काटते हैं। वक्त का पहिया घूमता रहता है और जिंदगी बहुत छोटी होती है।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, भुजडू, जोगिंदर नगर, हिप्र