हमारे देश में पूर्णबंदी के दौरान श्रमिकों की स्थिति खराब थी। अचानक तालाबंदी से प्रवासी श्रमिकों ने अपनी आजीविका खो दी। जब वे मजदूर अपने गांव के सफर पर निकले तो सवारी की कोई व्यवस्था नहीं थी। असहाय मजदूरों ने भुखमरी से बचने के लिए हजारों मील की पैदल यात्रा शुरू की। भूख और प्यास से पीड़ित कई लोग मर गए और कइयों की मौत ट्रेन के नीचे आकर हो गई।
इन परिस्थितियों के बावजूद सरकार ने मजदूरों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया। एक तरफ सरकार पूंजीपतियों के हितों के लिए चिंतित दिखती है और इन पूंजीपतियों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कानून बनाए जाते हैं, लेकिन इन श्रमिकों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता है और उनके लिए भाषण दिए जाते हैं, लेकिन इन श्रमिकों के कल्याण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। बल्कि कानून बना कर श्रमिकों की स्थिति और अधिकारों को कमजोर किया जाता है। सरकार को इन श्रमिकों के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए। न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के अलावा इन श्रमिकों के लिए आवास की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए।
’साजिद महमूद शेख, ठाणे, महाराष्ट्र</p>
चौपाल: आस्था और अभिव्यक्ति
भारत संस्कृतियों और सभ्यता से समृद्ध देश है। सदियों से भारतीय संस्कृति में नई चीजों का उद्गम हुआ है, जिसका अस्तित्व और आधार पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही परंपराएं रही हैं। पिछले कुछ समय से देश में धर्म और समुदाय को लेकर उन्माद जैसा माहौल मना हुआ है।
परिस्थिति ऐसी आ गई है कि लोग अपने आक्रोश में किसी के धर्म को शर्मसार करते-करते आस्था को भी कठघरे में खड़ा कर दे रहे हैं। किसी भी धर्म के ग्रंथ में किसी की आस्था या भाव को ठेस पहुंचाना या उसे लज्जित करना नहीं सिखाया गया है। लेकिन हमारे देश में अक्सर लोग लोकतंत्र का उपयोग नकारात्मक तरीके से करते हैं।
बात अगर देश में रह रहे भिन्न धर्मों की करें तो सभी धर्म के लोग उस धर्म में शक्ति के स्वरूप को आस्था का रूप देकर पूजते हैं और उस आस्था का अपमान उस धर्म का अपमान होगा। अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी हर किसी को है, मगर किसी की निजता को बिना हानि पहुंचाए।
’निशा कश्यप, हरीनगर आश्रम, नई दिल्ली</p>