पिछले कुछ वर्षों से मणिपुर में कभी-कभार छिटपुट भिड़ंत की घटनाएं सुनाई देती थीं, पर इस बार जिस प्रकार से लगातार हिंसक घटनाएं घट रही हैं, उस पर पूरे देश में इस प्रकरण को जानने की उत्सुकता है। ज्यादातर लोग इसे मैतेई और कुकी के बीच का झगड़ा बता रहे हैं, जिसका मुख्य कारण न्यायालय का मैतेई समुदाय को एसटी के दर्जे को लेकर सामने आया रुख बताया जा रहा है।
जनजातीय विद्यार्थी यूनियन द्वारा इसके विरुद्ध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई। जिसके बाद अब तक सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और तीन सौ से ज्यादा घायल हुए हैं। वास्तविक आंकड़े शायद अलग हों। अर्धसैनिक बलों के साथ सेना का भी जमावड़ा हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में लगा हुआ है। इसी बीच एक अभियान के दौरान सुरक्षा बलों के विरुद्ध लगभग डेढ़ हजार लोगों की भीड़ ने घेराव किया और बारह उग्रवादी छुड़ा लिए गए।
अगर इसे दो समुदायों की आम झड़प समझा जाए तो इस सबके पास अत्याधुनिक हथियार कहां से आए, यह एक बड़ा सवाल है। साठ में से चालीस विधायक मैतेई समुदाय से होना भी इसका एक कारण माना जा रहा है। नब्बे फीसद पहाड़ी और दस फीसद घाटी क्षेत्र भी एक आंकड़ा है। म्यांमा और बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ से उत्पन्न असुरक्षा का भाव अन्य कारण में शामिल है। पर इस सबके बीच सुनियोजित रूप से सत्ता के विरुद्ध हथियारों से लैस संगठन का निर्माण और उनका समर्थन करते सामान्य लोग एक अलग दृष्टिकोण तैयार कर रहा है।
मनोज पुरुषार्थी, मेरठ।
मैदान में फुटबाल
बंगलुरु में संपन्न सैफ फुटबाल चैंपियनशिप में फाइनल में कुवैत को शूटआउट में 5-4 से हराकर नौवीं बार भारत चैंपियन बना। सेमीफाइनल में भारत ने लेबनान को हराते हुए फाइनल में प्रवेश किया था। भारत के फुटबाल खिलाड़ियों, विशेषकर कप्तान सुनील छेत्री और गोलकीपर गुरप्रीत सिद्धू का इस टूर्नामेंट में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। भारतीय कप्तान सुनील छेत्री सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बने और उन्हें ‘गोल्डन बूट’ से सम्मानित किया गया। भारत के लाखों फुटबाल प्रेमियों के लिए गर्व की बात है कि भारत के खिलाड़ियों ने लगातार शानदार प्रदर्शन किया।
जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, खेल मंत्रालय और भारतीय फुटबाल संघ विजेता खिलाड़ियों को आर्थिक पैकेज और पुरस्कार देकर मनोबल बढ़ाएं। फुटबाल भारत के सभी राज्यों में खेला जाता है, जिसकी अनदेखी उचित नहीं है। सही है कि विश्व फुटबाल में भारत की पहचान नहीं है, लेकिन फुटबाल खिलाड़ी जब चैंपियन बनकर आते हैं तो उनका मनोबल जरूर बढ़ाना चाहिए।
जिस प्रकार ओड़ीशा के मुख्यमंत्री ने हाकी खेल और हाकी खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया, मनोबल बढ़ाया, आर्थिक पैकेज प्रदान किए और विश्वस्तरीय स्टेडियम बनाए। इसी तर्ज पर पश्चिम बंगाल जैसे राज्य को आगे आकर फुटबाल को विश्व स्तर पर पहुंचाने का संकल्प लेना होगा, जहां फुटबाल के लिए हद से ज्यादा दीवानगी देखी जा सकती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली।
समानता और समरूपता
अंग्रेजों के आगमन से पहले भारत में शादी विवाह या घरेलू मान्यताएं मुख्यत: हिंदू और मुसलिम धर्मों के बीच अलग-अलग होते थे। एक धर्म का विश्वास मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति में था तो दूसरे का शरियत में। जब अंग्रेज आए तो उन्हें ‘फूट डालो राज करो’ की नीति का आधार मिल चुका था। आपराधिक कानूनी मामले दोनों धर्मों पर समान रूप से लागू हुए, लेकिन दीवानी वाले कानून अलग-अलग। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) एक ऐसा कानून, जो परिवार के मामले में एक समान व्यापक कानून, जो सभी धर्मों पर लागू हो।
जब यूसीसी की बात करते हैं, तब इसमें पर्सनल ला का बार-बार जिक्र होता है। यह ऐसे कानून को कहते हैं, जिसे उनके पूर्वज किसी भी कानून-व्यवस्था के बनने से पहले से मानते चले आ रहे हों और उन्ही की पीढ़ी आज इसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहती हो। दरअसल, कोई भी कानून-व्यवस्था परिस्थितियों के हिसाब से बनती है। फिर वह चाहे खाने-पीने को लेकर हो या शादी-विवाह को लेकर हो।
इंसान जब आदिम अवस्था में था, तब हो सकता है कि वह ऐसी जगह रहता हो जहां मांसाहारी व्यंजन ही खाने को मजबूर हो और ठीक इसके उलट शाकाहारी भोजन खाने वाले लोग के साथ भी रहा हो। इसी तरह बात महिलाओं के विवाह की है, जिसका मुख्य कारण युद्ध को माना जाता है। ये सब बातें आदिमकाल की थीं, लेकिन अब जब सब कुछ उपलब्ध है और सभी लोग अपने विवेक से काम ले सकते हैं तो इस कानून में बदलाव होना जरूरी है, क्योंकि यह कानून जिस तरह का है, इसका दुरुपयोग किसी भी धर्म का व्यक्ति कर सकता है, बस उसे अपना धर्मान्तरण करना होगा, जैसा कि सरला मुद्गल मामले (1992) में देखने को मिला था।
इसे चीजों को एक जैसा बना देना कहते हैं, एक जैसा करने का मतलब जितनी मात्रा में हो सके। बाकी समरूपी होना बुरा होता है। वर्तमान समय पर इस कानून की खूब बात हो रही है, इसमें परिवर्तन आवश्यक है, लेकिन वैसे कानून में, जो भेदभाव वाले हैं।
शाहिद हाशमी, ओखला, नई दिल्ली।
पर्यावरण के लिए
वर्तमान में कई शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिससे सांस में तकलीफ आने लगी है। उद्योगों, युद्ध में प्रयुक्त विस्फोटक सामग्रियों के प्रयोग से पर्यावरण को नुकसान होता है, वायु मंडल विषाक्त होता है। एक जानकारी के मुताबिक, फिलहाल जिस गति से पृथ्वी का वायुमंडल रिस रहा है, उस हिसाब से एक से डेढ़ अरब साल में वायुमंडल पूरी तरह खत्म हो जाएगा। वायुमंडल को विषाक्त होने से बचाना चाहिए, ताकि ओजोन परत सुरक्षित बनी रह सके।
धरती या किसी ग्रह का वायुमंडल उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के कारण बंधा रहता है। इस बंधे हुए वायुमंडल के बाहर अंतरिक्ष में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसके कारण वायुमंडल की कुछ वायु गुरुत्वाकर्षण को तोड़कर अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है। इस प्रक्रिया को ओरेरा कहा जाता है। पृथ्वी के रहवासियों को वृक्षारोपण को ज्यादा बढ़ाना होगा, ताकि पर्यावरण अशुद्ध न होने पाए। वायुमंडल शुद्ध बना रहे।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार।